Friday, November 21, 2008

बीजेपी को महंगी पड़ेगी कांग्रेस


दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया है मंहगी पड़ी है कांग्रेस। ये नारा बीजेपी के नए चाणक्य अरूण जेटली की दिमाग़ की उपज है। उन्हे लगता है कि जिस तरह से नारों के दम पर उन्होने गुजरात का युद्द जीत लिया था, वैसे ही दिल्ली जीत लेंगे। लेकिन कंप्यूटर युग में आंकड़ों के सहारे राजनीति करनेवाले जेटली भूल गए कि चमकदार नारों से चुनावी जंग नहीं जीती जाती। अगर ऐसा ही होता तो बीजेपी के महापराक्रमी दिवंगत प्रमोद महाजन का इंडिया शाइन का नारा टांय-टांय फिस्स नहीं होता और न ही अटल आडवाणी के सत्ता सुख के सपनों पर पानी फिरता। जेटली ने एमसीडी ( दिल्ली नगर निगम ) के चुनावी नतीजों को चरम-परम सत्य मानकर चुनावी चक्रव्यूह तैयार कर लिया। उन्हे सौ फीसदी यक़ीन था कि जिस तरह से नगर निगम के चुनावों में दिल्ली के मतदाताओं ने सीलिंग के मुद्दे पर नाराज़ होकर कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंका है। ठीक वैसे ही विधानसभा के चुनावों में महंगाई और आतंकवाद से परेशान दिल्ली की जनता कांग्रेस को फिर से जड़ से उखाड़ देगी। अब जेटली साहेब को कौन समझाए कि डेटा में उलझी राजनीति में सपने देखना अच्छी बात है। लेकिन दिन में आंखें खोलकर सपने देखने में ख़तरा ज़्यादा होता है।

दिल्ली के मतदाताओं की बात करें तो देश के दूसरे राज्यों, शहरों और महानगरों से इसकी मानसिकता बेहद अलग है। यहां के मतदाताओं की सोच ये है कि वो देश की राजधानी का मतदाता है। जातिगत और धार्मिक समीकरण इस राज्य में मुद्दों के आगे कमज़ोर पड़ जाते हैं। बीजेपी ने महंगाई की डुगडुगी सबसे पहले पीटनी शुरू कर दी। लेकिन शुरूआती दौर में बीजेपी को समझ में आ गया कि ये डुगडुगी बहुत देर नहीं बजेगी। दिल्ली का मतदाता जानता है कि महंगाई केवल दिल्ली में नहीं है। ये तस्वीर देश दुनिया की है। ऊपर से शीला सरकार के हाथ में दूसरे राज्यों की तरह ताक़त नहीं है। अगर महंगाई केंद्र की थोपी हुई है तो बीजेपी शासित राज्यों में मंहगाई क्यों है। क्यों नहीं जनता की भलाई के लिए बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें राजस्व का घाटा सहकर जनता को मंहगाई से बोझ से बचा रही हैं। दरअसल बीजेपी 1998 के चुनाव में जो प्याज़ के आंसू रो चुकी है, उसका बदला वो मंहगाई के ज़रिए चुकाना चाहती है। लेकिन इस मुद्दे पर बीजेपी का दाल नहीं गल रही।

दिल्ली में एक के बाद एक कई बम ब्लास्ट हुए। बीजेपी को लगा कि इस मुद्दे को ज़ोर शोर से उछालने पर सत्ता का लड्डू हाथ लग सकता है। आतंकवाद की आड़ में उसने लोगों को डराना शुरू कर दिया। मतदाताओं को समझाने में लग गए कि शीला और कांग्रेस सरकार के रहते आतंकवादियों के हौंसले बेहद मज़बूत है। आम आदमी महफूज़ नहीं है। कांग्रेस सरकार ने पोटा ख़त्म कर दिया। लेकिन ये नारा भी फिस्स हो गया। कई इलाक़ों में मतदाताओं ने बीजेपी उम्मीदवारों से सीधे पूछ लिया कि केंद्र में जब बीजेपी की सरकार थी तब संसद पर हमला क्यों हुआ। केंद्र में जब एनडीए की सरकार थी तब आतंकवादियों ने काठमांडु से प्लेन हाइजैक कर कांधार ले जाने में कामयाब कैसे हुए। एनडीए सरकार की नीति इतनी सख़्त थी तो सरकार ने आतंवादियों को छोड़ा क्यों। बीजेपी के शासनकाल में गुजरात और राजस्थान में आतंकवादी वारदातें कैसी हुई। एनडीए के राज में पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों के साथ करगिल में कैसे घुस गए। एक साथ इतने सारे बेचैन करनेवाले सवालों के जवाब बीजेपी अभी तक नहीं तलाश पाई है।

कांग्रेस ने बीजेपी के हर निगेटिव प्रचार का पॉज़िटिव जवाब दिया। कांग्रेस ने दो टूक पूछा कि दिल्ली में विकास के काम हुए हैं कि नहीं। दिल्ली में फ्लाई ओवर्स बनें हैं कि नहीं। दिल्ली में फुटओवर ब्रिज बने हैं कि नहीं। दिल्ली में हरियाली बाक़ी शहरों से ज़्यादा है कि नहीं । अनधिकृत कॉलोनियों को प्रोविज़नल सर्टिफिकेट दिए गए हैं कि नहीं। इन कॉलोनियों में पानी, बिजली , सड़क की सुविधा दी गई है कि नहीं। दिल्ली में 32 सरकारी अस्पताल हैं कि नहीं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे दसवीं के इम्तिहान में पास होने का रिकार्ड बना रहे हैं कि नहीं। बीजेपी एक बार फिर इतने सारे सवालों को सुनकर चकरा गई। बीजेपी के चाणक्य अरूण जेटली दूर की कौड़ी खोज कर लाए। ढ़िंढोरा पीटकर कहने लगे कि ये विजय कुमार मल्होत्रा की देन है। मल्होत्रा ने 1967 में जो सपना देखा था, वो अब पूरा हो रहा है। विकास पुरूष मल्होत्रा ने 67 में पहला फ्लाई ओवर बनवाया था। अब बीजेपी से कोई ये पूछे कि मल्होत्रा के बाद मदन लाल खुराना सत्ता में आए। साहिब सिंह वर्मा आए। सुषमा स्वराज आईँ। लेकिन उन्होने क्यों नहीं विजय कुमार मल्होत्रा के सपने को साकार किया। ये सपने शीला सरकार को ही क्यों साकार करने पड़े।

इस बीच राजेंद्र नगर सीट से बीजेपी प्रत्याशी पूरनचंद योगी की रहस्यमय हालत में मौत हो गई। उनकी लाश घर में पंखे से लटकी हुई मिली। लेकिन बीजेपी के बड़े नेता इसे दबाने में लगे रहे। तीन बार के विधायक की मौत को ज़्यादा तूल नहीं देना चाह रहे थे। क्योंकि बीजेपी नेताओं को शक़ है कि अगर जांच ने चुनाव से पहले रफ्तार पकड़ ली तो पार्टी की फज़ीहत हो सकती है। इस रहस्यमय मौत में बीजेपी के स्थानीय नेताओं की साज़िश हो सकती है। क्योंकि तीन बार के विधायक योगी को टिकिट पाने के लिए इस बार दिन रात एक कर देना पड़ा था। ये एक औऱ बड़ी वहज है, जिसकी वजह से बीजेपी की इमेज और भी ख़राब हुई है। रही सही कसर बीजेपी की नेता पूनम आज़ाद ने पूरी कर दी। उन्हे टिकिट नहीं दिया गया। उन्होने खुलकर बीजेपी में पंजाबी लोगों का इज्ज़त है। भोजपुरी बोलनेवालों से बीजेपी बैठकों में चटाई बिछाने का काम कराती है। शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ खड़े बीजेपी उम्मीदवार विजय जॉली की प्रैस कांफ्रेस में बीजेपी कार्यकर्ताओं में जूते चप्पल चलने से और भी फज़ीहत हुई हैं।

दिल्ली के चुनावों में बीजेपी का डेटा गणित ये है कि 70 विधानसभा सीटों में कम से कम 60 पर उनकी जीत होगी। इतना आत्मविश्वास आज तक किसी भी पार्टी में नहीं देखा गया।बीजेपी को लगता है कि दिल्ली में बीएसपी के ताक़तवर होने से कांग्रेस कमज़ोर होगी। लेकिन वो भूल रही है कि बीएसपी कई जगहों पर बीजेपी का खेल बिगाड़ रही है। अभी तक का चुनावी गणित जो संकेत दे रहा है , उसके मुताबिक़, शीला सरकार के पांच मंत्री भारी बहुमत से जीत रहे हैं। योगानंद शास्त्री को कड़ी चुनौती मिल रही है। 69 सीटों में से कांग्रेस को अगर 42 से 45 सीटें मिल जाए तो हैरानी वाली बात नहीं होनी चाहिए। तब जाकर शायद एक बार फिर बीजेपी को ये बात समझ आ जाएगी कि चमकदार नारों के शस्त्र के सहारे चुनावी जंग नहीं जीती जाती।