Tuesday, June 30, 2009
बाबरी मस्जिद की कहानी – 17 साल बाद उसी की ज़ुबानी
सत्रह साल हो गए मुझे टूटे हुए, भरभराए हुए। इबादत की जगह को पैरों से रौदा गया। नफरत से तोड़ा गया। लेकिन क्या मैं अकेले टूटा हूं ? मैं इन सत्रह सालों में बार –बार यहीं सोचता रहा। मुझे लगता है कि मैं अकेले नहीं टूटा। इस ज़म्हूरी मुल्क की इज्ज़त टूटी। देश का ईमान टूटा। गंगा –जमुनी तहज़ीब टूटी। राम-रहीम की दोस्ती टूटी। एक –दूसरे का एतबार टूटा। रिश्तों की डोर टूटी। दिलों का तार टूटा। अब आप सोचिए क्या मैं अकेले टूटा था ?
मुझे चाहें जिसने भी बनाया हो। जिस भावना से बनाया हो। लेकिन मुझे जगह तो मर्यादा पुरशोत्तम श्रीराम ने ही दी। मैं सैंकड़ों साल से उनके साथ रहा। वो भी मेरे साथ सैकड़ों साल से जुड़े रहा। उनके बगल में मेरे होने से उन्हे कोई तकलीफ नहीं हुई। मेरे साथ उनके होने से मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई। मैं उनकी नज़रों से होली खेलता था। दीवाली के पटाखे फोड़ता था। नवरात्रा मनाता था। दशहरा मनाता था। मेरी नज़रों से वो ईद की मीठी सिवइयां खाते थे। हम दोनों को एक दूसरे से कोई तकलीफ नहीं थी।
मुझे तोड़ने के लिए मुट्ठी भर लोगों ने देश में फतवा जारी किया। वो फतवा किसी मज़हब का नहीं था। किसी ईमान का नहीं था। किसी इंसान का नहीं था। ये फरमान राम का नहीं था। क्योंकि कोई भी मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना। ये तो सत्ता के लालची उन उन्मादियों का तुलग़की फ़रमान था, जिन्हे दीन ओ ईमान से कोई मतलब नहीं थी। उन्हे मतलब था तो हम दोनों के सहारे हुक़ूमत की चाबुक पाने से।
मैं टूट रहा था। मुझ पर हमले हो रहे थे। मुझमें हिम्मत थी सब सहने की। मुझे सब सहना भी चाहिए था। ये मुल्क का तक़ाज़ा था। क्योंकि मैं भी इस देश की माटी से बना था। वतन का क़र्ज़ दूध के भी क़र्ज से बड़ा होता है। मैं सह रहा था । दर्द पड़ोसी को हो रहा था। मेरे राम को हो रहा था। वो दिल ही दिल रो रहे थे। सोच रहे थे कि हजारों साल पहले जंग कर जिस रावण का ख़ात्मा कर चुके थे, वो चेहरे फिर से दिखने लगे हैं। जिन्हे दूसरों को तकलीफ देख कर आनंद आता है। वो मुझसे शायद कह रहे थे- घबराना नहीं। टूटना नहीं। सब सहना है । सब सहकर फिर से मुल्क को मजबूत बनाना है। मज़हब की तालीम देनी है। चौपाइयों और दोहों से फिर समझाना हैं कि हमारे बदन का लहू एक जैसा हैं, एक रंग का है। इसलिए हम दोनों का ख़ून भी एक है। लेकिन लोग नहीं समझ रहे थे। रथ जहां –जहां से निकला था, अपने पीछे काला धुआ छोड गया था। इस गुबार में लोगों के ख़ून काले पड़ गए थे और आंखें लाल हो गई थीं। बहुत सी औरतें की चूड़ियां टूटीं। बहुत सी माओं का आंचल सूना हुआ। कई बच्चों के सिर से मां- बाप सका साया उठ गया। बहुत ख़ून बहा- हम दोनों के नाम पर। लेकिन हम दोनों ने तो ऐसा नहीं कहा था । फिर क्यों बहा ख़ून ? किसके लिए बहा ख़ून ?
सबने मुझे टूटते हुए देखा। लेकिन क़ानून को देखने –समझने में सत्रह साल लग गए। सुना था मैंने इंसाफ में देर ज़रूर है, लेकिन मिलता ज़रूर है। सुना है कि क़ानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, हमसे भी लंबे। सत्रह साल बाद क़ानून को सब पता चल गया। किसने मुझे तोड़ा। क्यों मुझे तोड़ा। लेकिन क्या गुनाहगार सज़ा पाएंगे ? या फिर मेरे और राम के मज़हब में जो लिखा है, वहीं होगा। सबको ऊपर सज़ा मिलेगी। क्योंकि हमारे वार में आवाज़ नहीं होती। लेकिन जाते –जाते आपसे गुज़ारिश है। आप मत टूटना कभी । आप टूटेंगे तो मुल्क टूटेगा, ज़म्हूरी ताक़त टूटेगी, गंगा जमुनी तहज़ीब टूटेगी, मज़हब की तालीम टूटेगी। याद रखिएगा- ग़लतियां बाबर की थी, जम्मन का घर फिर क्यों जले। दफन है जो बात, उस बात को मत छेड़िए।
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18 comments:
bakbas
kabhi tutai huai hindu mandiro pr bhi 2 aansu bha liya keejiya
pichhale dedh hajar sallon men hajaron mandir toote unhe ronda gaya...somnath..ram aur krishna ki janm bhumiya in muslim aattatiyon dweara todi gayi poora itihas nasht kar diya gaya...kuchh in par bhi socho...par in par likhane se aapki dukandari nahi chalegi na.....
अपने आपको बुद्धीजीवी साबित करने की बहुत ही बेहूदा कोशिश की है....अमां सिर्फ हिंदुओं को गरियाने से ही कोई बुद्धिजीवी नहीं हो जाता है कंटेट का भी इस्तेमाल करना पड़ता है.....आपने तो सोचा कि इस बौद्धिक पेचिश से ही आप बुद्धिजीवी कहलाने लगेंगे ....अमां छोड़िए भी....कुछ और ट्राइ करो यार............
क्या यह लेख एक कथित टीवी पत्रकार ने लिखा है? हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा… बहुत ही मजेदार है, कॉमेडी से भरपूर… अनिल यादव जी पूरी तरह सहमत… :)
आपका दर्द तो सिर्फ सत्रह साल पुराना है लेकिन उन लोगो के दर्द का क्या होगा जो बाबर द्वारा राम मंदिर तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाने के बाद से सैकडों साल पुराने दर्द के मारे कराह रहे है |
औरंगजेब द्वारा तोडे गए मंदिरों के अवशेष आप अपने टी वी पर क्यों नहीं दिखाते ? दिखायेंगे भी कैसे आप में इतनी हिम्मत कहाँ जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को जबाब दे सको | आपको सिर्फ एक बाबरी मस्जिद की चिंता खाए जा रही है जरा चितौड़ का किला देखो ,उसमे बने विजय स्तम्भ की खंडित मूर्तियाँ देखो देश के कई भागों में टूटे मंदिरों के अवशेष देखो , आपको नहीं मिले तो मुझे बताना एक आध दिखा दूंगा हिम्मत है तो कभी अपने टी वी पर दिखा देना |
आपने बाबरी मस्जिद की कहानी तो उसकी जबानी सुना दी अब जरा इस लिंक पर जाकर चितौड़ दुर्ग की कहानी भी पढ़ ले शायद आत्मा को कुछ शांति मिल जाए http://tansingh.blogspot.com/search/label/Honhar%20ke%20khel
कभी सोचा है आप ने कि उत्तर भारत में हिन्दू धर्म के आस्था स्तम्भ तीन स्थानों काशी विश्वनाथ, राम जन्मभूमि और कृष्ण जन्मभूमि को तोड़ कर मस्जिदें क्यों तामीर की गईं?
किसी मुसलमान से पूछिए कि क्या वह ये तीनों स्थान हिन्दुओं को वापस देने को तैयार है?
सोचने और पूछने में डर लगता है? पूछिए न सही ईमानदारी से सोचिए तो सही। आप का सोचना कोई नहीं सुनता। आप को लगेगा कि 17 साल पुरानी टीस को उकेरने में सस्ती सनसनी फैलाने कि सिवा कुछ नहीं हासिल। सोचने में भी सुविधावादी न बनें बन्धु !
एक और पक्ष है - इस देश को मन्दिर मस्जिद के अलावा भी बहुत सी चीजों की दरकार है। उन पर लिखिए न। फटा हुआ नगाड़ा बजाने से क्या होने वाला है।
वाह भाई साहब मान गया आपको क्या पत्रकारिता सिखा है आपने , यदि आज एस पी सिंह होते तो आपके लेखनी पर खून की आंसू रोते , अरे अपना ना तो एस पी सिंह का तो ख्याल किया होता . आपके लेखनी से कहीं ये नहीं लग रहा जो ये एक पत्रकार की लेखनी से लिखा गया हो , लग रहा है जैसे बाबरी मस्जिद एक्सन कमिटी का कोई कोई मेंबर ने ये लिखा हो ,ये विधवा विलाप कमिटी वालों को तो शोभा देता है पर आप जैसे एस पी के कथित उतरादिकारी को नहीं
अरे एक पत्रकार हो पत्रकार की तरह ही लिखो एक प्रतिक्रिया वादी की तरह मत लिखो. इतना तो सामान्य बुद्धि का इन्सान भी समझता है जो राम मंदिर तोर के बाबरी मस्जिद बनाना अगर सही है तो बाबरी मस्जिद तोर के राम मंदिर बनाना गलत कहाँ से है ?
जब आपने ये लेख पोस्ट किया होगा तो आपको इसी तरह की प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा रही होगी ?
कहीं बैलेंस करने के चक्कर में तो नहीं लिख दिए? पिछली पोस्ट में राहुल-सोनिया-कांग्रेस को गरियाए तो सोचा कि कहीं भाजपाई न करार दे दिया जाऊं। इस चक्कर में आडवाणी की रथयात्रा याद आ गई। अचानक बाबरी ढांचा याद आने का और कोई कारण तो नजर नहीं आता। 6 दिसम्बर होता तो सोचते, बड़े दुखी हैं भाई साहब बरषी मना रहे हैं। एक आदमी ने आपसे कुछ पूछा है- 'सोचने और पूछने में डर लगता है?' जवाब दे दीजिए।
भाई-चारा की बातों में इसे क्यों नहीं शामिल करते कि भई आपकी जगह है ले जाओ। ख्वामख्वाह क्यों अंड़सा करें, हम तो नमाज भी नहीं पढ़ते थे मेरे लिए वह जगह या ढांचा किसी काम का नहीं। अपने नायक का मन्दिर बनवाओ दो ईंटें हम भी रख देंगे। वैसे कायदन रामचन्द्र जी उनके भी नायक हैं।
Kewal dikhawa, aur kuch nahin !! Shame on you.
भारत मैं ज्यादातर पत्रकार और तथाकथित बुद्धिजीवी कम से काम एक चीज के लिए हमेसा प्रयासरत रहते हैं, और जानते हैं वो चीज है अपने को ' सेकुलर ' दिखाना | और उनके लिए सेकुलर की नींव ही हिन्दू विरोध है, और आज कम से कम भारत मैं तो सेकुलर का अर्थ है हिन्दू विरोध |
अब यदि चन्दन जी ने अपने को वही सेकुलर (हिन्दू विरोध) साबित करने का प्रयास किया तो क्या बुरा किया? अरे भाई चन्दन जी भी तो उसी थैले के चट्टे - बट्टे हैं | वैसे चन्दन जी को इससे क्या लेना देना :
-> की बाबरी मस्जिद, मंदिर को तोड़ कर बनाया गया था |
-> जम्मू कश्मीर मैं पिछले २० वर्षों मैं कम से कम १०८ मंदिर तोडे गए| इन तोडे गए मंदिरों के सटीक विवरण के लिए कौ़ल की पुस्तक पढिये |
-> लाखों विस्थापित कश्मीरी हिन्दूओं का दर्द बाबरी ढांचा demolition के सामने कुछ भी नहीं है |
क्यों चन्दन जी कहीं आपको भी हमारे मनमोहन सिंह जी की तरह बाबरी ढांचा टूटने पे नींद नहीं आती है क्या?
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6 दिसम्बर आज़ाद हिन्दुस्तान के इतिहास का एक ऐसा दिन, जिसे पूरी दुनिया कभी भूला न सकेगी। हिन्दुस्तान के धर्म-निरपेक्ष छवि पर एक ऐसा बदनुमा दाग, जिसे सदियों तक मिटाया न जा सकेगा। अनेकता में एकता और गर्व से कही जाने वाली गंगा-जमुनी संस्कृति के चार सौ वर्ष पुराने धरोहर को दिन-दहाड़े ढ़ा दिया गया। एक पवित्र इबादतगाह को शहीद कर दिया गया। एक पूरी क़ौम रोती रही, कराहती रही, और हृदय रखने वाली इंसानियत तड़पती रही।
बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को 17 वर्ष बीत गए हैं, और यह दिन संगठनों व राजनेताओं के लिए विरोध-प्रदर्शन, धरना, जलसा-जुलूस का दिन बन कर रह गया। इस तरह इन्हें हर साल अपनी टोपी-शिरवानी की गर्द झाड़ने और अपनी भाषणबाज़ी का ज़ौहर दिखाने का मौका मिलने लगा।
आलम तो यह है कि लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। इस रिपोर्ट को लाने में लिब्राहन साहब को 17 वर्ष लग गए। इसमें देश की जनता का अथाह धन बर्बाद हुआ। लोकसभा- राज्यसभा में बहस भी पूरी हो गई। दिल्ली विधानसभा में तो मार-पीट तक की नौबत आ गई। पर नतीजा हुआ ढ़ाक के तीन पात।
खैर मामला अभी अदालत में है। लेकिन अब आपको तय करना है कि इस पूरे विवाद का क्या हल है...? इसके वजहों से दो भाईयो, दो धर्मों के बीच जो दूरियां बढ़ी हैं, उसे कैसे पाटा जाए... ? कैसे खत्म किया जाए...?
आपके विचारों का स्वागत है। इससे जुड़ी आपकी यादें भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। आपके इन विचारों व यादों को हम अपने ब्लॉग http://leaksehatkar.blogspot.com के माध्यम से और फिर इसे पुस्तक की शक़्ल दे कर देश के भावी नागरिकों तक पहुंचाएंगे। तो फिर देर किस बात की। हमें जल्द से जल्द ई-मेल करें---- leaksehatkar@gmail.com पर।
http://leaksehatkar.blogspot.com
too much and that's not enough try once more with new tactice......
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