Saturday, August 26, 2017

हरियाणा में हिंसा का नंगा नाच के लिए तीन ज़िम्मेदार

हरियाणा जिस तरह से पूरी तैयारी के साथ अराजकता, हिंसा और क़त्ल ओ ग़रद का नज़ारा नज़ीर बनाकर देश में पेश किया गया, उसके लिए देश कभी बीजेपी और मोदी सरकार को माफ नहीं करेगा। मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी किसी कोर्ट ने किसी भी प्रधानमंत्री को काम-काज करने क शऊर बताया हो। ये नज़ीर भी इस सरकार ने पेश कर दी। निर्दोषों की लाश, चीख-पुकार, आग-धुंए का गुबार देखने के बाद पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट को कहना पड़ा कि प्रधानमंत्री जी आप इस देश के पीएम हैं। बीजेपी के नहीं। पंचकूला और हरियाणा भी इसी देश का हिस्सा है।
इन लाशों के ढेर पर मेरी नज़र में तीन दोषी बैठे हैं। पहला, खुद रेप कांड का आरोपी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह इंसां है। दूसरी बीजेपी के नेता और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं, जिनका पालन-पोषण संघ की शाखा में हुआ है। तीसरे दोषी इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने अपने आंखों के सामने ये सब होते देखा। घटना की निंदा कर अपना राजधर्म पूरा कर लिया।

हरियाणा, पंजाब और दिल्ली का बच्चा-बच्चा जानता था कि डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां के कोर्ट में पेश होने पर क्या-क्या हो सकता है। मीडिया और कोर्ट ने कई दिनों पहले ही इसकी आशंका जताकर सरकार को आगाह कर दिया था। लेकिन सरकार कान में तेल डालकर सोई रही।  सरकार इस क़दर हालात को नहीं संभाल पाई कि कोर्ट को कहना पड़ा कि जमा हो चुके लाखों डेरा समर्थकों को खदेड़ने में विफल डीजीपी को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। लेकिन कोर्ट से फटकार सुनने के बाद भी सरकार बेशर्मी पर उतारू रही। गृह सचिव अच्छे काम काज के लिए डीजीपी की पीठ थपथपाते रहे।
वोटों के लिए कोई सरकार किसी यौन अपराधी से इस तरह जुड़ सकती है, विश्वास नहीं होता। चुनाव से पहले डेरा प्रेमियों का वोट पाने के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही रेपिस्ट राम के दर तक हो कर आ चुके हैं। वो भी तब जब उनकी पार्टी से चुनकर प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने उसके खिलाफ सीबीआई को लगाया था। क्या मोदी और शाह राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी हैं कि वो रेपिस्ट राम का करतूत नहीं जानते थे। साध्वियों को दर्द नहीं समझते थे। कहने में शर्म आती है लेकिन ये सच है कि सत्ता और वोट की लालच में दोनों ने धृतराष्ट्र बनने में ही भलाई समझी। हरियाणा सरकार, तमाम मंत्री और खुद मुख्यमंत्री सरकार के दरबार में शीश नवाने जाते ही रहते हैं। समझ में नहीं आता कि वोट बैंक का ऐसा आपराधिक मोह हमारी राजनीति को कहां ले जाएगा?
राम रहीम इसलिए इतना ताक़तवर, असरदार और दमदार बन पाया क्योंकि हर राजनीतिक पार्टी उसके चरणों में लोटती रही। पहले कांग्रेस ने ये नाटक किया। फिर ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने किया। अकालियों ने भी वही किया। वहीं काम अब वो पार्टी कर रही है, जो दावा करती है कि देश में आज वो सब हो रहा है, जो पहले साठ सालों में नहीं हुआ। देश बदल रहा है। अच्छे दिन आनेवाले हैं। ।

देश हरियाणा की हिंसा और निर्दोष नागरिकों की सड़कों पर प्रदर्शन के दौरान हत्या का घिनौना चेहरा  देख चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चाहिए कि मनोहर लाल खट्‌टर को बर्खास्त कर दें। खट्‌टर को चाहिए कि जाने से पहले डीजीपी को बर्खास्त कर दें। ये मांग उठने भी लगी है। इसमें राजनीति नहीं देखी चाहिए। सत्रह साल पहले जिस तरह से गुजरात दंगे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म की याद दिलाते हुए बर्ख़ास्तगी की कार्रवाई शुरु की थी। बेशक़ लाल कृष्ण आडवाणी ने बचा लिया था। आज वही मंज़र ख़ुद मोदी के सामने हैं। आज वो प्रधानमंत्री हैं। खट्टर मुख्यमंत्री हैं। प्रधानमंत्री राजधर्म की नसीहत दे रहे हैं। देश की आंखें खुल चुकी हैं। प्रधानमंत्री जी अब आप भी आंखें खोलिए।

डेरा हिंसा ने खोलकर दी बीजेपी वालों की सोच और नीयत

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के बाद भड़की हिंसा ने दो बातें साफ कर दीं। पहली बात तो ये कि इतिहास अपने आपको दोहराता है। दूसरी बात ये कि बीजेपी सरकार बातें तो महिलाओं के हित और विकास की करती है। लेकिन उसके नेता और सांसद महिला विरोधी मानसिकता दिखा रहे हैं। बीजेपी के दो सांसदों ने खुलकर रेपिस्ट राम रहीम का बचाव किया। सांसद साक्षी महाराज और सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलकर कहा है कि गुरुमीत राम रहीम सिंह निर्दोष हैं। एक साध्वी के कहने पर करोड़ों भक्तों की भावनाओं को रौंदकर डेरा सच्चा को जेल भेज दिया गया। साक्षी ने इसके लिए अदालत तक पर सवाल खड़ा कर दिया। ख़ैर इसको लेकर जब बवाल बढ़ा तो साक्षी अपने बयान से मुकर गए और स्वामी के मुंह पर ताला लगा हुआ है। लेकिन इन बयानों ने साफ कर दिया है कि बीजेपी के भीतर कैसे-कैसे नेता हैं , जो महिलाओं के लिए कैसे-कैसे नेक विचार रखते हैं।
दूसरी बात, गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से हरियाणा जला। उससे 17 साल पहले की घटना याद आ गई। इसी तरह से एख मामूली बात पर धर्मांध लोगों ने गुजरात में हिंसा का नंगा नाच किया था। हज़ारों बेगुनाह मारे गए थे। तब भी तबकी राज्य की सरकार हिंसा रोक पाने में नाकाम रही थी। या यूं कहें कि हिंसा रोकना नहीं चाहती थी। तब उस समय के प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री से नाराज़ हुए और राजधर्म पालन करने की नसीहत दे गए। आज वहीं हो रहा है। वो मुख्यमंत्री आज प्रधानमंत्री है। बताया जाता है कि हरियाणा में हुई हिंसा से अपने मुख्यमंत्री से नाराज़ हैं। आज भी वही हालात हैं। राज्य की बीजेपी सरकार ने जान बूझकर हिंसा होने दिया या फिर हिंसा रोकने में नाकाम रही। दोनों ही सूरत में बीजेपी सरकार का इक़बाल कम किया है। यहां तक हाई कोर्ट ने भी तल्ख़ टिप्पणी कर दी कि अपने सियासी फायदे के लिए बीजेपी सरकार ने हरियाणा को जलने दिया। हरियाणा की हालिया हिंसा ने साफ कर दिया है कि सत्ताधारी पार्टी के भीतर महिलाओं के लिए कैसी सोच है। अदालत के बारे में क्या धारणा है। सियासी फायदे के लिए उसकी नज़र में मासूमों की जान की कोई क़ीमत है। 

Friday, August 25, 2017

अपराध और राजनीति की मेल की पैदाइश है राम रहीम

बाबा गुरुमीत राम रहीम सिंह इंसां तो बहाना है। असल में हमें आपको जगाना है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत हैं। कहते हैं कि वो सभी धर्म और जाति को मानते हैं। उनके लिए सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है। इसलिए इंसां का तखल्लुस यानी टाइटल लगाते हैं। संत भी हैं और इंसान भी तो फिर ये कहां का तकाज़ा है कि साध्वी का रेप कर दें। गवाह की हत्या करा दें। सीबीआई के चार्जशीट में साफ है कि बाबा के रेप से आज़िज आकर 24 साध्वियों ने डेरा छोड़ दिया। जिन साध्वियों तक सीबीआई नहीं पहुंच पाई, वो आंकड़ा इसमें नहीं है। डरा प्रमुख को करनी की सज़ा हुई तो प्रेमी भड़क गए। जगह-जगह पर हिंसा, आगज़नी और मारकाट मची है। अब तक तीन लोग मारे जा चुके हैं। डर इस बात का है कि ये हिंसा कई दिनों तक चलेगी। क्योंकि इससे बचने की सरकार की तैयारी नहीं थी या थी भी तो अधूरी थी।

इस हिंसा और अपराध का सीधा वास्ता राजनीति से है। ये बाबा लोग दुनिया को संत बनने का ढोंग कर दिखाते हैं। लेकिन उनका असली धंधा कुछ और होता है। इन अपराधों को छिपाने के लिए उन्हें नेताओं के साथ ज़रुरत होती है। इन ढोंगी बाबाओं के अंधभक्तों की संख्या भी लाखों-करोड़ों की होती है, जो उनके इशारे पर मरने कटने को तैयार रहते हैं। ये संख्या नेताओं को ललचाती है। ये बात डेरा सच्चा पर भी लागू होती है।
शुरू में वो कांग्रेसी थे। हरियाणा में जब इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार बनी तो वो पाला बदल लिए। केंद्र में जब मोदी की सरकार बनी तब वो भाजपाई हो गए। हरियाणा में चुनाव के समय सत्ता के लिए बीजेपी को करोड़ों डेरा प्रेमियों का वोट चाहिए थे। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह चलकर डेरा के दर तक गए। क्या उन्हें नहीं मालूम था कि डेरा पर रेप और मर्डर का रेप चल रहा है। ये केस उन्ही की पार्टी की सरकार ने खोला था, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। आज मोदी सरकार और बीजेपी ऐसे ड्रामा कर रही है जैसे कि उसे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था।
नेता और ढोंगी बाबा एक ही सिक्के के दो पहलू हो। एक दूसरे बाबा हैं। संत हैं। हरियाणा के ही यादव हैं। नाम है बाबा रामदेव। कहने को आज देशभक्ति, स्वदेशी और योग का ठेका ले रखा है। भगवा चोला पहनकर मोदी के साथ ठिठोली करते हैं। क्या आप जानते हैं कि उन पर किस-किस तरह के केस है। कांग्रेस सरकार के समय खुलासा हुआ था कि उत्तराखंड के उनकी फैक्ट्री में जो कथित आयुर्वेदिक दवाएं बनाई जाती हैं, उसमें इंसानी हड्डियां और खोपड़ी का इस्तेमाल होता है। छापेमारी में अनगिनत हड्डियां और खोपड़ियां मिली थीं। उनकी फैक्ट्री में मज़दूरी नियमों को नहीं माना जाता। 8 घंटे की जगह कई कई घंटे काम लिया जाता है। पंतजलि के नाम पर जो प्रोडक्ट वो बेचते हैं, वो छोटी फैक्ट्रियों से बनकर आता है। बस लेवल पंतजिल का लग जाता है। सरकारी संस्थाओं ने कई बार उनके नूडल्स से लेकर शहद तक को घटिया स्तर का पाया है। लेकिन बाबा का धंधा चोखा चल रहा है। एक और बाबा हैं। पहले मठ में रहते थे। आजकल एक प्रदेश की सरकार चला रहे हैं। संत तो सांसारिक मोहमाया से दूर होता है। ये लेकिन ये बाबा सीधे सत्ता सुख भोग रहे हैं। इनके भी माथे पर अपराध का कलंक है। आईपीसी की धारा 147 यानी दंगा करना, 148 यानी दंगे में घातक हथियार का इस्तेमाल करना, 295 यानी दूसरे धर्म या पूजा स्थल का अपमान करना,  297 यानी कब्रिस्तानों पर कब्ज़ा करना, 153A यानी धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर लोगों को लड़ाना-भिड़ाना,  307 यानी हत्या की कोशिश, धारा 302 यानी हत्या और धारा 506 आपराधिक धमकी देने के केस चल रहे हैं।

ये सारी बातें आज हम आपको इसलिए बता रहे हैं ताकि आपकी आंखें खुलें। आप पूजा कीजिए। आस्था रखिए। ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन धर्म की आड़ में बाबा बने ढोंगियों से बचिए। ये भी हमारी आपकी तरह आम इंसान है। केवल धर्म और भगवान का डर दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। इनको शह देते हैं नेता लोग और पार्टियां। आप बाबा बन गए। संत बन गए। जाइए प्रभु का नाम जपिए। राजनीति मत कीजिए। देशभक्ति मत सिखाइए। धर्म का पाठ मत पढ़ाइए। उम्मीद है कि मेरी ये समझाइश आपके बहुत काम आएगी।  

Thursday, August 24, 2017

तलाक़, हलाला और ईद्दत की मेहर मोदी-शाह से वसूलेंगे नीतीश

ऐसी चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल करनेवाले हैं। हालात भी कुछ इसी तरह के इशारे कर रहे हैं। कई मंत्री काम के बोझ तले दबे हैं। एक-एक मंत्री कई-कई विभाग चला रहा है। ऊपर से अमित शाह राज्यसभा पहुंचने के बाद रोज नए-नए दोस्त और दुश्मन बना रहे हैं। जब नए दोस्त बनेंगे तो दोस्ती का कुछ तकाज़ा भी होगा। कुछ तगादा भी होगा। इसलिए भी मोदी को मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की सख़्त ज़रुरत है।

जितनी मुंह उतनी बातें। कोई कह रहा है राजनाथ सिंह से होम मिनिस्ट्री लेकर मोदी अपने प्रिय अमित शाह के हवाले कर देंगे। राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय थमा दिया जाएगा। वैसे भी मनोहर पर्रिकर के गोवा जाने के बाद इस मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास है। इधर चीन और पाकिस्तान भी रोज़ नाक में दम किए हुए हैं। इसलिए मोदी चाहते हैं कि रक्षा मंत्रालय लेकर ठाकुर साहेब बॉर्डर पर जाकर लड़े-भिड़े। ठकुरैती दिखाएं। देशभक्ति दिखाएं। जेटली जी ख़ज़ाना पर कुंडली मारकर बैठे रहेंगे।
चर्चा पीयूष गोयल और नीतिन गडकरी भी चल रही है। वेंकैय्या नायडू के उप राष्ट्रपति बन जाने के बाद उनका विभाग भी खाली है। पीयूष गोयल को प्रोमोशन देकर कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। उनके विभाग में सभी तरह की उर्जा विभागों को समेट दिया जाएगा। कहा तो ये भी जा रहा है कि सिफारिश को मानते हुए नरेंद्र मोदी इस बार सभी तरह के परिवहन को जोड़कर सुपर ट्रांसपोर्ट विभाग बना देंगे, जिसमें रेल, हवाई जहाज़, सड़क, जल और तमाम तरह के परिवहन तत्व शामिल होंगेय़ इस विभाग की कमान नीतिन गडकरी को दिया जाएगा। लेकिन इस बात को लेकर मुझे संदेह है।
अभी अभी बिहार में नरेंद्र मोदी और अमित शाह तलाक़, हलाला और ईद्दत के बाद नीतीश कुमार को वापिस घर ले आए हैं। बदले में वो मेहर तो वसूलेंगे हीं। अंदाज़ा है कि अपने किसी चहेते के लिए रेल मंत्रालय की मांग पर अड़ेंगे। वैसे भी नीतीश ख़ुद रेल मंत्री रह चुके हैं। रेलवे से उनका पुराना प्यार जगज़ाहिर है। दूसरी बात ये इस मंत्रालय की जड़ें बिहार में बेहद गहरी हैं।
इतिहास अगर खंगाल कर देखें तो देश के पहले उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम भी इस मंत्रालय को संभाल चुके हैं। वो देश के दूसरे रेल मंत्री बने थे। उनके बाद राम सुभग सिंह रेल मंत्री रहे। ललित नारायण मिश्र भी ये मंत्रालय संभाल चुके हैं। केदार पांडे और जार्ज फर्नाडीज के पास भी ये मंत्रालय रहा है। नीतीश के अलावा लालू प्रसाद भी इस मंत्रालय की शोभा बढ़ा चुके हैं।
अब राजनीति की भाषा से इस मंत्रालय की अहमियत को समझिए। रेल में बड़ा-बड़ा ठेका छूटता है। रेलवे के ज़रिए नौकरी देकर बहुतों पर चुनावी उपकार भी किया जा सकता है। कई तरह की कमेटियां हैं। इन कमेटियों में नेताओं को बिठाकर उपकृत किया जा सकता है। दूसरे अर्थों में भी इसकी अहमियत को समझिए। साल 2009 के आम चुनावों में बिहार में बीजेपी को 12 सीटें मिली थी। लेकिन 2014 में 22 पर पहुंच गई। साल भर बाद जब विधानसभा चुनावों की बारी आई तो मोदी का जादू नहीं चला। बीजेपी ने साल 2010 के विधानसभा में चुनावों में 91 सीटें हासिल की थी। 2015 में पार्टी को 38 सीटों का घाटा हुआ। वो 53 सीटों पर सिमट गई। ऐेसे में मोदी और शाह के मिशन 360 में बिहार बहुत अहमियत रखता है। पार्टी के बड़े और समझदार नेता कतई नहीं चाहेंगे कि जो स्थिति उनकी विधानसभा चुनावों में हुई वही आम चुनावों में हो। इसलिए मेरी समझ से इस फेरबदल में नीतीश का पलड़ा ज़्यादा भारी रहने की उम्मीद जगती है।