Monday, January 26, 2009

अब गांव में भी ये देखने को नहीं मिलता


बहुत दिनों से एक मंज़र नज़रों के सामने घूम रहा है। ये मंज़र, ये दृश्य मैंने कई बार छुटपने में देखा है। दिमाग़ में अब भी वो शॉट फ्लैश बैक की तरह घूमते रहता है। लेकिन अब देखने को नहीं मिलता। कई बार कोशिश की तो पाया कि अब हिंदुस्तान का गांव भी बदल गया है। सरकारी नारा झूठ नहीं है कि गांव बदल रहा है।
छोटा था तो अक्सर देखता था कि कोई नौजवान पतली , कच्ची-पक्की गलियों में चमचमाती हुई अपनी नई साइकिल को पूरी रफ्तार के साथ चला रहा होता था। साइकिल के आगे बने कैरियर में एक ट्रांजिस्टर होता था, जो अपनी पूरी दम-खम के साथ चिल्ला रहा होता था। उन दिनों जो गाने सबसे पॉपुलर होते थे, वो ट्रांजिस्टर पर सुनने को मिलता था। अक्सर दुपहरिया में सुनने को मिलता था- फुलौड़ी बिना चटनी कैसे बनी ? आग लगे सैंय्या तोहार ,भांग के पिसाई में -केतना दर्द होला,राति के कलाई में। इन गानों को फुल वॉल्युम में सुनाने वाला बांका नौजवान ख़ुद को उस गांव या मुहल्ले का सबसे बड़ा कैसेनेवा समझता था। कई बार इस तरह के नौजवानों की कलाई में सुनहरे रंग की घड़ी चमचमा रही होती थी। पूछने पर पता चलता था कि ये एचएमटी की काजल है। अब ज़रा पोशाक को भी देख लीजिए। कोई भी महीना हो- नौजवान थ्रीपीस सूट या फिर सफारी सूट में होता था। अमूमन ये रंग ब्राउन या फिर क्रीम कलर का होता था। जूता भी लाल रंग या यू कहें कि टैन कलर का होता था। और मोजा- उसका रंग शायद सर्वप्रिय था। लाल रंग का मोजा। ये पहचान थी उस ज़माने की नए दुल्हे की। जिसके पास नई साइकिल, काजल की घड़ी, ट्रांजिस्टर , थ्री पीस सूट और लाल जूता- मोजा हो , समझ लीजिए नया नवेला दुल्हा बना है। इस पहचान को मैंने कई बार कई राज्यों के कई गांवों और क़स्बों में तलाशने की कोशिशश की। कई लोगों से बात की। पूछा - देखा है अब कहीं ऐसा दुल्हा? हर जगह से एक ही जवाब - आजकल ये सब कहां होता है? गांव भी तो बदल रहा है। क्या वाकई हमारे देश का गांव बदल गया है?

Saturday, January 17, 2009

सरकार क्यों चाहती है मीडिया पर अंकुश लगाना ?


एक बार फिर कांग्रेस की सरकार मीडिया का गला घोंटने की तैयारी कर रही है। सरकार केवल नियमों में बदलाव करना चाहती है। क्योंकि सरकार को लगता है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी जि़म्मेदारी की समझ नहीं है। सरकार कहती है कि देश पर आतंकवादी हमलों और दंगों के समय में टीवी चैनलों की रिपोर्टिग सही और संयमित होनी चाहिए। यानी सरकार ये कह रही है कि अब तक टीवी चैनलों ने सधी हुई रिपोर्टिंग नहीं की है। क्यों ? शायद सरकार इसका जवाह अभी नहीं दे पाए। लेकिन बार-बार वो मुंबई आतंकवादी हमले की रिपोर्टिंग का हवाला दे रही है। इसलिए सरकार चाहती है कि टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग पर सरकार की लगाम हो। अगर सरकार अपनी मंशा में क़ामयाब हो जाती है , तो फिर क्या होगा ?
फ़र्ज़ कीजिए किसी शहर में दंगा हो गया हो। सुबह सात बजे की बुलेटिन की शुरूआत ऐसे होगी। नमस्कार , मैं हूं ओम सिंह और आप देख रहे हैं .... चैनल। अभी -अभी ख़बर मिली है कि सूरत में दंगे हो भड़क गए हैं। लेकिन अभी हम आपको ये नहीं बताएंगे कि किस समुदाय के बीच दंगा हो रहा है। दंगा किसने शुरू किया। इस दंगे में कितने लोग मारे गए हैं। कितने लोग घायल हुए हैं। कितने दुकान-मकान जलाए गए हैं। इस दंगे का असर शहर , राज्य और देश पर क्या पड़ रहा है। क्योंकि सरकार ने हमें ये सब बताने को मना किया है। इस बारे में हम आपको शाम पांच बजे के बाद बता पाएंगे। आप य न सोचें कि हमारे पास रिपोर्टर नहीं है। ये फाइव विंडों में देखे मनीष मासूम अभी खुमार उतारने में लगे हैं। विवेक वाजपेयी किसी पुलिसवाले से गपिया रहे हैं। दीपक बिस्ट की नज़रें कुछ खोज रही हैं। योगेंद्र प्रजापति को किसी का इंतजार है औऱ रोहिल पुरी अपने लैपटॉप पर कुछ देख रहे हैं। ये सब दफ्तर में ही हैं। लेकिन रिपोर्टिंग पर नहीं जाएंगे। गाड़ी भी , सीएनजी भी है और कैमरापर्सन भी । हमें सरकार ने बताया है कि बल्लीमारान में शादी ब्याह का वीएचएस फिल्म बनानेवाले रऊफ चाचा से बात हो गई है। वो हमें पैंतीस सेकेंड का विज़ुअल दे देंगे। डीएम साहेब अपनी बाइट भी 20 सेकेंड का भेज देंगे। डीएम साहेब ही बताएंगे कि दंगा कब , कैसे शुरू हुआ। हम मौक़े पर मौजूद चश्मदीदों-गवाहों ज़ाकिर, अरूण , विनीत, अल्ताफ और सीता बेन की बात पर भरोसा नहीं करेंगे।
सुबह नौ बजे का बुलेटिन। नमस्कार . मैं हूं ओम सिंह और आप देख रहे हैं .... न्यूज़। सबसे पहले आपको बताते हैं कि गुजरात में दंगा हुआ है। लेकिन इस बारे में अभी आपको कुछ नहीं बताएंगे। क्योंकि एख घंटे पहले ही हमने इस बारे में आपको जानकारी दी थी। डिटेल में शाम को पांच बजे के बाद बताएंगे। फिलहाल सबसे बड़ी ख़बर, प्रधानमंत्री ने राजीव फ्लाई ओवर का उदघाटन किया है। इस पुल के बनने से अब लोदी रोड आने जाने में काफी आसानी होगी। लोगों को ट्रैफिक में नहीं फंसने होगा। मिनटों की दूरी सेकेंडों में पूरी होगी। प्रधानमंत्री ने यूपीए अध्यक्ष के कहने पर इस पुल को बनवाया है। यूपीए अध्यक्ष को बहुत तकलीफ होती थी जब प्रियंका के पति राबर्ट के दोस्तों में आने जाने में परेशानी होती थी। उनके सभी दोस्तों के पास लाल औऱ नीली बत्ती की सुविधा नहीं है। दूसरी बड़ी ख़बर, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री फौरन अमेठी रवाना हो गए हैं। वहां वो शिओ देवी से मिलेंगे। शिओ दंवी के पांच बच्चे हैं और पति कैा देहांत हो गया है। गुज़र-बसर करने में दिक़्क़त हो रही है। कांग्रेस के युवराज कल उनके यहां रात को ठहरे थे। लट्टू से लेकर पंखा तक उसके घर में नहीं है। युवराज से उनकी तकलीफ देखी नहीं गई। उन्होने अपने मम्मी से इस बारे में बात की। मम्मी ने प्रदानमंत्री से सब कुछ ठीक करने को कहा। प्रधानमंत्री ने ग्रामीण विकास मंत्री को भेजा है। अह शिओं देवी के घर के सामने से स्वर्णिम योजना गुज़रेगी। रोज़गार गारंटी योजना के तहत शिओं देवी को 365 दिन काम मिलेंगा। बिजली मंत्री आज शाम को घर जाएंगे। शिओ देवी के घर पर लट्टू लगवाएंगे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री थोड़ी देर में पहुंचेगे। बच्चों को स्कूल में एडमिशन कराएंगे। तो देखा आपने - कांग्रेस का हाथ , ग़रीबों के साथ है। फिर मिलेंगे , नमस्कार।
शाम पांच बजे- सबसे पहले बात गुजरात दंगे की । डीएम ने कहा है कि सूरत में मुर्गी पकड़ने के लिए मुहल्ले के दो गुटों में संघर्ष हो गया। प्रशासन ने फौरन पुलिस बल तैनान कर दिए। हालात सामान्य हैं। अफ़वाह फैलानेवालों की ख़बर ली जाएगी।
कुछ ऐसी ही न्यूज़ बुलेटिन देखे जाएंगे। क्योंकि सरकार के इशारे पर नाचने का हुक़्म होगा। ये हुक़्म लोकतंत्र में क़ानून की आड़ में होगा। क्योंकि इलेक्ट्रानिक मीडिया से देश की अखंडता , अक्ष्णुता और एकता ख़तरे में न पड़े। टीवी चैनलों ने मुंबई हमले के समय क्या दिखाया। सब स्क्रीन पर होटल के बाहर के शॉट्स दिखे। सभी कैमरापर्सन और रिपोर्टर होटला से ढ़ाई-तीन सौ मीटर दूर खड़े थे। सरकार का बयान हास्यास्पद है कि आतंकवादी टीवी देखकर चौकस हो रहे थे। यानी वो आतंकवादी सरहद पार कर सिर्फ टीवी देखने आए थे और टीवी देख देखकर आग लगा रहे थे। हथगोले फेंक रहे थे । गोलियां चला रहे थे। लोगों की हत्या कर रहे थे। ये इनकाउंटर कई घंटे चला था। यानी आतंकवादी अख़बार भी पढ़ रहे होंगे। किस पन्ने पर कितने कॉलम में ख़बर है। फोटो है कि नहीं। इटंरनेट भी पढ़ रहे होंगे। सरकार कहती है तो शायद ऐसा ही हुआ होगा।
सोनिया की सासू मां इंदिरा गांधी ने अपने लाड़ले संजय गांधी के साथ मिलकर आपातकाल की घोषणा कर दी। अख़बारों और पत्रिकाओं पर हंटर चलने लगे। जिन रीढ की हड्डी वाले पत्रकारों ने रेंगने से मना कर दिया , उन पर ज़ुल्म हुए। जेल बेजे गए। क्योंकि उनसे देश को ख़तरा था। लोकतंत्र बहुत देऱ तक किसी की तानाशाही बर्दाश्त नहीं करता। चुनाव में लोकंतंत्र ने मां- बेटे को ऐसी सज़ा दी, जो उनका परिवार कभी भूल नहीं सकता। पहली बार देश की सत्ता नेहरू-गांधी परिवार के हाथ से निकल गई। इसके बाद इंदिरा की मौत के बाद राहुल गांधी ने मानहानि विधेयक लाने की कोशिश की। लेकनि पत्रकारों के इंक़लाबी तेवर देखकर वो अपने क़दम पीछे हटने को मजबूर हो गए। तब प्रियरंजन दासमुंशी उनके बेहद क़रीबी सलाहकारों में से होते थे। अअ यही काम मनमोहन सिंह कर रहे हैं और इस सरकार में फिर प्रियरंजन दासमुंशी शामिल हैं। जब तक लिखने की आज़ादी है- अपन लिख सकते हैं। मनमोहन जी, इंदिरा- संजय और राजीव के फैसले और जनता के फैसले को याद कीजिए और फिर जो मन में आए कीजिए। क्योंकि देश प्रेम तो सिर्फ आप लोगों को ही आता है। हम पत्रकारों का क्या है ?

Thursday, January 15, 2009

लालू की जय हो


अपने रेल मंत्री लालू प्रसाद भी कमाल के हैं। परदे के पीछे चाहें उन्हे जो भी अफसर चलाता हो लेिकन टीवी पर आकर वही लोगों को चराते हैं। िपछले कई बरस से रेल बजट पेश के दौरान क़ामयाबी के गीत गाते हैं। किराया नहीं बढ़ता । पब्लिक भी ख़ुश हो जाती है। लेकिन लालू कब चुपके से किस मद में भाड़ा बढ़ा देते हैं, ये बात ढोल बजाकर नहीं बताई जाती। आज में लालू के महान काम का एक नमूना पेश करने जा रहा हूं।
12 जनवरी को मेरे एक रिश्तेदार बनारस से दिल्ली आ रहे थे। मुझे उनका रिसीव करने जाना था। घर से निकलने से पहले सोचा कि क्यों न हाई टेक रेलवे से पता करके स्टेशन जाया जाए। क्योंकि इन दिनों रेल गाड़ियां देर से चल रही हैं। रेल मंत्रालय ने अख़बारों में कई बार बड़े बड़े विज्ञापन दिए। कई नंबर फ्लैश किए। लालू जी जापान में बुलेट ट्रेन देखकर भारत में दौड़ाने की घोषणा कर रहे थे। मेरे लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था। मुझे खुशी हो रही थी कि टैक्स देने का सुख हमें मिलेगा। अच्छी गाड़ियां और स्टेशन सिर्फ विदेशों में ही नहीं मिलेंगे। इसी सोच के साथ मैंने कई नंबरों पर फोन घुमाया। लेकिन मेरा भ्रम टूटना लगा। किसी भी नंबर पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया। इसके बाद मैनें रेलवे की हाई टेक सिस्टम का इस्तेमाल करने की सोची। मैंने 139 पर फोन किया। हाई टेक सिस्टम था भई। बताए गए निर्देशों का पालन करने लगा। नारी स्वर में - भारतीय रेलवे पूछताछ सेवा में आपका स्वागत है। हिंदी में जानकारी के लिए एक दबाएं। मैंने एक दबा दिया। फिर ट्रेनों की आवाजाही के लिए कुछ और नंबर दबाने का निर्देश आया। वो भी कर दिया। इसके बाद ट्रेन नंबर पूछा गया। शिवगंगा एक्सप्रेस जब बनारस से दिल्ली आती है तो उसका नंबर 2559 होता है और जाते समय उसका नंबर 2560 हो जाता है। रेलवे पूछताछ कंप्यूटर सिस्टम में आने और जाने की गाड़ियों के नंबर दर्ज होने का मैने जो अनुमान लगाया था, वो ग़लत निकला। आगमन की जानकारी के लिए ट्रेन नंबर लिखने का निर्देश आया। मैने किया। फिर प्रस्थान स्टेशन का एसटीडी या स्टेशन कोड पूछा गया। जान कर आपको हैरानी होगी कि आगमन के लिए और प्रस्थान के लिए रलवे के अलग अलग संदेश नहीं थे। अगर आप 2559 नंबर ट्रेन का लिखकर एसटीडी कोड बनारस का लिख दें तो बनारस पहुंचने का टाइम बताया जाएगा। और अगर दिल्ली का एसटीडी लिख दें तो दिल्ली का। यानी रेलवे के हिंदी अफसर आगमान और प्रस्थान का सही मतलब नहीं जानते। ख़ैर - जानकारी मिली कि सुबह सात बजकर पच्चीस मिनट पर आनेवाली शिवगंगा एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से एक घंटा तीस मिनट के विलंब से यानी 8 बजकर 55 मिनट पर आएगी।
स्टेशन पहुंचने के बाद पता चला कि प्लेटफॉर्म टिकिट नहीं मिलेगी। मेरी जो रिश्तेदार आ रही थी, वो काफी बुज़र्ग हैं और अकले सफ़र कर रही थीं। वो सामान के साथ अकेले कैसे बाहर आ पाएंगी- मैं इसी सोच में था। कोई रास्ता नहीं सूझ नहीं रहा था। मैंने एक रेलवे पुलिस को अपनी परेशानी बताई। उन्होने सुझाव दिया- पांच रुपए का टिकिट मिलेगा ग़ाज़ियाबाद ईएमयू का । ले लीजिए। मैंने उनसे पूछा कि कोई परेशानी नहीं होगी। उन्होने कहा- कोई पूछे तो बोल दो, ग़ाज़ियाबाद जाने की सोच कर आया था। ज़रूरी काम आ गया, वापिस जा रहा हूं। या अप डाउन दोनों ले लो। मैंने कहा- सर, प्लेटफार्म टिकिट न बेचने का मक़सद तो यही है न कि प्लेटफार्म पर फालतू भीड़ न हो। फिर तो सब यही करते होंगे। उन्होने तल्ख़ आवाज़ में कहा- सब करते हैं। आपको ज़रूरत है, आप भी कर लो। आप क़ानून की किताब क्यों पढ़ रहे है। मैं टका सा रह गया।
अंदर गया। बहुत सारी ट्रेनें देर से चल रही थी। लेकिन माइक बार -बार माफी इस बात पर मांगी जा रही थी कि मुंबई से दिल्ली आनेवाली राजधानी एक्सप्रेस लेट है। बाकी ट्रेनों के लिए कोई माफी नहीं। मुझे लगा कि शायद ये सेवा चुनिंदा गाड़ियों के लिए रेल मंत्री जी ने बनाई होगी। हवाई जहाज़ वाले मुसाफिर रेल में आ जाएं, तो ऐसा करना पड़ता होगा। 9 .15 तक शिवगंगा एक्सप्रेस नहीं आई तो मैंने दुबारा 139 आप्शन का सहारा लिया। लेकिन वहां को तोता अब भी 8. 55 की रट लगाए था। 139 नंबर पर एख और आप्शन था, रेलवे कर्मचारी से बात करने का। मैंने बात की। फिर एक नारी स्वर। प्राइवेट कॉल सेंटर की तरह। मैडम ने पूरी पूछताछ की। कौन सी ट्रैन है। क्या नंबर है। कहां से कहां जा रही है। मैंन कहा -मैंडम आपको ट्रेन नंबर बता दिया है। आपका कंप्यूटर क्या ये नहीं बता सकता कि इस नंबर की ट्रेन कहां से कहां जाती है। मैडम बुरा मान गईं। ख़ैर उन्होने भी वहीं टाइम बताया जो लालू जी का रट्टा तोता बोल रहा था। मैनें कहा- मैंडल आप अपनी घड़ी देख लें। 8.55 हुए ज़माना बीत गया है। उन्होने कहा- मेरे पास यही लिख कर आ रहा है। मैं क्या करूं। मैंने कहा- मैंडम सही टाइम कहां से मिलेगा। उन्होने कहा- स्टेशन पर जाकर पूछताछ से पता करें। मैंने कहा- मैंडम - अगर उसी तरह से लाइन में लगकर बाबा आदम ज़माने वाले सिस्टम से ही चलना है तो काहें का ये सब टंटा पाल रखे हैं। जनता का पैसा पटिरयों पर बहा रहे हैं। विज्ञापन देते हैं। ग्लोबल मंदी है। जब बाबा आदम सिस्टम ही फॉलो करना है तो ये सब बंद कर ख़र्च कम करो। मैडम ने वैसे कहा तो नहीं - लेकिन फोन रखने का अंदाज़ बता गया कि ये सलाह पसंद नहीं आई। ख़ैर, उसके बाद से मैं ये सोच रहा हूं कि एक न एक दिन बुलेट ट्रेन भारत में भी दौड़ेगी। लेकिन कैसे। जैसे जापान में चलती है या फिर जैसे अपने यहां सभी ट्रेनें चलती हैं। सोचिए। हम भारतीय जनता केवल सोच ही सकते हैं.