Tuesday, August 6, 2019

खल गया एक सच्चे समाजवादी का जाना

सुषमा स्वराज नहीं रहीं। ये ख़बर सुनते ही सदमा सा लगा। सैद्धांतिक तौर पर उनकी पार्टी को नापसंद करने के बावजूद मैं उनको पसंद करता था। वजह बहुत साफ थी और वो ये कि वो बेहद व्यावहारिक और सादगीपसंद महिला थीं। आडंबरों से दूर। उनसे मेरी पहली मुलाकात नब्बे के दशक में दिल्ली के लोधी रोड वाले बंगले पर हुई। मुलाकात की वजह बने थे स्वर्गीय पत्रकार आलोक तोमर। आलोक जी के साथ उनके बेहद मधुर संबंध थे। पहली ही मुलाकात में ऐसा लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले हैं। उस मुलाकात में हमारे साथ अब इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर फोटोग्राफर अनिल शर्मा भी थे। उस मुलाकात की तस्वीर संभव है कि अनिल ने संभालकर रखी हो। उसके बाद तो न जाने कितनी बार उनसे मुलाकात हुई। कई बार मैं फोनकर मिलने जाता था। कई दिनों तक मुलाकात नहीं हो पाती थी तो खुद फोनकर संसद भवन बुलाती थीं। उस समय मेरे पास पीआईबी कार्ड नहीं होता था। सो मिलने के लिअ अपनी सेकेट्री से गेट पास पहले से ही बनवा कर रखती थीं।

67 साल की उम्र में सुषमा जी कई ऐसे काम कर गईं, जिसके लिए वो हमेशा-हमेशा के लिए याद किया जाएगा। 25 साल की उम्र में कैबिनेट मंत्री बन जाना। फिल्म इंडस्ट्री को उद्योग का दर्जा दिलाना। दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद क्राइम को कंट्रोल करने के लिए की गई उनकी पहल-मैं रात भर जागूंगी ताकि दिल्ली वाले चैन की नींद सो सके। इस ऐलान के साथ रात को अचानक दिल्ली में गश्त लगाना। बैल्लारी के चुनाव में हार जाने के बाद सिर मुंडाने का ऐलान और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की उनसे ऐसा ना करने की अपील- एक बेहतर सियासी रिश्ते की मिसाल छोड़ देना। गीता को वापस भारत लाना। मुझे याद है कि टीवी पर चलनेवाले एक विज्ञापन को लेकर सुषमा जी बहुत व्यथित थीं। लेकिन वो उसे रोक नहीं पा रही थीं। निजी बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा-चंदन टीवी पर......विज्ञापन को देखे हो। बांसुरी (उनकी बिटिया) ग्यारह साल की हो चुकी है। बताओ वो विज्ञापन देखकर क्या सोचेगी। क्या ये विज्ञापन बच्चों के साथ बैठकर देखा जा सकता है। बाद मे मंत्री बनने के बाद उन्होंने उस विज्ञापन को बैन किया।
सुषमा जी ना केवल लाल कृष्ण आडवाणी और दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की प्रिय थी। बल्कि समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं दिवंगत चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडीस, दिवंगत चौधरी देवीलाल की भी दुलारी थीं। वो दिल्ली मे डी 4 की सदस्य रहीं। डी 4 यानी अटल-आडवाणी के युग में संसद में कांग्रेस और यूनाइटेड फ्रंट सरकारों को घेरने के लिए धारदार भाषण देनेवालों का एक समूह, जिनमें दिवंगत प्रमोद महाजन, अरुण जेटली, वेकैंय्या नायडू और सुषमा स्वराज। उनका मीडिया से भी बहुत शानदार नाता रहा। वो मीडिया वालों से जब मिलती थीं-बतियाती थीं तो लगता ही नहीं था कि वो बहुत बड़े कद की नेता हैं। उनसे जब फोन पर बात नहीं हो पाती थी तो वो कॉलबैक करती थीं। ऐसी थी समाजवाद प्रकृति-प्रवृति की सुषमा स्वराज। उनका जाना सही मायनों सबको खल गया। सुषमा जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।