Tuesday, November 7, 2017

एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर को कैश कराने में नाकाम दिखे राहुल बाबा

कांग्रेस के होनेवाले नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में फिर वहीं ग़लती दोहराई है, जो अब तक वो करते आए हैं। उनके पास शानदार मौक़ा था कि वो मोदी के गढ़ में ही बीजेपी को चित्त कर सकते थे। लेकिन ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स करनेवाले उनके सलाहकारों ने उन्हें सही सलाह नहीं दी। लिहाज़ा गुजरात में मोदी की ग़ैरहाज़िरी में जो लड़ाई विजय रुपानी बनाम कांग्रेसी मुख्यमंत्री के दावेदार के बीच होना चाहिए था, वो नहीं हो पाई। ये लड़ाई राहुल बनाम मोदी की होकर रह गई। गुजरात की जनता की उन्हें मोदी और राहुल में से किसी एक को चुनना हो तो वो गुजराती अस्मिता मोदी को पसंद करेंगे।

राहुल ने क़दम-क़दम पर ग़लती की। उन्हें जैन समाज से आने वाले रुपाणी के खिलाफ भरत सिंह सोलंकी का चेहरा पेश कर देना चाहिए था। गुजरात में जैनों की आबादी लगभग एक फीसदी है। जबकि सोलंकी कोल जाति से आते हैं। इस जाति के 10 फीसदी मतदाता है। सोलंकी के पिता माधव सिंह सोलंकी सूबे के सीएम रह चुके हैं। इसका फायदा राहुल उठा सकते थे। लेकिन चूक गए।
गुजरात में कांग्रेस अपने प्रचार में पहली मर्तबा बेहद आक्रामक है। उसने लड़ाई को हार्डऔर सॉफ्टहिंदुत्व के चौसर पर लाकर टिका दिया है। ये समझदारी भरी राजनीति है। राहुल ने विकास पागल हो गया है का नारा देकर भी बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया था। उनके भाषण और अंदाज़ से पहली बार ये संदेश गया कि राहुल समझदार हो गए हैं। वो सुलझे हुए नेता की तरह बर्ताव कर रहे हैं। इसलिए सरसरी तौर पर प्रचार के मामले में कांग्रेस बीजेपी को टक्कर देती दिख रही है। अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक पटेल के साथ होने के बावजूद कांग्रेस सत्ता से दूर खड़ी दिखाई पड़ती है। क्योंकि एक के बाद एक चूक ने बीजेपी को आगे निकलने का मौक़ा दे दिया।
बीजेपी ने इस चुनाव को विकासकी जगहविश्वासको चुनने का नारा दे दिया। 182 सीटों वाली गुजरात विधान सभा में कांग्रेस के फिलहाल 43 एमएलए हैं। उसके 15 एमएलए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़ बीजेपी के पाले में चले गए थे। इनमें 10 ऐसे हैं जो अपनी हैसियत से चुनाव जीतते हैं। ये सच है कि बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है। जीएसटी की वजह से कारोबारियों में ग़ुस्सा है। आरक्षण को लेकर पाटीदार अलग से ख़फा है। दो दर्जन से ज़्यादा सीटों पर पाटीदार उम्मीदवारों का नसीब लिखते हैं। लेकिन राहुल यहां भी चुके।

मध्य गुजरात के अहमदाबाद में 21, सौराष्ट्र के राजकोट में 11, पूर्वी गुजरात के वड़ोदरा में 13, दक्षिण गुजरात के सूरत में 18 सीटें हैं। कभी इन इलाक़ों में बीजेपी का जीत का आंकड़ा लगभग 90 फीसदी के ऊपर था। इन 63 सीटों में से कांग्रेस केवल दो पर जीती थी। ये अलग बात है कि ये दोनों विधायक बाद में बीजेपी में चले गए। या यूं कहें कि कांग्रेस उन्हें थामकर नहीं रोक पाई।
गुजरात में 72 शहरी सीटें हैं। इस इलाके में लोग बीजेपी से बेहद नाराज हैं। लेकिन शहर में कांग्रेस का संगठन लुंज-पुंज है। लोग वोट देने को तैयार बैठे थे। लेकिन लेनेवाला कोई नहीं मिला। पिछली बार 27 आदिवासी सीटों में से बीजेपी 13 पर जीत पाई थी। दलितों के लिए आरक्षित सभी 13 सीटें भी जीत गई थी।

कांग्रेस के पास 182 में से सिर्फ 110 पर ही कुछ कर दिखाने की कूवत है। जिस तरह हार्दिक पटेल की शर्तें कांग्रेस पर लादी जा रही हैं। उस तरह वो एक पिछलग्गू पार्टी के रूप में दिख रही है। शहर की सीटों पर पाटीदारों का कोई रोल नहीं हैं। हां, इतना कहा जा सकता है कि ये चुनाव राहुल को बहुत सारे ऐसे अनुभव देकर जाएगा, जो अगले लोकसभा चुनाव के समय उन्हें मदद देगा।

Saturday, November 4, 2017

राहुल को घेरने में मोदी-शाह के छूटे पसीने

जैसे-जैसे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव की बेला नज़दीक आती जा रही है, वैसे-वैसे नेताओं की ज़ुबान कैंची की तरह चलने लगी है। नए जोश और नए तेवर के साथ नया अवतार ले चुके कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को थामने के लिए एक साथ बीजेपी के दो बड़े नेता पिल पड़े हैं। राहुल का मुक़ाबला करने में अमित शाह और नरेंद्र मोदी के पसीने छूट रहे हैं। क्योंकि इस बार के प्रचार में राहुल भी ठीक उसी तरह से जुमलेबाज़ी कर रहे हैं, जैसा कि लोकसभा और दूसरे चुनावों में मोदी करते आए हैं। अपने ज़ुमलों की वजह से ही मोदी पॉपुलर हुए। हालांकि राहुल के इस अंदाज़ से आलोचकों का कहना है कि इससे राहुल की छवि खराब होगी। उन्हें अब भी उसी तरह से बोलना चाहिए, जिसके लिए वो जाने जाते हैं।

ख़ैर, जीएसटी और गब्बर सिंह टैक्स और गुजरात में विकास पागल हो गया है का नारा देकर राहुल ने बीजेपी को और हमलावर बना दिया है। राहुल फिर एक नया जुमला लेकर सामने आए। उन्होंने एक वेबसाइट की खबर को शेयर करते हुए लिखा कि शाह-जादा की अपार सफलता के बाद बीजेपी की नई पेशकश अजित शौर्य गाथा। वेबसाइट में दावा किया कि अजित डोभाल के बेटे शौर्य की संस्था इंडिया फाउंडेशन’ में बड़े केंद्रीय मंत्री डायरेक्टर हैं और उन्हें देशी-विदेशी कंपनियों से मदद मिलती है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि संस्थान के मंच पर बड़े कारोबारीकेंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मिलते-जुलते हैं। इंडिया फाउंडेशन’ को शौर्य डोभालऔर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव चलाते हैं। साथ ही इसके निदेशक मंडल में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमणवाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा के अलावा विदेश राज्यमंत्री एम जे अकबर भी शामिल हैं।
वहीं, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात में आरोप लगाया कि कांग्रेस विकास का मज़ाक उड़ा रही है। जबकि विकास पार्टी के मिज़ाज में है। राहुल गांधी एनजीओ के फर्ज़ी आंकड़े लेकर गुजरात को बदनाम कर रहे हैं। शाह ने चैलेंज किया कि जो अमेठी का विकास ना कर पाया हो, उसे दूसरे से विकास का हिसाब मांगने का हक़ नहीं। वहीं हिमाचल में दो दिनों के लिए डेरा डंडा गाड़कर बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल को निशाने पर लिया। मोदी ने दम भरा कि दुनिया में भारत के नाम का डंका बज रहा है। ये बात कांग्रेस को हज़म नहीं हो रही। जिसने 70 सालों तक केवल भ्रष्टाचार किया हो, उसे विकास की बात कैसे हज़म होगी। इसलिए अगर हिमाचल का विकास करना है तो बीजेपी को प्रचंड बहमुत दें। जैसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी और प्रेम कुमार धूमल की जोड़ी ने विकास किया तो अब मोदी और धूमल की जोड़ी विकास करेगी। उन्होंने कहा, “हम देश को लूटने वाले लोगों का चुन-चुन कर हिसाब करने में लगे हुए हैं।सुंदर नगर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि यह चुनाव राज्य में न केवल एक सरकार गठन के लिए है बल्कि यह चुनाव भव्य और दिव्य हिमाचल के निर्माण के लिए है।

पीएम ने हिमाचल प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार पर भी जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब देशभर के अखबारों में 2जी और अन्य करप्शन से जुड़ी खबरें छाई होती थीं लेकिन आज स्थितियां बदल गई हैं। उन्होंने कहा, “तब बात होती थी कि कितना गया और अब बात होती है कि कितना आया।पीएम ने कहा, “ईमानदारी के नाम पर देश की जनता आने वाले 100 सालों में भी कांग्रेस के ऊपर विश्वास नहीं करेगी।

Saturday, September 16, 2017

योगीराज में पिटनेवाली पुलिस इनकाउंटर भी कर सकती है?

सरकार में आने से पहले योगी आदित्यनाथ और बीजेपी ने अखिलेश राज की बिगड़ी क़ानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया था। दम भरा था कि सरकार में आते ही सब बदल देंगे। गुंडे-माफिया यूपी छोड़कर भाग जाएंगे। लेकिन हुआ इसके उलट। गुंड-मवाली थाने में घुसकर पुलिसवालों को पीटते हैं। हद तो तब हो गई जब बिजनौर में ऑन ड्यूटी रोड पर एक सब इंस्पेक्टर का गला काट दिया गया। क़ानून का ख़ौफ़ कितना है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाइए कि सड़क पर भी लोग खाकीवालों को गिरा-गिराकर मारने से नहीं डरते। पुलिस की बस वहीं चलती है, जो ग़रीब हैं या फिर जिनकी कोई पहुंच नहीं है। सरकारी आंकड़ों में ना तो मर्डर कम हुए हैं। ना रेप की संख्या में गिरावट आई है। ना डाका पडना कमा हुआ है और ना ही दंगे फसादों में कमी आई है।


मज़े की बात है कि मोदी के मंत्री इन बढ़ते आंकड़ों पर बेशर्मी भरे बयान दे रहे हैं। दावा कर रहे हैं कि पहले की सरकारों में थानों में शिकायत ही दर्ज नहीं होती थी। इसलिए अपराध के आंकड़े कम दिखाई देते हैं। अब योगीराज में हर किसी की सुनवाई होती है। इसलिए अपराधों की संख्या ज़्यादा दिखलाई देती है। इस तरह का कुतर्क करनेवाले मंत्री भूल जाते हैं कि यूपी में केवल अखिलेश, मायावती और मुलायम की ही सरकारें नहीं रही हैं। रामबाबू गुप्ता, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की भी सरकारें रही हैं।

ख़ैर आलम ये है कि कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने में लगे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हांफ रहे हैं। उधर उनकी पुलिस भी हांफ रही है। अपराधियों के डर से और अपनी पीठ थपथपाने के लिए आंकड़ों की बाज़ीगरी दिखाने में। यूपी पुलिस दावा कर रही है कि पिछले 6 महीने में यानी योगीराज में अपराधी थर-थर कांपने लगे हैं। उन्हें डर है कि पुलिस कहीं सड़क पर ही इंसाफ ना कर दे। छंटे हुए बदमाशों को इनकाउंटर में मारकर ना गिरा दे। दावा किया जा रहा है कि सीएम योगी के निर्देश के बाद पिछले 6 महीने में मुठभेड़ में 15 इनामी अपराधियों को मार गिराया। वहीं 84 अपराधी गोली लगने से घायल हुए। सीएम के इसी निर्देश पर कार्रवाई करते हुए पुलिस अपराधियों पर कहर बनकर टूटी है।
लेकिन सच्चाई ये है कि प्रदेश में बढ़ते अपराध ने आम जनमानस का जीना दुश्वार कर रखा है। कई सरकारें आई और गई। लेकिन राहत नहीं मिली। बस मुलम्मा बदलता रहा। सच ये भी है कि पहले की किसी भी सरकारों ने इनकाउंटर की खुली छूट नहीं दी गई। लेकिन अब इनकाउंटर की छूट है।

20 मार्च से 14 सितंबर तक के यूपी पुलिस के आंकड़ों पर नजर डालें तो अपराधियों के साथ पुलिस की कुल 420 मुठभेड़ हुई है। इनमे शामली में 4, आजमगढ़ में 3, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में 2-2 अपराधी मारे गए है। मेरठ में सबसे ज़्यादा 9 अपराधी मारे गए है। जिसके बाद अपराधियों में दहशत फैल गई है। राजधानी में हुई एक मुठभेड़ में भी इनामी बदमाश मारा गया। इस दौरान 88 पुलिसकर्मी भी घायल हुए। योगी सरकार के करीब 6 माह के कार्यकाल में 1106 अपराधी गिरफ्तार किए गए, जिनमें 868 कुख्यात अपराधी हैं। अब तक 54 अपराधियों पर रासुका और 69 पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है। बहरहाल, आंकड़े तो चीख चीखकर कह रहे हैं कि यूपी में क़ानून व्यवस्था की मौजूदा हालत द्रौपदी की तरह ही है।

Friday, September 15, 2017

जनता के बीच जाने से डरते हैं बीजेपी के जनसेवक

हमारे संविधान ने संसद या विधानसभा में जाने के लिए दो ही रास्ते दिए हैं। संसद के लिए लोकसभा और राज्यसभा और राज्यों में विधानसभा और विधान परिषद। लोकसभा और विधानसभा के लिए जनता अपना सांसद और विधायक चुनती है। जबकि राज्यसभा के लिए राज्यों के विधायक और विधान परिषद के लिए राज्यों में अलग अलग नियम हैं। यूपी विधान परिषद के लिए नगरपालिकाओं के सदस्य, जिला बोर्डों, दूसरे प्राधिकरणों के सदस्यों और शैक्षिक संस्थाओं आदि से जुड़े लोग एमएलसी चुनते हैं। विधानपरिषद और राज्यसभा को अपर हाउस कहा जाता है। लेकिन राजनीति में इसे चोर दरवाज़ा कहते हैं। ये माना गया है कि जिस नेता की ज़मीनी पकड़ नहीं है या वो लोकप्रिय नहीं है तो उसकी पार्टी उसे पिछले या चोर दरवाज़े से सदस्य बनवाती है।

अब आते हैं मुद्दे की बात पर। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्रियों केशव मौर्या और दिनेश शर्मा, मंत्री मोहसिन रज़ा और स्वतंत्र देव सिंह एमलएसी चुन लिए गए। इसके लिए कुछ सपाइयों को तोड़ना पड़ा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये खेल क्यों खेला गया? बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं के लिए चोर दरवाज़ा क्यों खोला? राजनीति के जानकार बताते हैं कि विभिन्न सूत्रों से बीजेपी की मातृ संगठन आरएसएस के पास पुख़्ता जानकारी है कि तीन सालों में केवल बातें बनाकर नरेंद्र और अमित शाह ने जनता का मूड खराब कर दिया है। यूपी एक बड़ा राज्य है। वहीं मोदी और शाह के गृह राज्य में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। पटेलों और हार्दिक पटेल समेत आप ने हवा ख़राब कर रखी है। ऐसे में अगर योगी, मौर्या या शर्मा चुनाव हार जाते तो बड़ा रिस्क हो जाता। देश में गंदा संदेश जाता है। इसलिए इन्हें पिछले दरवाजे से लाया गया। यही नहीं लंबे समय तक गुजरात में मोदी के गृह मंत्री रहे अमित शाह को भी आनेवाले विधानसभा चुनाव में लड़ने रोका गया। उन्हें भी चोर दरवाज़े से राज्यसभा लाया गया।

राजनीति के जानकारों में ये चर्चा का विषय है कि 2014 लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटें जीतने वाली बीजेपी अब लोकसभा की एक सीट पर भी चुनाव लड़ने से क्यों बचना चाहती है। वहीं, विधानसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद 5 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने से क्यों डर रही थी। सूत्रों का कहना है कि गुजरात चुनाव से पहले किसी भी सूरत में बीजेपी माहौल खराब नहीं करना चाहती है यही वजह है कि बीजेपी के तमाम दिग्गज जनसेवक किसी भी चुनाव से भाग रहे है।

Thursday, September 14, 2017

क्या मोदी का जादू अब हो रहा है बेअसर?

बीजेपी परिवार, एनडीए परिवार और संघ परिवार में इनदिनों बस ही ही चर्चा है। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात कि नरेंद्र मोदी क जलवा कम हो रहा है। हाल में कुछ ऐसी घटनाएं लगातार घटी हैं, उसके बाद इन बातों को और दम मिलने लगा है। जिस आरएसएस के गढ़ यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी कभी नहीं हारी, वो बुधवार को चुनाव हार गई। उससे एक दिन पहले जेएनयू के नतीजे आए। वहां भी एबीवीपी का सूपड़ा साफ हुआ। जब दोनों हार का पोस्टमॉर्टम किया गया तो नतीजा यही निकला कि इस हार के लिए मोदी ज़िंम्मेदार हैं। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उपाध्यक्ष शहला रशीद, उमर खालिद समेत कई छात्र नेता मोदी सरकार और बीजेपी की तीखी आलोचना करते रहे हैं। डीयू में वामपंथी छात्र संगठन मजबूत नहीं हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वामपंथी छात्र संगठनों द्वारा बीजेपी और एबीवीपी के खिलाफ बनाये गये माहौल का सीधा फायदा कांग्रेस के छात्र संगठन को हुआ है।

ये भी माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल में लगातार विश्वविद्यालयों में होने वाले विवादों को लेकर आलोचनाओं से घिरती रही है। देश के शीर्ष संस्थानों में छात्रों ने बीजेपी के खिलाफ आक्रोश जताया। हैदराबाद विश्विद्यालय, जादवपुर विश्वविद्लाय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय इत्यादि में किसी न किसी मुद्दे पर छात्र और प्रशासन आमने-सामने आया। हर संस्थान में बीजेपी के प्रति सहानुभूति के कारण एबीवीपी ने प्रशासन का पक्ष लिया। ऐसे में माना जा रहा है कि आम छात्रों के मन में एबीवीपी से नाराजगी है। एबीवीपी की हार की एक वजह नरेंद्र मोदी सरकार की शिक्षा नीति भी मानी जा रही है। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट), एमफिल-पीएचडी की सीटें, शैक्षणिक संस्थानों के वित्त पोषण, उनकी स्वायत्तता से जुड़े जो फैसले किए उससे आम छात्रों और अध्यापकों में नाराजगी है।

वहीं आरएसएस ने भी साफ कह दिया है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अगली बार मोदी चुनाव जीत कर आए ही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी को नरेंद्र मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता के प्रति सचेत किया है। आरएसएस ने अपने विभिन्न संगठनों से फीडबैक लेने के बाद आर्थिक सुस्ती, बेरोजगारी और नौकरियां जाने, नोटबंदी की विफलता और किसानों की बदहाली जैसे मुद्दों की वजह से आम लोगों में निराशा और नाराज़गी है। आरएसएस ने मोदी सरकार से कहा कि उसके कार्यकर्ताओं के अनुसार आम लोग मोदी सरकार के बारे में असुविधाजनक सवाल और बहस कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार की सहयोगी शिवसेना बात-बात पर मोदी का मुखौटा उतार देती है। आज ही जब मोदी ने बुलेट ट्रेन का शिलान्यास किया तो शिवसेना ने साफ कह दिया कि बुलेट की तरह झूठ बोलते हैं। ये तमाम तरह की बातों से एक बात तो साफ है कि अब पहले की तरह मोदी की राह आसान नहीं है। ना ही सरकार में, ना ही संगठन या परिवार में और ना ही आनेवाले चुनाव में। इसलिए ये कहा जा सकता है कि मोदी का जलवा कम तो ज़रुर हुए हैं। लेकिन जनता की नज़र में मज़बूर विरोधी नेता कोई नहीं दिख रहा। 

Wednesday, September 13, 2017

घूसखोरी पर मोदी के दावे की हवा निकाल रहे हैं योगी के मंत्री

आपको याद होगा कि इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खम ठोककर कहा था कि वो इस देश से भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाकर दम लेंगे। देश में काला धन वापिस आएगा। सबके बैंक खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आएंगे। वग़ैरह वग़ैरह। वैसे बातें तो उन्होंने ख़ूब की हैं और भी बात ही बनाते हैं। लेकिन आपको याद दिला दें कि देश के प्रधानमंत्री ने देश की जनता के सामने शपथ ली थी कि ना तो वो खाएंगे और ना ही किसी को खाने देंगे। आज उनका यही नारा उनकी पार्टी, उनके नेताओं और मंत्रियों को याद दिलाना चाहता हूं। सच्चाई तो ये है कि भले ही नारा लग जाए कि जो 70 सालों में नहीं हुआ, वो अब हो रहा है। देश बदल रहा है। देश चमक रहा है। देश में मोदी और यूपी में मोदी मिलकर सब बदल डालेंगे। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यही है कि आज भी कुछ नहीं बदला।

इस देश में आज भी बिना घूस दिए मकान का नक्शा पास नहीं होता। बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं बनता। एफआईआर की कॉपी पाने के लिए मुंशी या दीवान की हथेली गर्म करनी पड़ती है। नौकरी के लिए मंत्री या अधिकारी को रिश्वत देनी पड़ती है। बच्चे के एडमिशन के लिए डोनेशन देना पड़ता है। अस्पतालों में एडमिशन और अच्छे इलाज के लिए या तो पैरवी करानी पड़ती है या फिरमुस्कुराते हुए गांधी जीको नज़र करना पड़ता है। सड़क बनाने और ठेका पाने में वही पुराना खेल चल रहा है।
हां, जब पीएम ने कहा था कि ना खाऊंगा तो ना खाने दूंगा तो मेरे जैसे न जाने कितने लाखों करोड़ों लोगों के मन में उम्मीद जगी थी। हां, देश का मुखिया ही ठान ले, इरादा कर ले। तो वाकई वो काम हो कर रहेगा। लेकिन आज ये बेहद अफसोस के साथ कह रहा हूं कि देश की जनता फिर छली गई है। क्योंकि देश के सबसे बड़े प्रदेश यानी योगी आदित्यानाथ वाले उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ही खुल्लमखुल्ला मोदी के बयान को रद्दी की टोकरी में डालने का काम कर रहे हैं। सार्वजनिक मंचों से ठेकेदारों और अफसरों को कह रहे हैं कि रिश्वत खाइए। लेकिन कम खाइए। ठीक वैसे ही घूस खाइए जैसा कि दाल में नमक मिलाया जाता है। ये बात उन्होंने हरदोई में कही। ठीक डिप्टी सीएम साहेब। ये यूपी आपकी है। ये देश आपका है। ये अधिकारी-बाबू आपके हैं। ये ठेकेदार आपके हैं। सरकार आपकी है। उन्मादी मुट्ठी भर भीड़ आपकी है। भक्तजन आपके हैं। सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा फैलनेवाले भी आपके हैं। आपकी जो मर्जी में आए कीजिए। या तो दाल में नमक मिलाइए या फिर दाल में पूरी नमक ही डाल दीजिए। आपसे सवाल पूछकर देशद्रोही होने की हिमाकत भला कौन करे।

राहुल की साफगोई से BJP को क्यों लगती हे तेज़ मिर्ची?

आज हम बात करेंगे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की अमेरिका में दिए गए साफगोई से। राहुल गांधी ने पहली बार माना कि साल 2012 के आसपास कांग्रेस दंभ में चूर थी। इसलिए सत्ता पंजे से फिसल गई। राहुल जिस समय की बात कर रहे हैं, जब दौरान सोनिया की पार्टी पर मजबूत पकड़ थी। उन्होने साफ कहा कि पार्टी में पूरी तरह से फेरबदल करने की ज़रुरत है। राहुल की साफगोई देखिए कि साफ कहा कि नरेंद्र मोदी बहुत हुनरमंद है। वो बोलते बहुच अच्छा है। वो उनसे भी बेहतर बोलते हैं।  वो जानते हैं कि भीड़ में जो तीन-चार तरह के अलग-अलग समूह हैं उन तक संदेश को कैसे पहुंचाया जाए। इस वजह से उनका संदेश ज्यादा लोगों तक पहुंच पाता है। इसके बाद राहुल ने मोदी पर चुटकी भी ली। राहुल गांधी ने नोटबंदी के फैसले की जमकर निंदा की। राहुल ने बताया कि नोटबंदी की वजह से जीडीपी में 2 फीसद की गिरावट आई। भारत में नई नौकरियां बिलकुल पैदा नहीं हो रही हैं। वहीं आर्थिक विकास की रफ्तार भी नहीं बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था को लेकर किए गए कुछ गलत फैसलों की वजह से किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। राहुल ने ये भी कहा कि आज के दौर में नफरत और हिंसा की राजनीति हो रही है।


लेकिन यही बात बीजेपी को नागवार गुज़री। मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे देश के अपमान से जोड़ दिया। कहने लगीं कि राहुल ने विदेश की धरती पर ये सब बोलकर भारत की नाक कटवा दी। वो भूल गए कि वोटर तो भारतीय ही हैं। वंशवाद को लेकर राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि उनकी पार्टी में परिवारवाद नहीं है। लेकिन राहुल का ये अमेरिका दौरा एक असफल वंश के तौर पर देखा जाना चाहिए।

राहुल के जीएसटी और नोटबंदी पर उठाए गए सवाल का जवाब देते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि 'कांग्रेस के नेतृत्व में जीएसटी की विफलता इस बात का संकेत थी कि कांग्रेस ने किसी भी राजनीतिक दल को विश्वास में नहीं लिया और न ही राज्यों का विश्वास जीत पाई। अगर राहुल गांधी सुनने के आदी होते तो जीएसटी यूपीए सरकार में ही लागू हो जाता। मैंने दोनों पक्षों की बात आपके सामने रखी। अगर पोस्टमार्टम करें तो कहीं से भी राहुल गलत नहीं दिखते। उन्होंने सही कहा कि सत्ता में रहने पर घमंड आ जाता है। ये बात उन पर लागू होती है और आने वाली सरकारों पर भी।

Sunday, September 3, 2017

राजनाथ ने मिर्ज़ापुरिया दिमाग़ से किया मोदी-शाह को चित्त

नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार से कंबल ओढ़कर घी पीनेवाली राजनीति की पोल खुल गई। साबित हो गया कि पार्टी विद ए डिफरेंस यानी सबसे अलग दिखने का दावा करने वाली पार्टी में भी उसी तरह की घटिया राजनीति होती है, जो दूसरे पार्टिंयों में देखकर बीजेपी कोसती है। आइए आपको बताते हैं कि इस फेरबदल के पीछे की राजनीति।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने मिलकर सरकार का चेहरा बदलने का फैसला किय। क्योंकि ये दोनों नेता जानते हैं कि इन तीन सालों में वो ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए हैं, जो वादा करके आए थे। ना काला धन आया। ना महंगाई घटी। ना भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ। ना बेरोज़ागरी मिटी। ना नौजवानों और ना किसानों के चेहरों पर मुस्कुराहट आई। तीन साल बीत गए। डेढ़-दो साल बचे हैं। लिहाज़ा छवि चमकाने की कोशिश हुई। दोनों ने इस फेरबदल के बहाने बड़े नेताओं के क़द को भी छोटा करने का फैसला कर लिया। जो नेता अगले लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते थे, उन्हें ठंडे बस्ते में लगाने का फैसला कर लिया। तय कर लिया कि नीतिन गडकरी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, उमा भारती और राजनाथ सिंह को हाशिए पर डाल दिया जाए।
लेकिन इस राजनीति की भनक राजनाथ को लग गई। यूपी और वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे राजनाथ सिंह ने मिर्ज़ापुरिया खोपड़ी लगाई। जेटली, सुषमा और गडकरी से बात हो गई। तय किया गया कि मथुरा में संघ के सम्मेलन में वो नहीं जाएंगे। साफ संदेश देंगे कि वो नाराज़ हैं और संगठन में आने को तैयार हैं। सरकार में नंबर दो की हैसियत रखनेवाले राजनाथ यूपी के सीएम रह चुके हैं। दो-दो बार बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। अगर मोदी ने विभाग बदला तो वो संगठन में आने को तैयार हैं। लेकिन अपनी पुरानी हैसियत पर। यानी मोदी के आंखों के तारे अमित शाह को आरएसएस अध्यक्ष पद से हटाकर सरकार में भेजे और उन्हे कुर्सी दिलवाए। अगर ऐसा भी होता तो बतौर अध्यक्ष राजनाथ – शाह की कान गर्म करते रहते। क्योंकि संविधान में साफ है कि मंत्रिमंडल का प्रधान यानी प्रधानमंत्री अपनी पार्टी अध्यक्ष का आदेश मानने को मजबूर है। राजनाथ का खेल संघ को पता चला। तय किया गया कि केवल जेटली से रक्षा मंत्रालय लिया जाए। वैसे भी जेटली इसे पसंद नहीं कर रहे थे। शाह और मोदी संघ की ये सलाह मानने को मजबूर हुए। लेकिन फिर भी एक दांव खेल दिया। दोनों जानते हैं कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कई लोग पीएम देखना चाहते हैं। आगे ख़तरा हो सकता है। इसलिए धीरे से ऐसे आदमी को मंत्री बनाया, जिससे योगी का 36 का आंकड़ा है। गोरखपुर वाले शिव प्रताप शुक्ल को वित्त राज्य मंत्री बनाकर योगी को संदेश दे दिया। एक समय था जब गोरखपुर में केवल हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप की तूती बोला करती थी। लेकिन जब योगी सांसद बने तो उन्होंने इन दोनों ब्राह्मणों को किनारे लगा दिया। बारह साल तक शिव प्रताप को गोरखपुर छोड़कर रहना पड़ा। अब आप समझ सकते हैं कि दोनों के रिश्ते कैसे होंगे। 


Saturday, August 26, 2017

हरियाणा में हिंसा का नंगा नाच के लिए तीन ज़िम्मेदार

हरियाणा जिस तरह से पूरी तैयारी के साथ अराजकता, हिंसा और क़त्ल ओ ग़रद का नज़ारा नज़ीर बनाकर देश में पेश किया गया, उसके लिए देश कभी बीजेपी और मोदी सरकार को माफ नहीं करेगा। मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी किसी कोर्ट ने किसी भी प्रधानमंत्री को काम-काज करने क शऊर बताया हो। ये नज़ीर भी इस सरकार ने पेश कर दी। निर्दोषों की लाश, चीख-पुकार, आग-धुंए का गुबार देखने के बाद पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट को कहना पड़ा कि प्रधानमंत्री जी आप इस देश के पीएम हैं। बीजेपी के नहीं। पंचकूला और हरियाणा भी इसी देश का हिस्सा है।
इन लाशों के ढेर पर मेरी नज़र में तीन दोषी बैठे हैं। पहला, खुद रेप कांड का आरोपी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह इंसां है। दूसरी बीजेपी के नेता और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं, जिनका पालन-पोषण संघ की शाखा में हुआ है। तीसरे दोषी इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने अपने आंखों के सामने ये सब होते देखा। घटना की निंदा कर अपना राजधर्म पूरा कर लिया।

हरियाणा, पंजाब और दिल्ली का बच्चा-बच्चा जानता था कि डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां के कोर्ट में पेश होने पर क्या-क्या हो सकता है। मीडिया और कोर्ट ने कई दिनों पहले ही इसकी आशंका जताकर सरकार को आगाह कर दिया था। लेकिन सरकार कान में तेल डालकर सोई रही।  सरकार इस क़दर हालात को नहीं संभाल पाई कि कोर्ट को कहना पड़ा कि जमा हो चुके लाखों डेरा समर्थकों को खदेड़ने में विफल डीजीपी को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। लेकिन कोर्ट से फटकार सुनने के बाद भी सरकार बेशर्मी पर उतारू रही। गृह सचिव अच्छे काम काज के लिए डीजीपी की पीठ थपथपाते रहे।
वोटों के लिए कोई सरकार किसी यौन अपराधी से इस तरह जुड़ सकती है, विश्वास नहीं होता। चुनाव से पहले डेरा प्रेमियों का वोट पाने के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही रेपिस्ट राम के दर तक हो कर आ चुके हैं। वो भी तब जब उनकी पार्टी से चुनकर प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने उसके खिलाफ सीबीआई को लगाया था। क्या मोदी और शाह राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी हैं कि वो रेपिस्ट राम का करतूत नहीं जानते थे। साध्वियों को दर्द नहीं समझते थे। कहने में शर्म आती है लेकिन ये सच है कि सत्ता और वोट की लालच में दोनों ने धृतराष्ट्र बनने में ही भलाई समझी। हरियाणा सरकार, तमाम मंत्री और खुद मुख्यमंत्री सरकार के दरबार में शीश नवाने जाते ही रहते हैं। समझ में नहीं आता कि वोट बैंक का ऐसा आपराधिक मोह हमारी राजनीति को कहां ले जाएगा?
राम रहीम इसलिए इतना ताक़तवर, असरदार और दमदार बन पाया क्योंकि हर राजनीतिक पार्टी उसके चरणों में लोटती रही। पहले कांग्रेस ने ये नाटक किया। फिर ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने किया। अकालियों ने भी वही किया। वहीं काम अब वो पार्टी कर रही है, जो दावा करती है कि देश में आज वो सब हो रहा है, जो पहले साठ सालों में नहीं हुआ। देश बदल रहा है। अच्छे दिन आनेवाले हैं। ।

देश हरियाणा की हिंसा और निर्दोष नागरिकों की सड़कों पर प्रदर्शन के दौरान हत्या का घिनौना चेहरा  देख चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चाहिए कि मनोहर लाल खट्‌टर को बर्खास्त कर दें। खट्‌टर को चाहिए कि जाने से पहले डीजीपी को बर्खास्त कर दें। ये मांग उठने भी लगी है। इसमें राजनीति नहीं देखी चाहिए। सत्रह साल पहले जिस तरह से गुजरात दंगे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म की याद दिलाते हुए बर्ख़ास्तगी की कार्रवाई शुरु की थी। बेशक़ लाल कृष्ण आडवाणी ने बचा लिया था। आज वही मंज़र ख़ुद मोदी के सामने हैं। आज वो प्रधानमंत्री हैं। खट्टर मुख्यमंत्री हैं। प्रधानमंत्री राजधर्म की नसीहत दे रहे हैं। देश की आंखें खुल चुकी हैं। प्रधानमंत्री जी अब आप भी आंखें खोलिए।

डेरा हिंसा ने खोलकर दी बीजेपी वालों की सोच और नीयत

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के बाद भड़की हिंसा ने दो बातें साफ कर दीं। पहली बात तो ये कि इतिहास अपने आपको दोहराता है। दूसरी बात ये कि बीजेपी सरकार बातें तो महिलाओं के हित और विकास की करती है। लेकिन उसके नेता और सांसद महिला विरोधी मानसिकता दिखा रहे हैं। बीजेपी के दो सांसदों ने खुलकर रेपिस्ट राम रहीम का बचाव किया। सांसद साक्षी महाराज और सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलकर कहा है कि गुरुमीत राम रहीम सिंह निर्दोष हैं। एक साध्वी के कहने पर करोड़ों भक्तों की भावनाओं को रौंदकर डेरा सच्चा को जेल भेज दिया गया। साक्षी ने इसके लिए अदालत तक पर सवाल खड़ा कर दिया। ख़ैर इसको लेकर जब बवाल बढ़ा तो साक्षी अपने बयान से मुकर गए और स्वामी के मुंह पर ताला लगा हुआ है। लेकिन इन बयानों ने साफ कर दिया है कि बीजेपी के भीतर कैसे-कैसे नेता हैं , जो महिलाओं के लिए कैसे-कैसे नेक विचार रखते हैं।
दूसरी बात, गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से हरियाणा जला। उससे 17 साल पहले की घटना याद आ गई। इसी तरह से एख मामूली बात पर धर्मांध लोगों ने गुजरात में हिंसा का नंगा नाच किया था। हज़ारों बेगुनाह मारे गए थे। तब भी तबकी राज्य की सरकार हिंसा रोक पाने में नाकाम रही थी। या यूं कहें कि हिंसा रोकना नहीं चाहती थी। तब उस समय के प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री से नाराज़ हुए और राजधर्म पालन करने की नसीहत दे गए। आज वहीं हो रहा है। वो मुख्यमंत्री आज प्रधानमंत्री है। बताया जाता है कि हरियाणा में हुई हिंसा से अपने मुख्यमंत्री से नाराज़ हैं। आज भी वही हालात हैं। राज्य की बीजेपी सरकार ने जान बूझकर हिंसा होने दिया या फिर हिंसा रोकने में नाकाम रही। दोनों ही सूरत में बीजेपी सरकार का इक़बाल कम किया है। यहां तक हाई कोर्ट ने भी तल्ख़ टिप्पणी कर दी कि अपने सियासी फायदे के लिए बीजेपी सरकार ने हरियाणा को जलने दिया। हरियाणा की हालिया हिंसा ने साफ कर दिया है कि सत्ताधारी पार्टी के भीतर महिलाओं के लिए कैसी सोच है। अदालत के बारे में क्या धारणा है। सियासी फायदे के लिए उसकी नज़र में मासूमों की जान की कोई क़ीमत है। 

Friday, August 25, 2017

अपराध और राजनीति की मेल की पैदाइश है राम रहीम

बाबा गुरुमीत राम रहीम सिंह इंसां तो बहाना है। असल में हमें आपको जगाना है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत हैं। कहते हैं कि वो सभी धर्म और जाति को मानते हैं। उनके लिए सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है। इसलिए इंसां का तखल्लुस यानी टाइटल लगाते हैं। संत भी हैं और इंसान भी तो फिर ये कहां का तकाज़ा है कि साध्वी का रेप कर दें। गवाह की हत्या करा दें। सीबीआई के चार्जशीट में साफ है कि बाबा के रेप से आज़िज आकर 24 साध्वियों ने डेरा छोड़ दिया। जिन साध्वियों तक सीबीआई नहीं पहुंच पाई, वो आंकड़ा इसमें नहीं है। डरा प्रमुख को करनी की सज़ा हुई तो प्रेमी भड़क गए। जगह-जगह पर हिंसा, आगज़नी और मारकाट मची है। अब तक तीन लोग मारे जा चुके हैं। डर इस बात का है कि ये हिंसा कई दिनों तक चलेगी। क्योंकि इससे बचने की सरकार की तैयारी नहीं थी या थी भी तो अधूरी थी।

इस हिंसा और अपराध का सीधा वास्ता राजनीति से है। ये बाबा लोग दुनिया को संत बनने का ढोंग कर दिखाते हैं। लेकिन उनका असली धंधा कुछ और होता है। इन अपराधों को छिपाने के लिए उन्हें नेताओं के साथ ज़रुरत होती है। इन ढोंगी बाबाओं के अंधभक्तों की संख्या भी लाखों-करोड़ों की होती है, जो उनके इशारे पर मरने कटने को तैयार रहते हैं। ये संख्या नेताओं को ललचाती है। ये बात डेरा सच्चा पर भी लागू होती है।
शुरू में वो कांग्रेसी थे। हरियाणा में जब इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार बनी तो वो पाला बदल लिए। केंद्र में जब मोदी की सरकार बनी तब वो भाजपाई हो गए। हरियाणा में चुनाव के समय सत्ता के लिए बीजेपी को करोड़ों डेरा प्रेमियों का वोट चाहिए थे। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह चलकर डेरा के दर तक गए। क्या उन्हें नहीं मालूम था कि डेरा पर रेप और मर्डर का रेप चल रहा है। ये केस उन्ही की पार्टी की सरकार ने खोला था, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। आज मोदी सरकार और बीजेपी ऐसे ड्रामा कर रही है जैसे कि उसे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था।
नेता और ढोंगी बाबा एक ही सिक्के के दो पहलू हो। एक दूसरे बाबा हैं। संत हैं। हरियाणा के ही यादव हैं। नाम है बाबा रामदेव। कहने को आज देशभक्ति, स्वदेशी और योग का ठेका ले रखा है। भगवा चोला पहनकर मोदी के साथ ठिठोली करते हैं। क्या आप जानते हैं कि उन पर किस-किस तरह के केस है। कांग्रेस सरकार के समय खुलासा हुआ था कि उत्तराखंड के उनकी फैक्ट्री में जो कथित आयुर्वेदिक दवाएं बनाई जाती हैं, उसमें इंसानी हड्डियां और खोपड़ी का इस्तेमाल होता है। छापेमारी में अनगिनत हड्डियां और खोपड़ियां मिली थीं। उनकी फैक्ट्री में मज़दूरी नियमों को नहीं माना जाता। 8 घंटे की जगह कई कई घंटे काम लिया जाता है। पंतजलि के नाम पर जो प्रोडक्ट वो बेचते हैं, वो छोटी फैक्ट्रियों से बनकर आता है। बस लेवल पंतजिल का लग जाता है। सरकारी संस्थाओं ने कई बार उनके नूडल्स से लेकर शहद तक को घटिया स्तर का पाया है। लेकिन बाबा का धंधा चोखा चल रहा है। एक और बाबा हैं। पहले मठ में रहते थे। आजकल एक प्रदेश की सरकार चला रहे हैं। संत तो सांसारिक मोहमाया से दूर होता है। ये लेकिन ये बाबा सीधे सत्ता सुख भोग रहे हैं। इनके भी माथे पर अपराध का कलंक है। आईपीसी की धारा 147 यानी दंगा करना, 148 यानी दंगे में घातक हथियार का इस्तेमाल करना, 295 यानी दूसरे धर्म या पूजा स्थल का अपमान करना,  297 यानी कब्रिस्तानों पर कब्ज़ा करना, 153A यानी धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर लोगों को लड़ाना-भिड़ाना,  307 यानी हत्या की कोशिश, धारा 302 यानी हत्या और धारा 506 आपराधिक धमकी देने के केस चल रहे हैं।

ये सारी बातें आज हम आपको इसलिए बता रहे हैं ताकि आपकी आंखें खुलें। आप पूजा कीजिए। आस्था रखिए। ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन धर्म की आड़ में बाबा बने ढोंगियों से बचिए। ये भी हमारी आपकी तरह आम इंसान है। केवल धर्म और भगवान का डर दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। इनको शह देते हैं नेता लोग और पार्टियां। आप बाबा बन गए। संत बन गए। जाइए प्रभु का नाम जपिए। राजनीति मत कीजिए। देशभक्ति मत सिखाइए। धर्म का पाठ मत पढ़ाइए। उम्मीद है कि मेरी ये समझाइश आपके बहुत काम आएगी।  

Thursday, August 24, 2017

तलाक़, हलाला और ईद्दत की मेहर मोदी-शाह से वसूलेंगे नीतीश

ऐसी चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल करनेवाले हैं। हालात भी कुछ इसी तरह के इशारे कर रहे हैं। कई मंत्री काम के बोझ तले दबे हैं। एक-एक मंत्री कई-कई विभाग चला रहा है। ऊपर से अमित शाह राज्यसभा पहुंचने के बाद रोज नए-नए दोस्त और दुश्मन बना रहे हैं। जब नए दोस्त बनेंगे तो दोस्ती का कुछ तकाज़ा भी होगा। कुछ तगादा भी होगा। इसलिए भी मोदी को मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की सख़्त ज़रुरत है।

जितनी मुंह उतनी बातें। कोई कह रहा है राजनाथ सिंह से होम मिनिस्ट्री लेकर मोदी अपने प्रिय अमित शाह के हवाले कर देंगे। राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय थमा दिया जाएगा। वैसे भी मनोहर पर्रिकर के गोवा जाने के बाद इस मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास है। इधर चीन और पाकिस्तान भी रोज़ नाक में दम किए हुए हैं। इसलिए मोदी चाहते हैं कि रक्षा मंत्रालय लेकर ठाकुर साहेब बॉर्डर पर जाकर लड़े-भिड़े। ठकुरैती दिखाएं। देशभक्ति दिखाएं। जेटली जी ख़ज़ाना पर कुंडली मारकर बैठे रहेंगे।
चर्चा पीयूष गोयल और नीतिन गडकरी भी चल रही है। वेंकैय्या नायडू के उप राष्ट्रपति बन जाने के बाद उनका विभाग भी खाली है। पीयूष गोयल को प्रोमोशन देकर कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। उनके विभाग में सभी तरह की उर्जा विभागों को समेट दिया जाएगा। कहा तो ये भी जा रहा है कि सिफारिश को मानते हुए नरेंद्र मोदी इस बार सभी तरह के परिवहन को जोड़कर सुपर ट्रांसपोर्ट विभाग बना देंगे, जिसमें रेल, हवाई जहाज़, सड़क, जल और तमाम तरह के परिवहन तत्व शामिल होंगेय़ इस विभाग की कमान नीतिन गडकरी को दिया जाएगा। लेकिन इस बात को लेकर मुझे संदेह है।
अभी अभी बिहार में नरेंद्र मोदी और अमित शाह तलाक़, हलाला और ईद्दत के बाद नीतीश कुमार को वापिस घर ले आए हैं। बदले में वो मेहर तो वसूलेंगे हीं। अंदाज़ा है कि अपने किसी चहेते के लिए रेल मंत्रालय की मांग पर अड़ेंगे। वैसे भी नीतीश ख़ुद रेल मंत्री रह चुके हैं। रेलवे से उनका पुराना प्यार जगज़ाहिर है। दूसरी बात ये इस मंत्रालय की जड़ें बिहार में बेहद गहरी हैं।
इतिहास अगर खंगाल कर देखें तो देश के पहले उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम भी इस मंत्रालय को संभाल चुके हैं। वो देश के दूसरे रेल मंत्री बने थे। उनके बाद राम सुभग सिंह रेल मंत्री रहे। ललित नारायण मिश्र भी ये मंत्रालय संभाल चुके हैं। केदार पांडे और जार्ज फर्नाडीज के पास भी ये मंत्रालय रहा है। नीतीश के अलावा लालू प्रसाद भी इस मंत्रालय की शोभा बढ़ा चुके हैं।
अब राजनीति की भाषा से इस मंत्रालय की अहमियत को समझिए। रेल में बड़ा-बड़ा ठेका छूटता है। रेलवे के ज़रिए नौकरी देकर बहुतों पर चुनावी उपकार भी किया जा सकता है। कई तरह की कमेटियां हैं। इन कमेटियों में नेताओं को बिठाकर उपकृत किया जा सकता है। दूसरे अर्थों में भी इसकी अहमियत को समझिए। साल 2009 के आम चुनावों में बिहार में बीजेपी को 12 सीटें मिली थी। लेकिन 2014 में 22 पर पहुंच गई। साल भर बाद जब विधानसभा चुनावों की बारी आई तो मोदी का जादू नहीं चला। बीजेपी ने साल 2010 के विधानसभा में चुनावों में 91 सीटें हासिल की थी। 2015 में पार्टी को 38 सीटों का घाटा हुआ। वो 53 सीटों पर सिमट गई। ऐेसे में मोदी और शाह के मिशन 360 में बिहार बहुत अहमियत रखता है। पार्टी के बड़े और समझदार नेता कतई नहीं चाहेंगे कि जो स्थिति उनकी विधानसभा चुनावों में हुई वही आम चुनावों में हो। इसलिए मेरी समझ से इस फेरबदल में नीतीश का पलड़ा ज़्यादा भारी रहने की उम्मीद जगती है।