Friday, October 2, 2020

रेंगनेवाली मीडिया को आज विरोध की आवाज उठाने की ताक़त मिली कहां से?

जैसा कि हर बड़ी घटनाओं के बाद होता आया है कि सरकार अपना नाकामियों को छिपाने के लिए सफेद झूठ बोलती है और जी हुजूरी के आदी अफसर लीपापीती करने में लगे जाते हैं। वो दोषियों को बचाने और आरोपियों की आवाज को अपनी बूट तले कुचलने का हर धतकम करती है। पिछले कुछ चंद सालों में सरकारों ने मीडिया को भी नचाना सीख लिया है। जो सरकार के इशारे पर नाचे, उन्हे भारत से सवाल पूछने का हक मिल जाता है। वो विरोधियों नेताओं का डीएनए निकालने का सरकारी लाइसेंस पा जाते हैं। जो नखरे दिखाते हैं, वो सरकारी विज्ञानों के पैसों की खनक आगे गुलाटी मारने लगते हैं। और जो नैतिकता, आदर्श और सिद्धातों की दुहाई देते हैं, उनके मालिकों-संपादकों को तरह-तरह के मुकदमों में फंसाया जाता है। बाज दफे जेल भी भेज दिया जाता है। 

मीडिया पर नए दौर में ये अघोषित आपातकाल नया नहीं है। देश के सबसे बड़े अंग्रेजी घराने में ये पहली बार हुआ था कि सही खबर छापने के बाद उसे माफी मांगनी पड़ी। प्रिंट में तो छप चुका था। तब भी सरकार के आंख-मुंह और कान रहे एक मोटा भाई को ये खबर रास नहीं आई थी। डिजीटल मीडिया में उल्टी खबर लगाई गई ताकि सरकार खुश हो जाएगा। लेकिन उस दिन शायद टेकनिक साथ नहीं दे रहा था। ऑफिस में तो खबर बदली हुई दिख रही थी लेकिन जब संपादक जी मोटा भाई के पास मोबाइल लेकर जा रहे थे तब खबर पहले वाली ही दिख रही थी। 

आज जब हाथरस में मीडिया के उन तमाम हस्तियों को पीड़िता के परिवार से मिलनेसे रोका गया, तो ये पहली बार हुआ कि मीडिया गोदी से उतर गई। वो उन पुलिसवालों से सवाल करने का हिम्मत जुटा पाई कि उन्हें किस धारा या का कानून के तहत मिलने से रोका जा रहा है। कल तक गोदी में बैठकर न्यूज़ दिखानेवाली मीडिया ये भूल गई कि अपराधों को ना देख पानी वाली जब अंधी हो गई तो भला वो इस घटना पर मीडिया के सीधे सवालों का जवाब कैसे दे सकती थी। वो तो गूंगी भी हो चुकी है और बहरी भी। हर घटना में सरकार कहती है कि ये अपराध हुआ ही नहीं। भारत से सवाल पूछने वाले एक सज्जन दूर की कौड़ी खोज लाए। सरकारी भाषा में बोलने लगा कि पीडिता के साथ रेप हुआ ही नहीं। उनसे कोई ये पूछे कि रेप की बात तो भूल जाइए। कम से कम इस पर तो बोलने की हिम्मत कीजिए कि केस दर्स करने में दस दिन क्यों लगे। और अगर अपराध हुआ नहीं तो सरकार ने क्यों लाखों के केस भेजे। क्यों मीडिया को घरवालों से मिलने रोका गया। क्यों डीएम साहेब को ये कहने की जरुरत पड़ी कि मीडिया आज नहीं तो कल चल जाएगी। लेकिन आपको रहना तो मेरे साथ ही पड़ेगा। कहते हैं ना कि जब की खुद की दाढ़ी में आग लगती है तो कोई पड़ोसी की दाढ़ी का आग पहले नहीं बुझाता। हाथरंसस कांड में टीआरपी है। विज्ञापन है। मुनाफा है। जब सरकार ने मीडिया की इंट्री बैन कर दी तो कमाई में अंधे हो चुके मालिकों ने कथित पत्रकारों को हड़काया होगा। तभी शायद गोदी में बैठकर न्यूज़ दिखानेवाली मीडिया अकबकाते हुए सरकार से सवाल पूछने का साहस दिखा पाई। क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करती तो अगले महीने एक महीने को जीरो बैलेंस वाले अकाउंट में पैसे कहां से आते।