आ.सू.संवाददाता- पश्चिम बंगाल के पुलिस कमीश्नर राजीव कुमार से सीबीआई की पूछताछ की कोशिश के विरोध में देश ने शायद पहली बार तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का बेहद तीखा और हमलावर अंदाज देखा हो। लेकिन पश्चिम बंगाल की जनता के लिए ये तेवर नया नहीं है। राजनीति में विरोध के कारण ही ममता की पैदाइश हुई और इसी विद्रोही तेवरों की वजह से वो मां-माटी-मानुष का नारा लगाते हुए जनता के बीच गईं। इसी आक्रामक राजनीति चरित्र के चलते ही जनता ने ममता का राजतिलक किया।
दरअसल, ममता अस्सी के दशक में तब के दिग्गज नेता रहे सुब्रतो रॉय और अभी के राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री सौगत रॉय की देन है। दरअसल हुआ यूं ममता युवा कांग्रेस की राजनीति कर रही थीं। तब उन्हे उनके मुहल्ले कालीघाट के लोग भी बहुत कम पहचानते थे। उस समय देश में सीपीएम नेता और सीएम रहे ज्योति बसु का जलवा-जलाव जलाल हुआ करता था। अचनाक एक दिन लोगों ने अखबार में तस्वीर देखी। तस्वीर में ममता अपने साथियों के साथ सीएम का काफिला रोककर कार की बोनट पर मां चंडी की तरह डांस कर करते दिख रही थीं। ये विद्रोही तेवर लोगों के दिलों में उतर गया। खबर राजीव गांधी तक पहुची और वो बंगाल महिला कांग्रेस की मुखिया बन गईं। लेकिन पद ने तल्ख तेवरों को कम नहीं होने दिया। सूती साड़ी और हवाई चप्पल में वामपंथी सरकार के नाक मे दम करती रहीं। सांसद चुनी गईं और राजीव गांधी की सरकार में राज्य मंत्री भी बनीं।
एक मूक वधिर लड़की से सीपीएम नेता के बलात्कार की घटना को लेकर बतौर मंत्री वो मुख्यमंत्री से मिलने ईँ तो उन्हें रोका गया। वो धरने पर बैंठी तो केंद्रीय मंत्री को पुलिस ने पीट दिया। फिर क्या था देखते ही देखते उनका कद राज्यमंत्री से भी ज्यादा बड़ा हो गया। जब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के पास तब भी ममता ने अपना जिद्दीपन और अड़ियाल रवैया नहीं छोड़ा। सत्ता से उनका टकराव बढता गया और एक दिन वो पार्टी से रुखसत हो गईं। अलग पार्टी बनाई। जनता के बीच गईं। टाटा नैनो कार मुद्दे पर मजदूरों और किसानों की राजनीति करनेवालों को घुटने के बल ला दिया। जनता ने ममता को दिल से इंकलाबी मानकर तैंतीस साल से सत्ता पर काबिज वामपंथियों को सरकार से हटाकर ममता को बिठा दिया।
टकराना ममता की फितरत है। चाहें वो पार्टी हाईकमान हो, राज्य की सरकार हो या फिर सत्तानशीं सरकार। ममता खपैरल वाली घऱ में रहती हैं। शादी ब्याह और बाल-बच्चों के चक्करों से मुक्त हैं। खाली हाथ की राजनीति करनेवाली ममता कभी भयभीत नहीं होतीं। दूसरी अहम बात ये किइस महिला नेता का नाम बेशक ममता है लेकिन राजनीति में उन्होंने कभी दया नहीं दिखाई। विरोधियों को मात देने में जनता ने हर बार ममता का कठोर कलेजा ही देखा है। इसलिए कहा जा सकता है कि ईडी और सीबीआई करे जरिए बेशक अखिलेश यादव, मायावती, राबड़ी देवी, मीसा भारती, चंद्रबाबू नायडू एक बार कांप जाएं। लेकिन ममता अपने कठोर सियासी इरादों के साथ सत्ता से टकराने का माद्दा दिखाकर बंगाल में बीजेपी की इंट्री की राह इतनी आसान होने देनेवाली नहीं।
दरअसल, ममता अस्सी के दशक में तब के दिग्गज नेता रहे सुब्रतो रॉय और अभी के राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री सौगत रॉय की देन है। दरअसल हुआ यूं ममता युवा कांग्रेस की राजनीति कर रही थीं। तब उन्हे उनके मुहल्ले कालीघाट के लोग भी बहुत कम पहचानते थे। उस समय देश में सीपीएम नेता और सीएम रहे ज्योति बसु का जलवा-जलाव जलाल हुआ करता था। अचनाक एक दिन लोगों ने अखबार में तस्वीर देखी। तस्वीर में ममता अपने साथियों के साथ सीएम का काफिला रोककर कार की बोनट पर मां चंडी की तरह डांस कर करते दिख रही थीं। ये विद्रोही तेवर लोगों के दिलों में उतर गया। खबर राजीव गांधी तक पहुची और वो बंगाल महिला कांग्रेस की मुखिया बन गईं। लेकिन पद ने तल्ख तेवरों को कम नहीं होने दिया। सूती साड़ी और हवाई चप्पल में वामपंथी सरकार के नाक मे दम करती रहीं। सांसद चुनी गईं और राजीव गांधी की सरकार में राज्य मंत्री भी बनीं।
एक मूक वधिर लड़की से सीपीएम नेता के बलात्कार की घटना को लेकर बतौर मंत्री वो मुख्यमंत्री से मिलने ईँ तो उन्हें रोका गया। वो धरने पर बैंठी तो केंद्रीय मंत्री को पुलिस ने पीट दिया। फिर क्या था देखते ही देखते उनका कद राज्यमंत्री से भी ज्यादा बड़ा हो गया। जब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के पास तब भी ममता ने अपना जिद्दीपन और अड़ियाल रवैया नहीं छोड़ा। सत्ता से उनका टकराव बढता गया और एक दिन वो पार्टी से रुखसत हो गईं। अलग पार्टी बनाई। जनता के बीच गईं। टाटा नैनो कार मुद्दे पर मजदूरों और किसानों की राजनीति करनेवालों को घुटने के बल ला दिया। जनता ने ममता को दिल से इंकलाबी मानकर तैंतीस साल से सत्ता पर काबिज वामपंथियों को सरकार से हटाकर ममता को बिठा दिया।
टकराना ममता की फितरत है। चाहें वो पार्टी हाईकमान हो, राज्य की सरकार हो या फिर सत्तानशीं सरकार। ममता खपैरल वाली घऱ में रहती हैं। शादी ब्याह और बाल-बच्चों के चक्करों से मुक्त हैं। खाली हाथ की राजनीति करनेवाली ममता कभी भयभीत नहीं होतीं। दूसरी अहम बात ये किइस महिला नेता का नाम बेशक ममता है लेकिन राजनीति में उन्होंने कभी दया नहीं दिखाई। विरोधियों को मात देने में जनता ने हर बार ममता का कठोर कलेजा ही देखा है। इसलिए कहा जा सकता है कि ईडी और सीबीआई करे जरिए बेशक अखिलेश यादव, मायावती, राबड़ी देवी, मीसा भारती, चंद्रबाबू नायडू एक बार कांप जाएं। लेकिन ममता अपने कठोर सियासी इरादों के साथ सत्ता से टकराने का माद्दा दिखाकर बंगाल में बीजेपी की इंट्री की राह इतनी आसान होने देनेवाली नहीं।
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