नरेंद्र मोदी के
मंत्रिमंडल विस्तार से कंबल ओढ़कर घी पीनेवाली राजनीति की पोल खुल गई। साबित हो
गया कि पार्टी विद ए डिफरेंस यानी सबसे अलग दिखने का दावा करने वाली पार्टी में भी
उसी तरह की घटिया राजनीति होती है, जो दूसरे पार्टिंयों में देखकर बीजेपी कोसती
है। आइए आपको बताते हैं कि इस फेरबदल के पीछे की राजनीति।
नरेंद्र मोदी और
अमित शाह ने मिलकर सरकार का चेहरा बदलने का फैसला किय। क्योंकि ये दोनों नेता
जानते हैं कि इन तीन सालों में वो ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए हैं, जो वादा करके आए
थे। ना काला धन आया। ना महंगाई घटी। ना भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ। ना बेरोज़ागरी मिटी।
ना नौजवानों और ना किसानों के चेहरों पर मुस्कुराहट आई। तीन साल बीत गए। डेढ़-दो
साल बचे हैं। लिहाज़ा छवि चमकाने की कोशिश हुई। दोनों ने इस फेरबदल के बहाने बड़े
नेताओं के क़द को भी छोटा करने का फैसला कर लिया। जो नेता अगले लोकसभा चुनाव में
मोदी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते थे, उन्हें ठंडे बस्ते में लगाने का फैसला कर
लिया। तय कर लिया कि नीतिन गडकरी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, उमा भारती और राजनाथ
सिंह को हाशिए पर डाल दिया जाए।
लेकिन इस राजनीति
की भनक राजनाथ को लग गई। यूपी और वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे राजनाथ सिंह ने
मिर्ज़ापुरिया खोपड़ी लगाई। जेटली, सुषमा और गडकरी से बात हो गई। तय किया गया कि
मथुरा में संघ के सम्मेलन में वो नहीं जाएंगे। साफ संदेश देंगे कि वो नाराज़ हैं
और संगठन में आने को तैयार हैं। सरकार में नंबर दो की हैसियत रखनेवाले राजनाथ यूपी
के सीएम रह चुके हैं। दो-दो बार बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। अगर मोदी ने विभाग
बदला तो वो संगठन में आने को तैयार हैं। लेकिन अपनी पुरानी हैसियत पर। यानी मोदी
के आंखों के तारे अमित शाह को आरएसएस अध्यक्ष पद से हटाकर सरकार में भेजे और उन्हे
कुर्सी दिलवाए। अगर ऐसा भी होता तो बतौर अध्यक्ष राजनाथ – शाह की कान गर्म करते
रहते। क्योंकि संविधान में साफ है कि मंत्रिमंडल का प्रधान यानी प्रधानमंत्री अपनी
पार्टी अध्यक्ष का आदेश मानने को मजबूर है। राजनाथ का खेल संघ को पता चला। तय किया
गया कि केवल जेटली से रक्षा मंत्रालय लिया जाए। वैसे भी जेटली इसे पसंद नहीं कर
रहे थे। शाह और मोदी संघ की ये सलाह मानने को मजबूर हुए। लेकिन फिर भी एक दांव खेल
दिया। दोनों जानते हैं कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कई लोग पीएम
देखना चाहते हैं। आगे ख़तरा हो सकता है। इसलिए धीरे से ऐसे आदमी को मंत्री बनाया,
जिससे योगी का 36 का आंकड़ा है। गोरखपुर वाले शिव प्रताप शुक्ल को वित्त राज्य
मंत्री बनाकर योगी को संदेश दे दिया। एक समय था जब गोरखपुर में केवल हरिशंकर
तिवारी और शिव प्रताप की तूती बोला करती थी। लेकिन जब योगी सांसद बने तो उन्होंने
इन दोनों ब्राह्मणों को किनारे लगा दिया। बारह साल तक शिव प्रताप को गोरखपुर
छोड़कर रहना पड़ा। अब आप समझ सकते हैं कि दोनों के रिश्ते कैसे होंगे।
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