Saturday, September 14, 2013

हे राम, आडवाणी के साथ ये क्या हो गया !

'परम' आदरणीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी सादर बहुत दिनों से सोच रहा था कि आपको एक 'पाती' लिखूं। आज लिख रहा हूं। जब आप आरक्षण के ख़िलाफ़ कमंडल थामे देशाटन पर निकले थे और जहां- जहां से आप गुज़रे थे, वहां काला धुआं छोड़ गए थे। हर तरफ ग़ुबार था। चीख-पुकार थी। कईयों की मांग से सिंदूर उजड़ गया था। कई बच्चे यतीम हो गए थे। आपकी वजह से ही कई बेवक़्त राम और अल्लाह को 'प्यारे' हो गए थे। उस समय हम आपसे सवाल पूछते थे तो प्रेस कांफ्रेस में आपके समर्थक पत्रकार तिलमिला जाते थे और हमें बताते थे कि उनका भगवा ब्रिगेड से कोई वास्ता नहीं हैं। वो हम जैसे नौजवान (उस समय) पत्रकारों को सही पत्रकारिता सीखा रहे हैं। बाद में समय ने उनका सही रंग दिखा दिया। ऐसे नसीहत देने वाले तीन पत्रकार आपकी कृपा से बीजेपी के सांसद हो गए। एक को आपने ऑफर दिया। लेकिन शायद गोविंदाचार्य जी के कहने पर उन्होंने आपका ये ऑफर ठुकरा दिया। आजकल रिटायर होने के बाद वो एक पाक्षिक पत्रिका निकाल रहे हैं। लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं कि अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी की तिकड़ी की तौर पर जाने जानेवाली पार्टी ( उस समय तक सिकंदर बख़्त साहिब चल बसे थे) में आपका चेहरा सबसे कट्टर के तौर पर जाना जाता था। आपने अपने दोनों साथियों को लगभग किनारे लगा दिया था। वो तो बस क़िस्मत की बात थी या शायद उससे कहीं ज़्यादा.....सहयोगियों का दबाव कि अटल जी की गाड़ी निकल पड़ी। क्योंकि आपको लोग बहुत कट्टर और अटल जी को लोग सेक्युलर (हालांकि आप इस शब्द को सुडो सेक्युलर मानते थे और शायद आज भी होंगे) मानते थे। आप दावा करते थे कि आपकी पार्टी सभी पार्टियों से जुदा है। आप चाल, चरित्र और चेहरे का दम भरते थे। आपके साथ -साथ आपके अंग्रेज़ी दां कुछ नेताओं और पत्रकारों ने इस नारे का अंग्रेज़ी में रुपांतरण किया- पार्टी विद अ डिफरेंस। आप दावा करते थे कि जनता दल, कम्युनिस्ट और कांग्रेसी सत्तालोलुप हैं। वो कुर्सी के भूखे हैं। देश और समाज ( आप समाज को केवल हिंदुओं से जोड़कर देखते थे ) के लिए काम नहीं करते। आपने अपने जीवन में इस देश का सही नाम कभी नहीं लिया। आप हमेशा 'हिंदुस्तान' को 'हिंदूस्थान' कहते रहे। इस कट्टरवादी छवि से आपका वोट बैंक बढ़ता जा रहा था। लेकिन हम आपके इस नारे से सहमत नहीं थे। क्योंकि आपकी पार्टी भी बाक़ी पार्टियों की तरह ही मतलबपरस्त दिख रही थी। हम आपके नारे ( पार्टी विद ए डिफरेंस) को पचाने को तैयार नहीं थे। लेकिन देखिए....कहते हैं न! स्वर्ग भी यहीं और नर्क भी। आपसे सियासत सिखनेवाला आपके ही गैंग का नरेंद्र मोदी कट्टरवादी छवि में आपसे आगे निकल गया। आप बिलबिलाने लगे। कुलबुलाने लगे। तमतमाने लगे। आपका बाग़ी चेहरे लोगों ने दिख लिया। और इसी के साथ आप औऱ आपकी पार्टी ने लगभग दो दशक बाद ये साबित कर दिया कि बीजेपी वाकई पार्टी विद ए डिफरेंस हैं। क्योंकि आज आपकी पार्टी में केवल डिफरेंस ही दिखाई दे रहा है। एक नहीं। श्री आडवाणी जी, आपके साथ पेशेवर तौर पर वक़्त गुज़ारा। आपसे सवाल-जवाब को लेकर बहस-मुबाहिस भी हुई। इन सबके लिए माफ कीजिएगा। लेकिन जाते -जाते एक बात और ......मैं आपको बताना चाहूंगा कि मैं धार्मिक हूं। पूजा-पाठ भी करता हूं। लेकिन कट्टर नहीं। किसी और मज़हब के लोगों के लिए दिल में नफऱत नहीं पालता। क्योंकि मेरा मज़हब ये नहीं सिखाता । इसलिए कुछ 'बनाने' के लिए कुछ 'तोड़ने' का जी नहीं चाहता और न ही इसके लिए किसी को उकसाता हूं। क्योंकि मुझे पता है कि जैसा बोऊंगा, वैसा ही काटूंगा। इस बात को अभी भी आप समझ लीजिए कि आपने जैसा बोया था, वैसा ही काट रहे हैं। लेकिन एक बात मानता हूं कि बीजेपी को सत्ता में लानेवाले आप ही थे। कभी आप संघ के प्रिय थे, जैसे कि आज मोदी हैं। आपने कट्टरता, अतिवादी और अतिरेक के सहारे पार्टी को कई बार सत्ता का सुख दिया। लेकिन ख़ुद कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। क्योंकि देश का मिज़ाज ही ऐसा नहीं कि वो किसी कट्टर और धर्मांध आदमी के हाथ में सत्ता की चाबी दे दे। यक़ीन मानिए...जब ये चाबी आपके नहीं मिली तो फिर किसी को नहीं मिलेगी। अपना ध्यान रखिएगा। सादर