Thursday, August 24, 2017

तलाक़, हलाला और ईद्दत की मेहर मोदी-शाह से वसूलेंगे नीतीश

ऐसी चर्चाएं हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल करनेवाले हैं। हालात भी कुछ इसी तरह के इशारे कर रहे हैं। कई मंत्री काम के बोझ तले दबे हैं। एक-एक मंत्री कई-कई विभाग चला रहा है। ऊपर से अमित शाह राज्यसभा पहुंचने के बाद रोज नए-नए दोस्त और दुश्मन बना रहे हैं। जब नए दोस्त बनेंगे तो दोस्ती का कुछ तकाज़ा भी होगा। कुछ तगादा भी होगा। इसलिए भी मोदी को मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की सख़्त ज़रुरत है।

जितनी मुंह उतनी बातें। कोई कह रहा है राजनाथ सिंह से होम मिनिस्ट्री लेकर मोदी अपने प्रिय अमित शाह के हवाले कर देंगे। राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय थमा दिया जाएगा। वैसे भी मनोहर पर्रिकर के गोवा जाने के बाद इस मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास है। इधर चीन और पाकिस्तान भी रोज़ नाक में दम किए हुए हैं। इसलिए मोदी चाहते हैं कि रक्षा मंत्रालय लेकर ठाकुर साहेब बॉर्डर पर जाकर लड़े-भिड़े। ठकुरैती दिखाएं। देशभक्ति दिखाएं। जेटली जी ख़ज़ाना पर कुंडली मारकर बैठे रहेंगे।
चर्चा पीयूष गोयल और नीतिन गडकरी भी चल रही है। वेंकैय्या नायडू के उप राष्ट्रपति बन जाने के बाद उनका विभाग भी खाली है। पीयूष गोयल को प्रोमोशन देकर कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। उनके विभाग में सभी तरह की उर्जा विभागों को समेट दिया जाएगा। कहा तो ये भी जा रहा है कि सिफारिश को मानते हुए नरेंद्र मोदी इस बार सभी तरह के परिवहन को जोड़कर सुपर ट्रांसपोर्ट विभाग बना देंगे, जिसमें रेल, हवाई जहाज़, सड़क, जल और तमाम तरह के परिवहन तत्व शामिल होंगेय़ इस विभाग की कमान नीतिन गडकरी को दिया जाएगा। लेकिन इस बात को लेकर मुझे संदेह है।
अभी अभी बिहार में नरेंद्र मोदी और अमित शाह तलाक़, हलाला और ईद्दत के बाद नीतीश कुमार को वापिस घर ले आए हैं। बदले में वो मेहर तो वसूलेंगे हीं। अंदाज़ा है कि अपने किसी चहेते के लिए रेल मंत्रालय की मांग पर अड़ेंगे। वैसे भी नीतीश ख़ुद रेल मंत्री रह चुके हैं। रेलवे से उनका पुराना प्यार जगज़ाहिर है। दूसरी बात ये इस मंत्रालय की जड़ें बिहार में बेहद गहरी हैं।
इतिहास अगर खंगाल कर देखें तो देश के पहले उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम भी इस मंत्रालय को संभाल चुके हैं। वो देश के दूसरे रेल मंत्री बने थे। उनके बाद राम सुभग सिंह रेल मंत्री रहे। ललित नारायण मिश्र भी ये मंत्रालय संभाल चुके हैं। केदार पांडे और जार्ज फर्नाडीज के पास भी ये मंत्रालय रहा है। नीतीश के अलावा लालू प्रसाद भी इस मंत्रालय की शोभा बढ़ा चुके हैं।
अब राजनीति की भाषा से इस मंत्रालय की अहमियत को समझिए। रेल में बड़ा-बड़ा ठेका छूटता है। रेलवे के ज़रिए नौकरी देकर बहुतों पर चुनावी उपकार भी किया जा सकता है। कई तरह की कमेटियां हैं। इन कमेटियों में नेताओं को बिठाकर उपकृत किया जा सकता है। दूसरे अर्थों में भी इसकी अहमियत को समझिए। साल 2009 के आम चुनावों में बिहार में बीजेपी को 12 सीटें मिली थी। लेकिन 2014 में 22 पर पहुंच गई। साल भर बाद जब विधानसभा चुनावों की बारी आई तो मोदी का जादू नहीं चला। बीजेपी ने साल 2010 के विधानसभा में चुनावों में 91 सीटें हासिल की थी। 2015 में पार्टी को 38 सीटों का घाटा हुआ। वो 53 सीटों पर सिमट गई। ऐेसे में मोदी और शाह के मिशन 360 में बिहार बहुत अहमियत रखता है। पार्टी के बड़े और समझदार नेता कतई नहीं चाहेंगे कि जो स्थिति उनकी विधानसभा चुनावों में हुई वही आम चुनावों में हो। इसलिए मेरी समझ से इस फेरबदल में नीतीश का पलड़ा ज़्यादा भारी रहने की उम्मीद जगती है।    


No comments: