बीजेपी परिवार, एनडीए परिवार और संघ परिवार में इनदिनों बस
ही ही चर्चा है। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात कि नरेंद्र मोदी क जलवा कम हो रहा
है। हाल में कुछ ऐसी घटनाएं लगातार घटी हैं, उसके बाद इन बातों को और दम मिलने लगा
है। जिस आरएसएस के गढ़ यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी
कभी नहीं हारी, वो बुधवार को चुनाव हार गई। उससे एक दिन पहले जेएनयू के नतीजे आए।
वहां भी एबीवीपी का सूपड़ा साफ हुआ। जब दोनों हार का पोस्टमॉर्टम किया गया तो
नतीजा यही निकला कि इस हार के लिए मोदी ज़िंम्मेदार हैं। जेएनयू छात्र संघ के
पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उपाध्यक्ष
शहला रशीद, उमर खालिद
समेत कई छात्र नेता मोदी सरकार और बीजेपी की तीखी आलोचना करते रहे हैं। डीयू में
वामपंथी छात्र संगठन मजबूत नहीं हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वामपंथी छात्र
संगठनों द्वारा बीजेपी और एबीवीपी के खिलाफ बनाये गये माहौल का सीधा फायदा
कांग्रेस के छात्र संगठन को हुआ है।
ये भी माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीन साल
के कार्यकाल में लगातार विश्वविद्यालयों में होने वाले विवादों को लेकर आलोचनाओं
से घिरती रही है। देश के शीर्ष संस्थानों में छात्रों ने बीजेपी के खिलाफ आक्रोश
जताया। हैदराबाद विश्विद्यालय,
जादवपुर विश्वविद्लाय, जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय, फिल्म एवं
टेलीविजन संस्थान, पुणे, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय इत्यादि में
किसी न किसी मुद्दे पर छात्र और प्रशासन आमने-सामने आया। हर संस्थान में बीजेपी के
प्रति सहानुभूति के कारण एबीवीपी ने प्रशासन का पक्ष लिया। ऐसे में माना जा रहा है
कि आम छात्रों के मन में एबीवीपी से नाराजगी है। एबीवीपी की हार की एक वजह नरेंद्र
मोदी सरकार की शिक्षा नीति भी मानी जा रही है। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पात्रता
परीक्षा (नेट), एमफिल-पीएचडी
की सीटें, शैक्षणिक
संस्थानों के वित्त पोषण, उनकी
स्वायत्तता से जुड़े जो फैसले किए उससे आम छात्रों और अध्यापकों में नाराजगी है।
वहीं आरएसएस ने भी साफ कह दिया है कि इस बात की कोई गारंटी
नहीं है कि अगली बार मोदी चुनाव जीत कर आए ही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी को
नरेंद्र मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता के प्रति सचेत किया है। आरएसएस ने अपने
विभिन्न संगठनों से फीडबैक लेने के बाद आर्थिक सुस्ती, बेरोजगारी और नौकरियां जाने, नोटबंदी की विफलता और किसानों की बदहाली
जैसे मुद्दों की वजह से आम लोगों में निराशा और नाराज़गी है। आरएसएस ने मोदी सरकार
से कहा कि उसके कार्यकर्ताओं के अनुसार आम लोग मोदी सरकार के बारे में असुविधाजनक
सवाल और बहस कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार की सहयोगी शिवसेना बात-बात पर मोदी का
मुखौटा उतार देती है। आज ही जब मोदी ने बुलेट ट्रेन का शिलान्यास किया तो शिवसेना
ने साफ कह दिया कि बुलेट की तरह झूठ बोलते हैं। ये तमाम तरह की बातों से एक बात तो
साफ है कि अब पहले की तरह मोदी की राह आसान नहीं है। ना ही सरकार में, ना ही संगठन
या परिवार में और ना ही आनेवाले चुनाव में। इसलिए ये कहा जा सकता है कि मोदी का
जलवा कम तो ज़रुर हुए हैं। लेकिन जनता की नज़र में मज़बूर विरोधी नेता कोई नहीं
दिख रहा।
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