Thursday, January 15, 2009

लालू की जय हो


अपने रेल मंत्री लालू प्रसाद भी कमाल के हैं। परदे के पीछे चाहें उन्हे जो भी अफसर चलाता हो लेिकन टीवी पर आकर वही लोगों को चराते हैं। िपछले कई बरस से रेल बजट पेश के दौरान क़ामयाबी के गीत गाते हैं। किराया नहीं बढ़ता । पब्लिक भी ख़ुश हो जाती है। लेकिन लालू कब चुपके से किस मद में भाड़ा बढ़ा देते हैं, ये बात ढोल बजाकर नहीं बताई जाती। आज में लालू के महान काम का एक नमूना पेश करने जा रहा हूं।
12 जनवरी को मेरे एक रिश्तेदार बनारस से दिल्ली आ रहे थे। मुझे उनका रिसीव करने जाना था। घर से निकलने से पहले सोचा कि क्यों न हाई टेक रेलवे से पता करके स्टेशन जाया जाए। क्योंकि इन दिनों रेल गाड़ियां देर से चल रही हैं। रेल मंत्रालय ने अख़बारों में कई बार बड़े बड़े विज्ञापन दिए। कई नंबर फ्लैश किए। लालू जी जापान में बुलेट ट्रेन देखकर भारत में दौड़ाने की घोषणा कर रहे थे। मेरे लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था। मुझे खुशी हो रही थी कि टैक्स देने का सुख हमें मिलेगा। अच्छी गाड़ियां और स्टेशन सिर्फ विदेशों में ही नहीं मिलेंगे। इसी सोच के साथ मैंने कई नंबरों पर फोन घुमाया। लेकिन मेरा भ्रम टूटना लगा। किसी भी नंबर पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया। इसके बाद मैनें रेलवे की हाई टेक सिस्टम का इस्तेमाल करने की सोची। मैंने 139 पर फोन किया। हाई टेक सिस्टम था भई। बताए गए निर्देशों का पालन करने लगा। नारी स्वर में - भारतीय रेलवे पूछताछ सेवा में आपका स्वागत है। हिंदी में जानकारी के लिए एक दबाएं। मैंने एक दबा दिया। फिर ट्रेनों की आवाजाही के लिए कुछ और नंबर दबाने का निर्देश आया। वो भी कर दिया। इसके बाद ट्रेन नंबर पूछा गया। शिवगंगा एक्सप्रेस जब बनारस से दिल्ली आती है तो उसका नंबर 2559 होता है और जाते समय उसका नंबर 2560 हो जाता है। रेलवे पूछताछ कंप्यूटर सिस्टम में आने और जाने की गाड़ियों के नंबर दर्ज होने का मैने जो अनुमान लगाया था, वो ग़लत निकला। आगमन की जानकारी के लिए ट्रेन नंबर लिखने का निर्देश आया। मैने किया। फिर प्रस्थान स्टेशन का एसटीडी या स्टेशन कोड पूछा गया। जान कर आपको हैरानी होगी कि आगमन के लिए और प्रस्थान के लिए रलवे के अलग अलग संदेश नहीं थे। अगर आप 2559 नंबर ट्रेन का लिखकर एसटीडी कोड बनारस का लिख दें तो बनारस पहुंचने का टाइम बताया जाएगा। और अगर दिल्ली का एसटीडी लिख दें तो दिल्ली का। यानी रेलवे के हिंदी अफसर आगमान और प्रस्थान का सही मतलब नहीं जानते। ख़ैर - जानकारी मिली कि सुबह सात बजकर पच्चीस मिनट पर आनेवाली शिवगंगा एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से एक घंटा तीस मिनट के विलंब से यानी 8 बजकर 55 मिनट पर आएगी।
स्टेशन पहुंचने के बाद पता चला कि प्लेटफॉर्म टिकिट नहीं मिलेगी। मेरी जो रिश्तेदार आ रही थी, वो काफी बुज़र्ग हैं और अकले सफ़र कर रही थीं। वो सामान के साथ अकेले कैसे बाहर आ पाएंगी- मैं इसी सोच में था। कोई रास्ता नहीं सूझ नहीं रहा था। मैंने एक रेलवे पुलिस को अपनी परेशानी बताई। उन्होने सुझाव दिया- पांच रुपए का टिकिट मिलेगा ग़ाज़ियाबाद ईएमयू का । ले लीजिए। मैंने उनसे पूछा कि कोई परेशानी नहीं होगी। उन्होने कहा- कोई पूछे तो बोल दो, ग़ाज़ियाबाद जाने की सोच कर आया था। ज़रूरी काम आ गया, वापिस जा रहा हूं। या अप डाउन दोनों ले लो। मैंने कहा- सर, प्लेटफार्म टिकिट न बेचने का मक़सद तो यही है न कि प्लेटफार्म पर फालतू भीड़ न हो। फिर तो सब यही करते होंगे। उन्होने तल्ख़ आवाज़ में कहा- सब करते हैं। आपको ज़रूरत है, आप भी कर लो। आप क़ानून की किताब क्यों पढ़ रहे है। मैं टका सा रह गया।
अंदर गया। बहुत सारी ट्रेनें देर से चल रही थी। लेकिन माइक बार -बार माफी इस बात पर मांगी जा रही थी कि मुंबई से दिल्ली आनेवाली राजधानी एक्सप्रेस लेट है। बाकी ट्रेनों के लिए कोई माफी नहीं। मुझे लगा कि शायद ये सेवा चुनिंदा गाड़ियों के लिए रेल मंत्री जी ने बनाई होगी। हवाई जहाज़ वाले मुसाफिर रेल में आ जाएं, तो ऐसा करना पड़ता होगा। 9 .15 तक शिवगंगा एक्सप्रेस नहीं आई तो मैंने दुबारा 139 आप्शन का सहारा लिया। लेकिन वहां को तोता अब भी 8. 55 की रट लगाए था। 139 नंबर पर एख और आप्शन था, रेलवे कर्मचारी से बात करने का। मैंने बात की। फिर एक नारी स्वर। प्राइवेट कॉल सेंटर की तरह। मैडम ने पूरी पूछताछ की। कौन सी ट्रैन है। क्या नंबर है। कहां से कहां जा रही है। मैंन कहा -मैंडम आपको ट्रेन नंबर बता दिया है। आपका कंप्यूटर क्या ये नहीं बता सकता कि इस नंबर की ट्रेन कहां से कहां जाती है। मैडम बुरा मान गईं। ख़ैर उन्होने भी वहीं टाइम बताया जो लालू जी का रट्टा तोता बोल रहा था। मैनें कहा- मैंडल आप अपनी घड़ी देख लें। 8.55 हुए ज़माना बीत गया है। उन्होने कहा- मेरे पास यही लिख कर आ रहा है। मैं क्या करूं। मैंने कहा- मैंडम सही टाइम कहां से मिलेगा। उन्होने कहा- स्टेशन पर जाकर पूछताछ से पता करें। मैंने कहा- मैंडम - अगर उसी तरह से लाइन में लगकर बाबा आदम ज़माने वाले सिस्टम से ही चलना है तो काहें का ये सब टंटा पाल रखे हैं। जनता का पैसा पटिरयों पर बहा रहे हैं। विज्ञापन देते हैं। ग्लोबल मंदी है। जब बाबा आदम सिस्टम ही फॉलो करना है तो ये सब बंद कर ख़र्च कम करो। मैडम ने वैसे कहा तो नहीं - लेकिन फोन रखने का अंदाज़ बता गया कि ये सलाह पसंद नहीं आई। ख़ैर, उसके बाद से मैं ये सोच रहा हूं कि एक न एक दिन बुलेट ट्रेन भारत में भी दौड़ेगी। लेकिन कैसे। जैसे जापान में चलती है या फिर जैसे अपने यहां सभी ट्रेनें चलती हैं। सोचिए। हम भारतीय जनता केवल सोच ही सकते हैं.

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