Wednesday, July 25, 2018

बीजेपी को रोकने के लिए राहुल आगे बढ़ा सकते हैं किसी महिला नेता का नाम

न्यूज़ डेस्क- 2019 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कांग्रेस ने राहुल गांधी को 2019 में पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस फैसले के कुछ देर बाद ही यूपीए में कांग्रेस के सहयोगी दल के सुर बदलते हुए​ दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐेसे में कांग्रेस ने भी संकेत दे दिए हैं कि पीएम पद के लिए वह सहयोगी पार्टियों के नेताओं का समर्थन करने को तैयार है, बशर्ते वो उम्मीदवार आरएसएस समर्थित न हो। पार्टी के बड़े नेताओं की रणनीति है कि बीजेपी को 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस राज्‍यों में विभिन्न दलों का गठबंधन बनाने पर गौर करेगी। दरअसल लोकसभा चुनाव में मोदी को मात देने के लिए विपक्षी दल एकजुट होकर मुकाबला करना चाहते हैं लेकिन नेतृत्व को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। विपक्षी खेमे में ऐसी अटकलें हैं कि अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर किसी महिला को पेश किया जाए। ऐसे में बीएसपी नेता मायावती और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का नाम उभरकर सामने आ रहा है।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी को 2019 के लिए पीएम पद के चेहरे के तौर पर पेश किया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी का निर्णय सटीक, सपाट और स्पष्ट है। राहुल गांधी हमारा चेहरा हैं, हम उनके नेतृत्व में जनता के बीच जाएंगे। अब पार्टी के नेताओं का कहना है कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए वह क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार है। हालांकि कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस के लिए रास्ता इतना आसान नहीं है पार्टी को सपा, बसपा और राजद की शर्तें भी स्वीकार करनी होगी।
आरजेडी ने इशारों-इशारों में राहुल की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल उठाए थे। वहीं तेजस्वी के बाद मायावती ने भी कांग्रेस को दो टूक संदेश देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गठबंधन तभी संभव है, जब उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी। अगर इस समझौते में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं तो भी उनकी पार्टी अकेले लड़ने को पूरी तरह तैयार है। सूत्रों के अनुसार राहुल की दावेदारी पर सहयोगी दलों की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। दरअसल पार्टी किसी भी कीमत पर महागठबंधन में बिखराव नहीं चाहती है।
राहुल गांधी खुद भी विपक्षी गठबंधन की किसी महिला उम्मीदवार के लिए पीछे हटने के लिए तैयार है। कहा जा रहा है कि आरएसएस समर्थित व्यक्ति के अलावा वह किसी के भी प्रधानमंत्री बनने पर सहज हैं। वहीं मंगलवार को महिला पत्रकारों से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने भी कांग्रेस की इसी राजनीतिक लाइन को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि वह किसी भी ऐसे प्रत्‍याशी का समर्थन करेंगे जो बीजेपी और आरएसएस को हराएगा।

Monday, July 9, 2018

राजनीति और अपराध के सांठगांठ की कलई खोलती है मुन्ना बजरंगी की हत्या

माफिया प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी की दिन दहाड़़े जेल में हुई हत्या को एक मामूली अपराध की घटना से नहीं जोड़ा जा सकता और ना ही इस हत्या को माफियाओं का गैंगवॉर कहा जा सकता है। दरअसल मुन्ना बजरंगी की ये हत्या गंदी राजनीति और अपराधियों- नेताओं के सांठ-गांठ की पोल खोलती है। ये हत्या चीख चीख कर कहती है कि हर पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा एक जैसा हैं। बस सबके मुखौटे अलग अलग हैं। मुन्ना की हत्या के पीछे की सियासी गांठ को खोलने के लिए ज्यादा नहीं केवल दस दिन पहले का कैलेंडर पलटना होगा।
मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह जौनपुर से चलकर यूपी की राजधानी लखनऊ आती हैं। बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करती हैं। बीजेपी वाली सरकार के मुखिया और यूपी के मुख्यमंत्री योगी से अपील करती हैं कि जेल में बंद उनके पति की जान माल की हिफाजत सरकार करे क्योंकि उनके पति की हत्या की साजिश रची जा रही है। सीमा सिंह ने खुलकर कहा कि भ्रष्ट तंत्र के कुछ अधिकारी, यूपी पुलिस के उच्चाधिकारी और एसटीएफ जेल में बंद मुन्ना बजंरगी की हत्या की साजिश रच रहे हैं। सीमा सिंह के बयान को आसान भाषा में ट्रांसलेट करें तो भ्रष्ट तंत्र के कुछ अधिकारी यानी आईएएस और यूपी पुलिस के कुछ उच्चाधिकारी यानी आईपीएस हत्या की साजिश का तानाबाना बुन रहे थे।
अब सवाल ये कि एक माफिया की हत्या में आईएएस और आईपीएस की क्या दिलचस्पी हो सकती है? इस हत्या से उनको क्या फायदा हो सकता है? एक बार इस गुत्थी को समझने के लिए पीछे चलना होगा। मुन्ना बजरंगी ने अपनी जिंदगी में चालीस हत्याएं की हैं। इन हत्याओं में दो नाम बीजेपी नेताओं के हैं, जिनमें से एक हत्या बेहद सुर्खियों में थी। वो हत्या थी ठेकेदार से गाजीपुर के विधायक बने बीजेपी के कृष्णानंद राय की। इस हत्या को सियासी रंग दे दिया गया, जबकि असलियत में ये हत्या धंधे से जुड़ी हुई थी। गाजीपुर वाले बाहुबली मुख्तार अंसारी मऊ से माफियाराज चला रहे थे। उनके खास चेलों में मुन्ना बजरंगी भी हुआ करता था। उसकी इतनी हैसियत हो गई थी कि वो मुख्तार के दम पर अपने चेले चपाटों को भी ठेके दिलवाने लगा था। मुख्तार के धंधे में आड़े आ रहे थे कृष्णानंद राय।

मुख्तार अंसारी ने अपने जीवन का एक और बड़ा फैसला कर लिया और इसके लिए चुना अपने सबसे खास चेले मुन्ना बजरंगी को। अंडरवर्ल्ड से जुड़े लोग बताते हैं कि विधायक मुख्तार अंसारी ने मुन्ना को कृष्णानंद राय की हत्या का रुक्का थमा दिया। मुन्ना बजरंगी भी बड़ा बेरहम निकला। लखनऊ हाइवे पर उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर एक.के. 47 से धावा बोल दिया। इस हमले में कृष्णानंद राय समेत छह लोग मारे गए। पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में हरेक बदन से सौ-सौ गोलियां निकलीं।
अब अतीत से निकलकर आते हैं मौजूदा सियासत पर। सीमा सिंह के पास ऐसा कौन सा सूचना तंत्र है, जो सरकारी खुफिया तंत्र से भी ज्यादा तेज और मजबूत है। ऐसा कौन सा सूत्र उनके पास है, जो उन्हें पहले ही बता देता है कि जेल में बंद उनके पति की हत्या होनेवाली है और वो इस सूचना को सार्वजनिक भी कर देती हैं। राज्य सरकार का दावा है कि नई सरकार के इकबाल की डर से गुंडे और माफिया यूपी छोड़कर भाग गए हैं। लॉ एंड ऑर्डर की सख्ती का हवाला देते हुए सरकार ये भी दम भरती है कि सूबे की हर जेल की सुरक्षा व्यवस्था बेहद चाक चौबंद है। फिर जेल में मुन्ना बजंरगी की हत्या कैसे हो जाती है। सुबह साढ़े छह बजे जब बैरक में मुन्ना की सीने में एक बाद एक दस गोलियां उतार दी जाती हैं, तब सिपाही कहां थे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद जेल में हथियार कैसे पहुंच गए। हथियार किसने पहुंचाए। हथियार कहां छिपा कर रखे गए थे। इसकी भनक जेलर और संतरियों को क्यों नहीं लगी। क्या यही चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था है।
इस हत्या के पीछे की गंदी सियासत को समझिए। लगभघ साल भर पहले की हात है जब मुन्ना बजरंगी के आका कौमी एकता दल वाले मुख्तार अंसारी शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह के कहने पर पार्टी और कुनबे समेत समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। अखिलेश यादव ने विरोध किया तो साइकिल छोड़कर हाथी पर सवार हो गए। मायावती ने उन्हें टिकट दिया और वो चुनाव जीत भी गए। पूर्वांचल में वो मायावती के लिए नगीना है। उनकी गिनती मायावती के नवरत्नों में होती है। मुन्ना बजरंगी उन्ही का चेला था। बताते हैं कि बनारस में कांग्रेस वाले अजय राय की भी मुन्ना से खूब छनती थी। बनारस और आस-पास के इलाकों में अजय राय की तूती बोला करती है। सियासत में सत्ता केवल समर्थकों के उत्साह से नहीं मिलती। सत्ता के लिए जनबल के अलावा धन बल और बाहुबल की भी जरुरत होती है। लोकसभा चुनाव सिर पर है और मायावती का कद यूपी में लगातार बड़ा होता जा रहा है। यहां तक कि कई नेता और पार्टियां मायावती को पीएम बनाने का भी ख्वाब देखने लगी हैं। मायावती का बढ़ता कद और मुन्ना बजरंगी के कनेक्शन दर कनेक्शन को आपस में जोड़कर देखें तो सवाल उठता है कि क्या ये हत्या केवल गैंगवॉर की नतीजा है या फिर इसके पीछे कोई घिनौनी राजनीति है।