Thursday, February 25, 2016
फिर भी ‘मनुस्मृति’ को शर्म नहीं आती
रेल बजट से एक दिन पहले संसद में देश की शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने JNU और रोहित वेमुला के मुद्दे पर जिस नाटकीय अंदाज़ में बहस की और अपना सिर काटकर बहनजी यानी मायावती के क़दमों में रखने की पेशकश की, उससे भकतजनों का दिल गार्डन-गार्डन हो गया। ख़ास तौर पर भक्तजन सोशल मीडिया पर उन्हें वीरांगना के तौर पर महामंडित करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। ‘स्मृतिदोष’ के शिकार हो चुके भक्तजन ये सुनने और मानने को कतई राज़ी नहीं हैं कि लोकतंत्र के सबसे पवित्र मंदिर में खड़ा होकर टीवी की पुरानी कलाकार ने बेहद सफाई के साथ झूठ बोला है। तालियां बजवाई हैं। शाबाशी लूटी है। लेकिन ऐसा करके इस मंत्री ने लोकतंत्र की आत्मा के साथ दुराचार किया है।
तथ्यों पर मनुस्मृति का मुखौटा उतारने से पहले फिल्मीअंदाज़ में दिए गए उनके डायलॉग पर मुख़्तसर सी बात हो जाए। मोहतरमा चुनौती भरे अंदाज़ में कहती हैं कि कोई उनकी जाति बता दे। अरे, मोहतरमा, जाति से बाहर शादी करके कोई उदारवादी नहीं बन जाता और न ही जनेऊवाली सोच से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। अगर आप जातिवादी का विरोध ही करती हैं तो क्या आपने उस पार्टी में कभी इस पर बात की, जिसकी टिकट पर आप दो-दो बार लोकसभा का चुनाव हारीं। ये अलग बात है कि हारे हुए अरुण जेटली की तरह आप भी मंत्री बन गईं। क्या आपने अपने पार्टी फोरम पर सवाल पूछने की हिम्मत दिखाई कि चुनावों के समय उनके बड़े नेता जाति और धर्म देखकर टिकट क्यों बांटते हैं? अगर वो जातिवादी का इतना ही प्रखर विरोधी हैं तो स्कूल- कॉलेज में जाति और धर्म के कॉलम का विरोध किया? जब वो मां ( इसकी दुहाई वो संसद में दे चुकी है) बनीं तो अस्पताल में भरेजाने वाले फॉर्म में जाति और धर्म वाले खांटे पर विरोध जताया? ख़ैर मनुस्मृति जी और उनके भक्तजन इसे ज़ाति मसला बताकर जवाब देना मुनासिब ना समझें।
देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में उपजे विवाद पर अपनी सरकार की बचाव में उतरीं मनुस्मृति ने कहा कि जिस महिषासुर का दुर्गा मां ने वध किया था, उसी दुष्ट राक्षस महिषासुर की वहां पूजा की जाती है। वंदना की जाती है। अगर यही सब कोलकाता में होता तो क्या होता। देश की शिक्षा मंत्री, बीजेपी की नेता और एक्ट्रेस होने के नाते आप कितना भारत घूम पाईं हैं या कितना समझ पाई हैं, ये तो हमें नहीं मालूम। लेकिन इतना तो दावे के साथ कह सकता हूं कि आप हिंदुत्व को नहीं समझ पाईं हैं। आप जिस कोलकाता का ज़िक़्र कर रही हैं, उसी से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी बसे उसी राज्य के एक ज़िले पुरुलिया में आदि-अनादि काल से बंगाली महिषासुर की पूजा करते आ रहे हैं। उत्तर भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी महिषासुर की पूजा होती है। ठीक उसी तरह से जिस तरह से बंगाल में दुर्गा पूजा और महाराष्ट्र में गणेश पूजा। इस देश के कुछ हिस्सों में महिषासुर इस क़दर लोकप्रिय हैं कि लोगों ने उनके नाम पर शहर का नाम रख दिया। कर्नाटक में दूसरे बड़े शहर का नाम महिषुरू ही है। यहां तक पंद्र सालों से बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश में भी इसकी पूजा होती है।
जेएनयू में संघ और सरकार की करतूत पर पर्दा डालने के लिए और भी आपने कई बड़े झूठ बोले। आपने तर्क दिया कि कन्हैया, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य और उनके साथियों के देशद्रोह की करतूत के बारे में जेएनयू के सुरक्षाकर्मियों ने जानकारी दी, जो केंद्र सरकार के मातहत नहीं हैं। दूसरी जानकारी आपने जो साझा की, उसके मुताबिक़, जेएनयू के आंतरिक जांच कमेटी (जिसमें शिक्षक शामिल हैं) ने भी प्राइमा फेसी यानी प्रथम दृष्टव्या उन छात्रों को दोषी पाया है। आपने ज़ोर देकर कहा कि इन टीचरों को भी केंद्र ने नियुक्त नहीं किया है बल्कि वाइस चांसलर ने नौकरी दी है। डजहां तक बात जेएनयू के सुरक्षाकर्मियों की है तो मोहतरमा आप जानती होंगी कि वो जेएनयू के अपने सुरक्षाकर्मी नहीं है। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसका ठेका एक प्राइवेट कंपनी को देकर रखा है। ये ख़ुद विवादों मे हैं। क्योंकि आरोप है कि ऐसा करके प्रशासन ने कैपस में पुलिस को घुसने और केंद्र को दख़ल देने का अधिकार दे रखा है। रही बात जेएनयू के प्रोफसरों की तो ख़ुद वीसी सवालों के घेरे में हैं। उन पर आरोप है कि छात्रों को सुने बिना ही कठोर फैसला सुना दिया।
मनुस्मृति ईरानी का झूठ का पुलिंदा यहीं ख़त्म नहीं होता। राहुल गांधी पर हमला बोलने के क्रम में वो दलित छात्र रोहिता वेमुला पर भी बोलीं। आरएसएस और अपने साथी मंत्री के बचाव में उतरीं शिक्षा मंत्री कांग्रेसी सांसद हनुमंथप्पा राव और मोदी सरकार के मंत्री बंडारू दत्रातेय की चिट्ठियां लहराईं। लेकिन अफसोस इस बात का है कि दोनों नेताओं की चिट्ठियां अलग-अलग घटनाओं की ओर इशारा कर रही थीं। कांग्रेसी सांसद पत्र लिखकर हैदराबाद यूनिवर्सिटी के भीतर दलित छात्रों के आत्महत्या का मसला उठाया था। तो वहीं उनके साथी मंत्री ने दलित संगठनों के बढ़ते वर्चस्व के आगे पिटते उनके छात्र संगठन एबीवीपी की दुर्दशा का ज़िक़्र किया था। साथी मंत्री ने मांग की थी कि ऐसे दलित छात्रों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
यहीं नहीं स्मृति ने आरोप जड़ दिया कि रोहित की मौत पर राजनीति हो रही है। रोहित के शव का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार की तरह किया गया। उस बच्चे के पास काफी समय तक कोई नहीं गया। उन्होंने सवाल किया कि वहां डॉक्टर नहीं पहुंचने पर कौन चिकित्सकीय रूप से इतना कुशल था, जिसे वेमूला को मृत घोषित किया। दूसरी बात, उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि रोहित ख़िलाफ़ कार्रवाई करनेवाली शिक्षकों की समिति का गठन पहले की सरकार ने किया था।
मोहतरमा, समिति का गठऩ तो पहले की सरकार ने किया होगा, लेकिन कार्रवाई के लिए भी क्या पहले की सरकार बार-बार दबाव दे रही थी? क्या इसमें आपकी कोई भूमिका नहीं थी? क्या आप पर साथी मंत्री का दबाव नहीं था? क्या आपे इस मुद्दे पर विश्वविदयालय के वीसी पर कौई दबाव नहीं डाला? दूसरी बात, आप माहों ने और बच्चे की जान लेने की दुहाई देते गुए पूछ रही थीं कि कुशल था जिसने मौत की पुष्टि की। मोहतरमा, विश्वविद्यालय के वीसी के पास उस डॉक्टर की चिट्ठी है, जिसने सबसे पहले रोहित को देखकर मौत की पुष्टि की थी। मनुस्मृति जी आपने इसे क्यों गोल कर गईं?
आख़िर में चंद सवाल आपसे? आपने आरोप लगाया कि आपको लोकतंत्र में चुनाव लड़ने की सज़ा मिल रही है। मेरा सवाल आपसे है। आप तब कांग्रेसियों समाजवादियों बसपाई और वामपंथियों के निशाने पर क्यों नहीं आईं जब आप दिल्ली में कपिल सिब्बल से बुरी तरह से चुनाव हार गईं थीं? बाक़ी पार्टियों में आपके लिए ये वैमनस्य तब क्यों नहीं था? आपने भारतीयता पर भी प्रभावशाली बात कही है। लेकिन भूल गईं कि जिस अंदाज़ में आप भारत और भारतीयता को देख रही हैं, वो पूरा सवा सौ अरब वाला भारत देश नहीं देखता। आप अपना सपना ज़बर्दस्ती दूसरे को दिखा रही हैं। क्या ये ज़रुरी है कि सवा सौ अरब वाले देश की जनता उसी तरह से अपने देश को देखे, जैसा कि कोई पाकिस्तानी, अफग़ानी, जापानी या किसी ईरानी दिखाना चाहे?
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