Monday, February 29, 2016
जेटली की पोटली से ‘सुरसा’ की तरह निकली महंगाई
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कैबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद साल 2016 का आम बजट संसद में पेश कर दिया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि विपरीत वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में तेज़ी आई है। लेकिन हैरानी की बात है कि जेटली की पोटली से बहुत कुछ मिलने का आस लगाए बैठे लोगों के हाथ कुछ नहीं आया है। उनके बजट से कुछ भी क्रांतिकारी बदलाव नज़र नहीं आया। बजट स्लैब को उन्होंने का तस छोड़ दिया। अलबत्ता इतना ज़रुर किया किया महंगाई की आग में घी डालने का काम ज़रुर किया है। आशंका जताई जा रही है कि जेटली के इस बजट से थोड़े दिनों में महंगाई और सिर उठाएगी। जेटली के इस बजट में होनेवाले विधानसबा चुनावों की आहट भी सुनाई पड़ी। इसलिए बहुत कुछ सस्ता-महंगा करने की जादूगरी दिखाने से वो बच निकले।
जेटली की इस कलाकारी से उनकी पार्टी और सरकार के अलावा कोई ख़ुश दिखाई नहीं दे रहा। हालांकि बीजेपी वाले अपनी पीठ ख़ुद थपथपा रहे हैं लेकिन एक्सपर्ट्स इसे बेहद लुंज-पुंज बजट मानकर चल रहे हैं। कई एक्सपर्ट्स की राय में जेटली के बजट में बड़े बदलाव की नहीं बल्कि ‘हाउसकीपिंग’ की झलक दिखाई दी है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसे बेहद शर्मनाक बजट माना है। हालांकि इस बजट को लेकर शेयर बाज़ार दिनभर उहापोह में नज़र आया। कभी धड़ाम से नीचे आ गिरा तो कभी आसमान की सैर करता नज़र आया।
जेटली के इस बजट में चुनावी आहट इसलिए भी नज़र आई क्योंकि कई मामलों में उन्होंने नई पीढ़ी को ध्यान में रखा। मिसाल के तौर पर उन्होंने घोषणा कि नई नौकरी करनेवालों का तीन तिहाई प्रॉविडेंट फंड सरकार अगले तीन साल तक भरेगी। इस घोषणा या नीति का अर्थनीति के नज़रिए से औचित्य समझ में नहीं आया। ठीक इसी तरह से किसानों को भी लॉलीपॉप थमाने की कोशिश की गई। दावा किया गया कि अगले दो साल में देश के हर गांव में बिजली पहुंचा दी जाएगी। किसानों को एक लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कराया जाएगा। यूपीए सरकार के समय मनरेगा को पानी पी-पीकर कोसनेवाली बीजेपी अब इसके लिए साढ़े 38 हज़ार करोड़ रुपए दे रही है ताकि गांवों में पांच लाख कुएं औऱ तालाब बनवाएं जा सकें। प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत साढ़े पांच हज़ार करोड़ आवंटित किए। देशभर में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाओं के बीच किसानों का क़र्ज़ कम करने के लिए 15 हज़ार करोड़ का प्रावधान किया गया है। आसमान पर पहुंचे दाल के भाव देखकर सरकार ने दालों की पैदावार के लिए 500 करोड़ रुपए का भी प्रावधान किया है। गांवों के विकास के लिए सरकार 87 हज़ार करोड़ ख़र्च करने को तैयार है।
बिना छेड़छाड़ किए शहरी मतदाताओं को भी लुभाने की कोशिश की गई है। विकास के नाम पर सड़क और हाइवेज़ का जाल बिछाने के लिए 97 हज़ार करोड़ रुपए और नेशनल-स्टेट हाइवेज़ हाइवेज़ को 10,000 किलोमीटर और 50 हज़ार किलोमीटर तक बढ़ाने का फैसला सुनाया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत आवंटन बढ़ाकर 19,000 करोड़ रुपए कर दिया गया। साथ ही सरकारी बैंकों के लिए 25000 करोड़ रुपए अलग से रखे गए हैं।
बजट में इनकम टैक्स की राह देखनेवाले राहत की सांस ले सकते हैं कि जेटली ने इसे छूने की हिम्मत नहीं दिखाई। सालाना पांच लाख रुपए तक कमाने वालों के लिए अतिरिक्त 3 हज़ार रुपए की राहत तो दी। लेकिन किसी स्लैब को छुआ नहीं। राहतभरी ख़बर ये है कि मकान का किराया 24 हज़ार से बढ़ाकर 60 हज़ार कर दी, जिससे मध्य वर्ग को आसानी होगी। ग़रीबों को एलपीजी कनेक्शन का लॉलीपॉप थमाया गया। दावा किया गया कि ये योजना पांच साल तक चलेगी। सरकार मार्च 2017 तक सस्ते राशन की तीन लाख नई दुकानें खोलेगी। 30 हज़ार सस्ती दवाओं के दुकान खेलेगी। 50 लाख रुपए तक के घर खरीदने वालों को 50 हज़ार का छूट देगी।
हर बार की तरह से इस बार भी जेटली ने गहनों और गाड़ियों पर बेदर्दी दिखाकर ग़रीबों का हमदर्द होने का संदेश दिया है। सभी चार पहिया गाड़ियों के दाम बढ़ा दिए हैं। डीज़ल वाली गाड़ियों पर भी टैक्स बढ़ाया है। SUV गाड़ियों को भी महंगा किया है। सोने, हीरे के गहनों के साथ रेडिमनेड कपड़े भी महंगे कर दिए हैं। सिगरेट-गुटखा खानेवालों की जेब सरकार ने कतर दी है।
सरकार दावा कर रही है कि देश में विदेशी मुद्दा भंडार साढ़े तीन सौ अरब डॉलर का है। अर्थव्यवस्था में साढ़े सात फीसदी की तेज़ी आई है। फिर भी ये बात समझे से परे हैं कि जब पूरी दुनिया में कच्चे तेल के दाम कम हो रहे हैं तो उसके अनुपात में पेट्रोल-डीज़ल के दाम ककरने से मोदी सरकार भाग क्यों रही है। सवाल ये भी है कि कुछ भी महंगा न करने का दावा करनेवाली सरकार ने सर्विस टैक्स क्यों महंगा किया। इस वजह से देश में बहुत कुछ महंगा होगा। सबसे पहले तो रेल किराया ही महंगा हो जाएगा। हवाई यात्रा महंगी होगी। केवल औऱ सिनेमा देखना महंगा होगा। मोबाइल फोन का बिल और बाहर खाना महंगा होगा। जिम जाना महंगा होगा। बीमा पॉलिसी महंगी होगी। फिर भी अमित शाह और यशवंत सिन्हा जैसे नेता दावा कर रहे हैं कि ये शानदार बजट है तो हैरानी होती है।
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