Monday, August 4, 2008

बीजेपी का शुक्रिया अदा करना चाहिए

संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात, बांस, फांस और मिशरी - एक ही भाव बिकात। ये दोहा बहुत जल्द ही भारतीय राजनीति के रंगमंच पर दिखाई देनेवाला है। मजबूरी में सदियों के दुश्मन एक हो गए हैं। बिहार नरेश लालू प्रसाद, दलितों के स्वंयभू मसीहा राम बिलास पासवान और यादवों-मुसलमानों के शुभचिंतक मुलायम सिंह यादव ने फिर से दोस्ती कर ली है। इस ख़बर से बेशक़ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह राहत की सांस ले सकते हैं। लेकिन देश की जनता क्या करे- सांस ले या नहीं ? सांप्रदायिकता ख़त्म करने का नारा देकर तीनों पहले एक हुए थे। फिर सांप्रदायिकता के नाम पर अलग होकर अलग अलग दुकानें खोल लीं।
तीनों जय प्रकाश नारायाण के परम भक्त हैं। तीनों के दिल में जेपी बसते हैं। जेपी के आदर्शों को पूरा करने के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के साथ खड़े हुए। जनमोर्चा के समय तीनों साथ -साथ चले। जनता दल बनने के बाद तीनों ने एक साथ वी.पी.सिंह की अगुवाई में पार्टी का झंडा थामा। केंद्र में वी पी सिंह की सरकार बनीं। तीनों के हिस्से में सत्ता की मलाई आई। वी पी सिंह के न चाहने के बावजूद चंद्रशेखर के अड़ने पर लालू प्रसाद यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। तब वो यादव नाम के साथ लिखते थे। वीपी सिंह किसी ऐसे आदमी को चाहते थे जो पीढ़ी दर पीढ़ी चमड़े के कारोबार से जुड़ा हुआ था। लेकिन चंद्रशेखर उनके हर फैसले के खिलाफ़ थे। लिहाज़ा बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा और लालू बने गए बिहार नरेश। उसके बाद जो कुछ हुआ पूरा देश जानता है। चारे ने आज भी लालू का पिंड नहीं छोड़ा है। नेहरू-गांधी परिवार के वंशवाद का विरोध करनेवाले लालू ने जेल की हवा खाने से पहले अपनी पत्नी रबड़ी को उत्तराधिकारी बनाया। मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के माई बाप बने औऱ राम बिलास केंद्र में मंत्री। तीनों ने सुख भोगे। पासा पलटा। वीपी गए , चंद्रशेखर आए। तीनों ने फिर सुख साधा। हद तो तब हो गई कि बीजेपी को गरियाकर सत्ता सुख भोगने के आदी रामबिलास पासवान वाजपेयी सरकार में मंत्री हो गए। बिहार में लालू बीजेपी के ख़िलाफ़ गरजते रहे। मुलायम पर बीजेपी से गलबिहयां करने का आरोप कांग्रेस लगाती रही। आज तीनों फिर एक हैं। तीनों कांग्रेस की सरपरस्ती में सत्ता सुख ले रहे हैं। एक बार फिर बीजेपी को कोस रहे हैं। सांप्रदायिक बीजेपी के हाथ में सत्ता न आ जाए, इसलिए तीनों फिर एक हो गए हैं। सवाल देश का है। सवाल देश की संप्रुभता और सांप्रदायिक सौहार्द का है। ऐसे में व्यक्तिगत नफा-नुक़सान नहीं देखा जाता। कम से कम इन तीनों नेताओं से तो कतई नहीं। अच्छा हुआ, जो बीजेपी ने संसद में रिश्वत के पैसे को लहरा दिया। इसी बहाने ही सही, देश ने इन तीनों नेताओं का असली चेहरा एक बार फिर देखा। ये दीगर बात है कि रिश्वत का पैसा बीजेपी का था, कांग्रेस का या समाजवादी पार्टी का। सवाल ये भी नहीं है कि संसद में सरेआम घूस का पैसा लहराकर बीजेपी ने मर्यादा का पालन किया या नहीं। सवाल देश का है।