Wednesday, June 22, 2011

और कितना झूठ बोलेंगी ममता बैनर्जी?


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी आजकल दिल्ली में डेरा डाली हुई हैं। दीदी की ईमानदारी और सादगी पर दिल दे चुके पत्रकार हर पल उन्हे घेरे रहते हैं। इस मौक़े का ‘दीदी’ भी भरपूर फायदा उठा रही हैं। जो मन में आ रहा है, मीडिया को बोल रही हैं। मीडिया भी बिना कोई सवाल खड़ा किए उनके जवाब को ज्यों का त्यों छाप देता है। दीदी के बेबाकीपन से कुछ गंभीर सवाल उभरे हैं, जिन पर बहस की पूरी गुंजाइश है। 
ममता दिल्ली में राज्य की ख़स्ताहाल माली हालत का रोना रो रही हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री दादा प्रणब मुखर्जी के सामने खाता बही भी लेकर बैठ चुकी हैं। सरकार को तर्क दे रही हैं कि उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वो राज्य की विधवाओं, विकलांगों और बुज़ुर्गों के पेंशन दे सकें। सूबे की कमाई का सत्तानवें फीसदी पैसा सैलरी देने में ही निकल जाता है। ममता आरोप मढ़ रही हैं कि वाममोर्चा ने चौंतीस सालों में बंगाल को लूट खाया है। बंगाल का दीवाला निकल चुका है। उन्हें विरासत में ऐसे राज्य की कमान मिली है, जो गले तक कर्ज़ में है। 
ममता ने ताल ठोककर दावा किया कि उन्हे मनमोहन सरकार से ख़ैरात नहीं चाहिए। वो अपना हक़ मांगने आई हैं। उन्हें सरकार से स्पेशल पैकेज की ज़रुरत नहीं है। ममता का झूठ देखिए अगर उन्हें ख़ैरात या स्पेशल पैकेज नहीं चाहिए तो उनके वित्त मंत्री क्यों ऐसी योजना बनाई है, जिसके ज़रिए केंद्र से बीस हज़ार करोड़ रुपए का पैकेज झटका जा सके। ममता ने केंद्र से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की मद से पांच सौ करोड़ रुपए की मांग की है। आएला तूफान से बरबाद हुए सुंदरबन के लोगों को आबाद करने के लिए साढ़े चार सौ करोड़ रुपए चाहिए। मोगा टूरिस्ट सर्किट के लिए दो सौ करोड़ रुपए चाहिए। सड़क बनाने के लिए एक सौ पचास करोड़ रुपए चाहिए। तिस्ता सिंचाई योजना के लिए 130 करोड़ रुपए चाहिए। यानी ममता को केंद्र से लगभग चौदह सौ तीस करोड़ रुपए चाहिए। फिर भी ये ख़ैरात नहीं है। 
ममता का दूसरा झूठ देखिए। वित्त मंत्रालय के बाहर दावा किया कि उन्होंने एक महीने में ही अपने पिचहत्तर फीसदी वादे पूरे कर दिए। सिंगूर में चार सौ एकड़ ज़मीन किसानों को लौटा दी। दार्जिलिंग स्वायत्त परिषद का गठन कर दिया। दस हज़ार मदरसों को मान्यता दे दी। जंगलमहल अब नक्सलियों की गोलियों से नहीं थर्राता। दूसरी तरफ वो ये भी दावा कर रही हैं कि वो चाहती हैं कि बंगाल के लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान मिल सके। मुख्यमंत्री खुद मानती हैं कि राज्य की जनता को अभी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली हैं। फिर भी दावा कर रही हैं उन्होने पिचहत्तर फीसदी वादे पूरे कर दिए। जिस राज्य की जनता भूखी हो, प्यासी हो, रहने को घर न हो, तन ढ़कने को कपड़े न हों- फिर भी पिचहत्तर फीसदी वादे पूरे कर दिए। ममता के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि राज्य में कल कारखाने लगाने के लिए वो क्या कर रही हैं। सब हाथ को कैसे काम देंगी। जो राज्य कभी जूट और कॉटन के लिए मशहूर था, उस शोहरत को वो कैसे लौटाएंगीं। बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे मिलेगी। आम लोगों को सरकारी अस्पतालों में बेहतर और सस्ता इलाज कैसे मिलेगा। ममता के पास कोई जवाब नहीं है। वो केवल सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाती हैं और मीडिया को बुलाकर सबसे बड़े अफसर को सस्पेंड कर देती हैं। टीवी चैनलों और अख़बारों को देखकर जनता मान लेती है कि दीदी वाकई में काम कर रही हैं। 
दरअसल ममता मीडिया के ज़रिए केवल अपनी इमेज चमका रही हैं। वो केवल ढिंढोरा पीट रही हैं। थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि वामोर्चा ने पश्चिम बंगाल का बेड़ा गर्क कर दिया। हम अभी पूरे सूबे की बात न करे औऱ केवल राजधानी कोलकाता की बात करें तो असलियत जानकर हैरानी होगी। पिछले एक साल से कोलकाता नगरपालिका पर तृणमूल कांग्रेस का क़ब्ज़ा है। एक साल काफी होता है किसी नगरपालिका के लिए कि वो कुछ बुनियादी ज़रुरतों को पूरा कर सके। कम से राजधानी को बेहतर सड़क तो दे ही सकता है। बिजली के खंबों पर लाइट तो लगवा ही सकता है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पश्चिम बंगाल में झमाझम बारिश के बाद कोलकाता की सड़कों पर घुटने तकर पानी भर गया। कुछ इलाक़ों में पानी गर्दन तक पहुंच गया। यहां तक कि मुख्यमंत्री भी अपनी सरकारी गाड़ी में घंटों फंसी रही। 
सबसे अहम सवाल ये है कि ममता कब तक लोगों को सुनहरे सपने दिखाती रहेंगी। कब वो उन बुनियादी ज़रुरतों के लिए काम करना शुरु करेंगीं, जिसके लिए जनता तरस रही है। बहुत हो गया भाषणबाज़ी..जनता पिछले कई दशकों से यही सुनते आई है। आपने डिलीवरी का वादा किया था। अब समय आ चुका है कि आप डिलीवर करके दिखाएं ताकि जनता को लगे कि काम करने के लिए पांच साल का समय बहुत कम होता है।