Wednesday, July 1, 2009
आयोगों के ज़रिए सरकारें करती हैं लीपापोती
बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड को लेकर लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी। अभी किसी को नहीं मालूम कि इस रिपोर्ट में क्या है ? आयोग ने क्या सिफारिश की है ? लेकिन इस रिपोर्ट को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। इसका राजनीतिक पहलू समझने से पहले एक बार इस आयोग के बारे में समझ लें। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के दस दिन के बाद केंद्र सरकार ने 16 दिसंबर 1992 को लिब्राहन आयोग का गठन किया। सरकार ने तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट देने को कहा था। यानी आयोग को 16 मार्च 1993 तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपना था। लेकिन आयोग को ये काम करने में सत्रह साल लग गए। इसी के साथ इस आयोग ने भारत में एक रिकार्ड भी क़ायम कर लिया है। देश में सबसे ज़्यादा समय तक काम करने का रिकार्ड अब लिब्राहन आयोग के नाम है। इस आयोग को 48 बार एक्सटेंशन यानी विस्तार दिया गया। आयोग ने एक सौ दो लोगों ,जिनमें आरोपी भी शामिल हैं, के बयान लिए। 399 बार सुनवाई की। सरकार के दस करोड़ रुपए के ख़र्चे पर अपनी रिपोर्ट सत्रह साल बाद सरकार को सौंप दी। बताया जाता है कि आयोग ने चार साल पहले ही रिपोर्ट तैयार कर ली थी। लेकिन सौंपी अब है। इसकी वजह तो नहीं मालूम। लेकिन एक बात सबको मालूम है कि जस्टिस लिब्राहन और आयोग के वकील अनुपम गुप्ता के बीच छत्तीस का आंकड़ा था और वो बाद में आयोग से अलग भी हो गए थे।
अब बात इस रिपोर्ट की राजनीति की। हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता सुख पा चुकी बीजेपी क्या इस रिपोर्ट से सांसत में हैं ? ऊपर से देखने में एक बार ऐसा महसूस तो हो सकता है। क्योंकि बीजेपी और उसकी परिवार के कई दिग्गज आरोपी हैं। लेकिन सच ये नहीं है। सच तो ये है कि राजनीतिक भंवर में फंसी बीजेपी के लिए ये रिपोर्ट आक्सिजन जैसा है। याद करें चुनाव से पहले हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी का हालत सांप –छुछुंदर जैसी थी। बीजेपी तय नहीं कर पा रही थी कि वो हिंदुत्व की लहर पर सवार हो या फिर सूडो सेक्युलर की छवि के साथ मैदान में उतरे। वरूण गांधी के विवादास्पद बयान के बाद कई दिनों तक बीजेपी के दिग्गज नेताओं की दुविधा पूरे देश ने देखा है। चुनाव के बाद बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी ने स्वीकार किया था कि देश दो दलीय राजनीति की तरफ बढ़ा है और मतदाताओं ने बीजेपी को खारिज किया है।
बीजेपी को अच्छी तरह से मालूम है कि चुनाव में हुए घाटे की भरपाई इसी रिपोर्ट से संभव है। अगर किसी आरोपी के ख़िलाफ सरकार कार्रवाई करेगी तो सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा होगा। चुनाव के समय विकास के नाम पर एकजुट हुए मतदाता पोलोराइज़ेशन के इस दौर में फिर से धर्म के नाम पर बंटेगें।
रिपोर्ट पेश होने के बाद बीजेपी नेताओं और बीजेपी से अलग हो चुके नेताओं के बॉडी लेंग्वेज पर ग़ौर कीजिए। हालिया मध्य प्रदेश चुनाव में गोते खाने के बाद बीजेपी में लौटने की राह तक रही उमा भारती फिर से फायर ब्रांड मुद्रा में आ गईं। सत्रह साल पहले की तस्वीर सबको याद होगी, जिसमें मस्जिद टूटने के बाद उमा भारती बीजेपी के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी के साथ गलबहियां करते देखी गई थीं। उमा भारती ताल ठोंककर सरकार को चुनौती दे रही हैं कि उन्हे सरेआम सूली पर लटाकाया जाए। उमा भारती दावा कर रही हैं कि वो मस्जिद गिराए जाने की ज़िम्मेदारी एक अच्छे सेनापति की तरह लेने को तैयार हैं। कल तक यही उमा भारती और बीजेपी के दिग्गज दावा कर रहे थे कि जो कुछ भी हुआ , साज़िश के तहत नहीं हुआ। ये घटना अप्रत्याशित थी।
रिपोर्ट पेश होते ही बीजेपी के दिग्गज अरूण जेटली, राजनाथ सिंह आदि लालकृष्ण आडवाणी से मिले। ज़ाहिर इस रिपोर्ट के असर को लेकर रणनीति बनी होगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद इस रिपोर्ट को फुल टॉस बॉल की तरह लिया। सीना तानकर कहा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने। साथ ही लगे हाथ आयोग की उम्र पर सवाल खड़े कर दिए। मांग कर डाली की कि इसकी भी जांच होनी चाहिए। ये मांग करते समय शायद रविशंकर प्रसाद ये भूल गए कि इस दरम्यान बीजेपी ने भी छह साल तक शासन किया है। भव्य मंदिर बनाने की बात करते समय ये भी भूल गए कि उनकी सरकार के दौरान अयोध्या में राम मंदिर की लड़ाई लड़नेवाले पुराने साधू परमहंस ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। सरकार ने विशेष दूत भी भेजा था और लालकृष्ण आडवाणी ने एनडीए के एजेंडे में राम मंदिर न होने की बात कर विवाद से पल्ला झाड़ लिया था। कांग्रेस भी इस पर राजनीति करने का मौक़ा नहीं छोड़ रही। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने बीजेपी नेताओं का नाम लिए बग़ैर राशन पानी लेकर धावा बोल दिया। दावा करने लगे कि दोषियों के ख़िलाफ सरकार किस तरह का कार्रवाई का इरादा रखती है। उनका ये दावा अंतर्मन से कम राजनीतिक दिल से ज़्यादा लगता है।
बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बयानबाज़ी के विशुद्ध तौर पर राजनीतिक मतलब है। बीजेपी चाहती है कि इस मुद्दे पर उनके नेताओं को घसीटा जाए। उनके नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की बात हो और शहीदी मुद्रा में आकर राजनीतिक लाभ कमाएं। वहीं , कांग्रेस भी इसका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए अल्पसंख्यक राजनीति की मौक़ा नहीं छोड़ रही। लेकिन उसे बहुसंख्यक वोट खोने का भी डर सता रहा है। कांग्रेस को अच्छी तरह से मालूम है कि अगर उसने इस रिपोर्ट पर कार्रवाई शुरू की तो घाटा कांग्रेस को होगा और लाभ बीजेपी को। इसलिए बयानबाज़ियों से काम चला लिया जाए। अल्पसंख्यकों को फिर से ये अहसास कराया जाए कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस अब भी उनके साथ खड़ी है।
अब सवाल ये है कि सरकार आयोग की सिफारिशों पर क्या करेगी। चूंकि अपने देश का राजनीतिक इतिहास रहा है कि कोई भी जांच कमीशन ईमानदार जांच के लिए नहीं गठित की जाती। उसका इस्तेमाल राजनीतिक मतलबों के लिए होता है। इन आयोगों को बनाने वालों की नीयत और मंशा शुद्ध तौर पर राजनीतिक होती हैं। इसलिए आयोगों की रिपोर्टों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। आज़ादी के बाद से लेकर अब तक कई रिश्वत कांड को लेकर आयोग बने। लेकिन आज एक बार भी ऐसा नहीं सुनने में आया कि दोषी को कड़ी सज़ा मिली है। ऐसा ही मामला जैन हवाला कांड में भी हुआ। नानवटी आयोग ने गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीन चिट दी। सिख विरोधी दंगों के आरोपी अब भी सज़ा नहीं पाए हैं। दरअसल , सरकार चाहें जिस किसी भी पार्टी की हो, वो आयोगों के ज़रिए लीपापोती करती है। सच पर परदा डाला जाता है। अरसा ग़ुज़रने पर लोगों के ज़ख़्म खुद ही सूख जाते हैं। नेताओं के बिरादरी को मालूम है कि जनता की याददाश्त कमज़ोर होती है और वो इसी का फायदा उठाते हैं। भले ही इससे लोकतंत्र की साख पर बट्टा लगे।
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2 comments:
aap durus farmaa rahe hain...shaayad yahi wajah hai ki logon kaa in aayogon se vishwaas hee utth chukaa hai
Bahut satik likha hai apne. sir ji saturday 27 june ko main bhi press club me tha. abhi nai suruat ki hai. is line me aye jyada din nahi hua lekin SP singh ko janane samjhane ke liye office se leave lekar bus se pahunch hi gaya tha. main pahli bar press club gaya tha lekin itana jana aur samjha ki kaise sukriya karun..shayad meri khushkismati thi jo maine kuchh achchhe logo ko ek sath dekha aur suna..DHANYABAD
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