Thursday, December 13, 2018

क्या मायावती ने अपने फायदे के लिए बुना राहुल के लिए पॉलिटिकल हनीट्रैप?

हिंदी पट्टी के तीन प्रदेशों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीएसपी ने विधानसभा चुनाव के दौरान काग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को खूब आंखें दिखाई। ये संदेश दिया कि उनकी सियासी हैसियत राष्ट्रीय पार्टी से कमतर नहीं है। लेकिन  चुनाव बाद जब नतीजे आए और कांग्रेस बहुमत से दो फर्लांग दूर रह गई तो मायावती ने फौरन बिन मांगे राहुल गांधी को समर्थन दे दिया। उनकी देखा-देखी समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को सपोर्ट कर दिया। अगर मायावती के कांग्रेस के सामने बिछने के अंदाज की गहराई को देखें तो समझ एक नजर में ये समझ पाना मुश्किल है कि समर्थन देना उनकी मजूरी है या फिर कोई गहरी सियासी चाल। तमाम नफा-नुकसान को तौलने के बाद इसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि ये बहनजी का तिकड़म है। अपने सियासी फायदे की खातिर उन्होने राहुल गांधी को फंसाने के लिए हनीट्रैप बिछाया है। 

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे बहुजन समाज पार्टी के लिए अच्छे संकेत लेकर नहीं आए, जिसकी आस लगाए मायावती बैठी थी। छत्तीसगढ़ में मायवती ने जिस तरह चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से मुह मोड़कर कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले पूर्व सीएम अजीत जोगी से हाथ मिलाया था, उससे छत्तीसगढ़ में त्रिशंकु विधानसभा के आसार दिखने लगे। कुछ चैनलों के एग्जिट पोल ने अजीत जोगी और मायवती के गठबंधन को किंगमेकर के तौर पर पेश भी कर दिया। लेकिन वोटों की गिनती के दौरान ही हालात कुछ और हो गए। नतीजों में छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी को करीब 4 फीसदी वोट मिले और उसे सिर्फ 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कुछ यही हाल राजस्थान का भी रहा, जहां बीएसपी को 4 फीसदी वोट तो मिले। लेकिन सीट एक भी नहीं मिली। हालांकि एमपी में वो दो सीटें हासिल करने में कामयाब रही।
बीएसपी भले ही सीटों के गणित में पिछड़ गई हो। लेकिन पार्टी ये संकेत देने में सफल रही है कि अगर कांग्रेस 2019 में यूपीए का कुनबा बड़ा करना चाहती है तो बीएसपी के बिना बात नहीं बनेगी। राजस्थान और मध्य प्रदेश में जिस तरह सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा होने के बाद भी कांग्रेस जैसे-तैसे करके सरकार में आई। ऐसी सूरत और हालात में इन दोनों राज्यों में अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर होगा।
मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच केवल एक फीसदी वोटों का फासला रहा।   ऐसे में कांग्रेस के लिए भी मुफीद रहेगा कि इस राज्यों वो अगर 4-5 फीसदी वोट शेयर वाली बीएसपी को अपना साथी बना ले तो राह आसान हो जाएगी। बीएसपी को फायदा ये होगा कि उसे राष्ट्रीय पार्टी होने का तमगा कायम रहेगा।
कांग्रेस को समर्थन देते समय मायावती ने ये पहले ही साफ भी कर दिया कि ये सपोर्ट  केवल बीजेपी को रोकने के लिए है। अगर 2019 में कांग्रेस महागठबंधन बनाना चाहती है तो उस समय शर्तें अलग होंगी। अगर यूपी को खंगाले तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले कई बार कांग्रेस को इशारों ही इशारों में उसकी कमजोरी का अहसास कराया है। हालांकि अब इन तीन राज्यों के नतीजों के बाद कांग्रेस के सुर और तेवर हो सकता है कि बदला हुआ नज़र आए। लेकिन बीएसपी के वोट शेयर को देखते हुए कांग्रेस के लिए माया की अनदेखी करना आसान नहीं होगा।