Sunday, September 28, 2014

तो क्या अब ममता बनर्जी की बारी है


पहले लालू प्रसाद और उसके बाद जयललिता को आमदनी से ज़्यादा कमाई के मामले में जेल हुई है. लालू की तरह जया भी सियासत के मैदान में खेत हो गयी हैं. अब अगर बड़ी अदालत चाहे तो उनपर रहम कर सकता है. लेकिन फिलहाल रिहाई की रौशनी बेहद काम दिखाई देती है. कहते हैं की इन्साफ देर से मिले तो इन्साफ नहीं कहलाता. लेकिन लालू और जया के मामले में अदालत ने देर से ही सही, इस तरह का फैसला देकर नज़ीर क़ायम किया है. चाहें लालू हो, जया हो, ओम प्रकाश चौटाला हो या फिर सुखराम....इस सबका जेल जाना बनता थाक्योंकि लोगो में ये धरना बन गयी थी की बड़े लोगो को सजा नहीं होती. लोगो का ध्यान भटकने के लिए सुरेश कलमाड़ी, राजा और कनिमौली जैसे लोगो को कुछ दिनों जेल में रहना पड़ता है और फिर आज़ाद हो जाते हैं. औब सवाल ये है क्या औब कोर्ट से मुलयम सिंह यादव, मायावती और ममता बनर्जी जैसे लोगों को सजा होगी? मुलायम और माया के बारे में सब जानते हैं लेकिन कितने लोगो तक अभी ममता की कारगुज़ारी की कोई खबर है?
पश्चिम बंगाल की विद्रोही तेवर वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने हिंदू महासभा के नेता एन सी चटर्जी के बेटे और मशहूर   वकील सोमनाथ चटर्जी को जाधवपुर से लोकसभा का चुनाव में हराया था। लोग ये सोचकर खुश थे कि राजनीती में पाखंड का दिन जाने वाला लहै. ज़मीं से जुड़े लोग राज करेंगे. वो ईमानदार होंगे. क्योंकि एमपी बनने के बाद भी ममता कालीबाडी के अपने मोहल्ले से पानी भरकर घर ले जाती थी. ममता की यह छवि उनके आगामी राजनीतिक जीवन में भी बनी रही. तीन साल पहले उन्होंने जब अपने दम पर माकपा को सत्ता से बेदखल किया था, तो पूरे देश में उन्हें जुझारू नेता के रूप में देखा गया. अपने चार दशक लंबे राजनीतिक कॅरिअर में सादगी और ईमानदारी ही उनकी पूंजी बनी रही है.
मगर, जब से शारदा चिटफंड घोटाले में उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं के नाम सामने आए हैं, तब से उनकी कथित भूमिका को लेकर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं. आलम ये है की कभी बेहद क़रीब रहे तृणमूल कांग्रेस के सचिव मुकुल रॉय ने खुद को ममता से दूर कर लिया है. शारदा घोटाला जब सामने आया था, तब ममता ने विरोधाभासी प्रतिक्रिया दी थी। एक ओर तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से जोर देकर कहा था कि वह और उनका कोई भी विश्वस्त या कोई मंत्री इसमें शामिल नहीं है। उन्होंने बौखला कर कहा था कि वह या उनके परिवहन मंत्री मदन मित्रा चोर नहीं हैं! दूसरी ओर उन्होंने अपनी ओर से भरसक कोशिश की कि इस घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को न दिया जाए. जबकि विपक्ष में रहते वह ऐसे किसी भी मामले की सीबीआई जांच की पुरजोर मांग करती रही हैं.उनका यह रवैया इस घोटाले की जद में आए त्रिपुरा, असम और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों से बिल्कुल उलट है, जिन्होंने बिना झिझक सीबीआई जांच की मंजूरी दी.  ममता ने न केवल सरकारी धन का दुरुपयोग कर इस जांच को रोकने की, बल्कि विशेष जांच समिति गठित कर और प्रत्येक प्रभावित को 10,000 रुपये तक का भुगतान कर पूरे मामले को ही निपटाने की कोशिश की.
ममता ने शुरू में तो शारदा घोटाले के मुख्य आरोपी सुदीप्तो सेन को जानने से ही इन्कार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि उनका नाम पहली बार उन्होंने नब्बोर्षो पर सुना था. लेकिन अब इस बात के दस्तावेजी प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 2011 में सेन से उनकी मुलाकात हुई थी. यही नहीं, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक ने अक्तूबर, 2012 में ही उनके वित्त मंत्री को इस घोटाले के बारे में आगाह किया था. बैंक के प्रबंध निदेशक ने उन्हें न केवल ग्रामीण इलाके में शारदा चिटफंड की फैलती गतिविधियों के बारे में बताया था, बल्कि उन्हें इससे भी अवगत कराया था कि किस तरह केंद्र सरकार की छोटी बचत योजनाओं में निवेश कम हो रहा है. इन आरोपों के अलावा अब सीबीआई जांच से खुलासा हुआ है कि ममता बनर्जी जब रेल मंत्री थीं, तब पांच साल के ज़रूरी  अनुभव और टेंडर के बिना ही शारदा कंपनी को एक मोटा ठेका दिया गया था. यदि यह सच है तो यह उनके लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। जाहिर है, सीबीआई जांच उन्हें लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव और मायावती की कतार में ला खड़ा करेगी।
यदि अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दिग्गजों से तुलना करें, तो वही ऐसी नेता थीं, जिन तक सीबीआई जांच की आंच नहीं पहुंची थी. अब ऐसा लगता है कि सर्वोच्च अदालत के आदेश और उसकी निगरानी में हो रही सीबीआई जांच से उनकी छवि दागदार हो जाएगी और उन्हें लालू, मुलायम, मायावती, जयललिता, करुणानिधि, शिबू सोरेन, अजित सिंह और ओम प्रकाश चौटाला के साथ खड़ा कर दिया जाएगा. अतीत में देखा गया है कि कैसे सीबीआई जांच के भय से कई नेता संसद में सत्तारूढ़ दल को असहज स्थिति में डालने से बचते रहे हैं. यह अजीब लगता है कि कैसे पिछली यूपीए-दो सरकार के समय उत्तर प्रदेश की दो परस्पर विरोधी पार्टियां सरकार को समर्थन दे रही थीं।.जयललिता ने श्रीलंका के तमिलों के लिए आंसू बहाने और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने के अलावा कुछ खास नहीं किया।.तमिलनाडु का मुख्यमंत्री रहते करुणानिधि भी यही करते थे. ममता की स्थिति इन सबसे अलग है। लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सारी सीमाएं लांघकर कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में घुसने की कोशिश की, तो वह उन्हें जेल भिजवा देंगी, बावजूद इसके कि वह यह जानती थीं कि वह ऐसा नहीं कर सकतीं. शारदा घोटाले के सामने आने के बाद उनका राजनीतिक भविष्य अधर में है. कई लोग सोचते हैं कि उनकी नियति लालू प्रसाद जैसी हो सकती है, जिन्हें चारा घोटाला में संलिप्त होने के कारण चुनावी राजनीति तक से बाहर होना पड़ गया.