Tuesday, August 16, 2011

अब अपने पंजे से भी डर लगने लगा है......


भगवान ने पंजा हमें भले कामों के लिए दिया है....लेकिन ये नामुराद पंजा धरती पर आने के बाद तरह तरह के धतकरम करता है....यक़ीन न हो तो ज़रा सोच कर देखिए...खून, बलात्कार, हत्या, अपरहण, फिरौती जैसी जघन्य घटनाओं के लिए क्या पंजा ज़िम्मेदार नहीं है? देश के धन को कालेधन में बदलने की कलाकारी क्या पंजा नहीं करता है? देश की सरहद की हिफ़ाज़त के लिए शहीद हो जाने वाले फौजियों की बेवाओं के लिए बने घरों में खादी, खाकी और लाल-नीली बत्ती वाले घुसकर बैठ जाएं तो क्या इसके लिए पंजा ज़िम्मेदार नहीं है? खेल में करोड़ों- अरबों रुपया इधर से उधर हो जाए तो क्या पंजे को ख़बर नहीं होगी? दूरसंचार में अगर एक लाख अट्ठहत्तर करोड़ रुपए का घपला हो जाए तो क्या पंजा गुनाहगार नहीं होगा?
हो सकता है कि आप ये कहकर संतोष कर लें कि पंजे का क्या दोष? पंजा तो वहीं करता है, जो उससे दिमाग़ कहता है...वो दिमाग़ का ग़ुलाम भर है....ये बात एक हद तक सही भी है....लेकिन.इंसानी फितरत अलग होती है...वो सोच को नहीं, अपराध करनेवाले को सबसे पहले गुनाहगार मानता है..
आज पंजे को कोसने का दिल चाह रहा है.....हो सकता है कि इस सोच पर भी धारा 144 या फिर कोई और धारा लागू हो जाए.....लेकिन दिल का क्या करें.....तबीयत हुई तो हुई....अब क़ानून की पेंचदिगियों को समझने का वक़्त नहीं है....अब समय आ चुका है ..लोगों को जगाने का....नींद में सोए लोगों को झकझोरने का....गूंगी-बहरी सरकार को हिलाने का.....ताकि तेरी, मेरी, उसकी बात सुनी जाए....सेंसेक्स और शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के साथ हिचकोले खाती सरकार को अवाम को भी ख़बर लगे..मुट्ठीभर लोगों की चिंता छोड़कर वो अवाम की ख़ातिर सोचे.....उस अवाम के बार में.....जो बीस रुपए की दिहाड़ी पर परिवार पालता है....एख जून की रोटी नसीब हो जाए तो अगले जून की गारंटी नहीं होती...तन पर कपड़ा नहीं होता....बीमार पड़ जाए और किसी खादी वाले की पैरवी न हो तो सफेद कोट वाले कैसे कुत्ते की तरह सलूक करते हैं....मनरेगा में काम मांगने जाते हैं तो सरपंच पहले अपने आदमी का ख़्याल रखता है....और उसे ठेंगे पर...किसी काम के लिए सरकारी दफ्तर चला जाए तो पसीने छूट जाते हैं....
इसलिए तो जनता चीख-चीख कर कह रही है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाना है....अवाम की इसी आवाज़ को अन्ना हज़ारे हवा दे रहे हैं....अवाम की ख़ातीर ही आंदोलन छेड़ रहे हैं...क्या यही अन्ना का अपराध है? अन्ना और उनकी टीम ने बस इतना भर गुनाह किया है कि सरकार भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कड़े क़ानून बनाए....चाहें इस देश का जितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो...अगर वो भ्रष्ट है तो उसके ख़िलाफड भी कार्रवाई हो....चाहे प्रधानमंत्री हों....मंत्री, सांसद या फिर अदालत....लोकतंत्र में क़ानून सबके लिए बराबर होना चाहिए....
लेकिन सरकार तो सत्ता मद में चूर है....जब उसने कॉमनवेल्थ घोटाले पर कुछ नहीं सुनाई –दिखाई दिया...जब उसे आदर्श घोटाले में कुछ नहीं दिखा....जब उसे टूजी में कुछ नहीं दिखा.. तो फिर वो भ्रष्टाचार कैसे देख ले....ऊपर से अन्ना की हिम्मत कि वो सरकार की आंख में उंगली डालकर भ्रष्टाचार दिखाने का साहस करे...सत्ता मद में चूर सरकार एक अदने से आदमी की बात क्यों मानें? क्या वो किसी पार्टी के अध्यक्ष हैं, जो उन्हे सिर आंखों पर बिठा ले? लोकशाही के बीज से जन्मे राजशाही के वो राजकुमार की तरह हैं अन्ना कि उनके कहने भर से प्रधानमंत्री पानी भरने लगें.... अन्ना उस भारत के निवासी हैं, जो सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे बाद में आता है....सरकार की प्राथमिकता में शानिंग इंडिया के लोग बसते हैं.....
तंगेहाल, फटेहाल, भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षित भारत के एक अदले ने निवासी अन्ना और उनकी टीम की इतनी जुर्रत कि वो सरकार को क़नून सिखाए....काम करने का तरीक़ा सिखाए....सरकार का पारा गरम हो गया....खादी का पारा गरम होगा तो खाकी वालों का लाल-पीला होना बनता ही है.....लिहाज़ा अनशन पर आमादा अन्ना को पकड़कर बंद कर दिया....अन्ना की सुर में सुर मिलानेवालों केजरीवाल, सिसोदिया, बेदी जैसे लोगों के भी होश ठिकाने लगाने की कोशिश की...सबको पकड़कर बंद कर दिया...सरकार के इशारे पर चकरघिन्नी की तरह नाच रही पुलिस को इलहाम हो गया कि टीम अन्ना अनशन की ज़िद में धारा एक सौ चवालीस तोड़नेवाली है....अब ये अन्ना लोकशाही के युवराज की तरह तो है नहीं कि किसी में जाकर धारा 144 को तोड़ें- मरोड़ें..और पुलिस खींसे निपोरती रहे....इसलिए पुलिस का ‘पंजा’ टीम अन्ना की गर्दन तक पहुंच गया....
सरकार की दलील देखिए.....क़ानून व्यवस्था को बनाए रखने की चिंता में अन्ना एंड टीम को पकड़ना पड़ा....क़ानून व्यवस्था की फिक्रमंद सरकार अगर इतनी बेताबी रोज़ दिखाती तो क्या दिल्ली में चलती गाड़ी में बलात्कारियों का पंजा आबरू तक पहुंच सकता है? क्या देश की राजधानी में दिन दहाड़े डाका पड़ सकता था.....सरकार साबित कर रही है कि उसकी नज़र में क़ानून व्यवस्था में अवाम की सुरक्षा नहीं है,.....उसके लिए क़ानून व्यवस्था इंडिया के ख़ासमख़ास लोग के लिए हैं....
अन्ना के हाथ में लाठी नहीं है...गोली नहीं है....फिर भी सरकार बौखला रही है....क़ानून के तरह तरह के पाठ पढ़ा रही है.....झपट्टा मारकर पंजे में वोट लेनेवाली सरकार को अभी वो दूसरा पंजा नहीं दिख रहा.....लरज़ती आवाज़ के बाच वो अन्ना के कांपते हुए पंजे की भाषा नहीं पढ़ पा रही है....साल 74 में भी देश ने एक बूढ़े इंसान की लरज़ती हुई सुनी थी....कांपते हुए पंजे देखे थे....आज भी उनकी वो आवाज़ गूंजती है....उस हांड-मांस के बूढ़े आदमी का नाम जयप्रकाश था, जिन्होने पटना की एक रैली में कहा था...’डरो मत....बूढ़ा ज़रुर हो गया हूं लेकिन मरा नहीं हूं..’ इसी के बाद दिल्ली में उद्घोष हुआ था.....रामधारी सिंह दिनकर की भाषा में जनता चीख पड़ी थी.....सिंहासनम खाली करो कि जनता आती है...