राम मंदिर बनाने को लेकर हवा में अक्सर तैरनेवाला ये नारा अब वाकई हकीकी लगने लगा है कि राम लला हम आवेंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक को लेकर नई तारीख मुकर्रर होने से आम लोगों की जेहन में बस यही सवाल तैर रहा है कि क्या वाकई सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस वाकई इस मसले पर कोई संजीदा हल चाहती हैं। या फिर दोनों ही पार्टियां सत्ता के लिए अपने अपने हिसाब से इसे जिंदा रखना चाहती है। एक को चुनावी साल में हिंदुओं के जज्बात को उकेर का सत्ता का रास्ता दिखाई देता है तो दूसरे को सब्जबाग दिखाकर परस्ती का रास्ता अपनाकर सत्ता की सीढ़ी दिखाई दे रही है।
जैसा कि अंदेशा था वैसे ही मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जस्टिस यूयू ललित के बीजेपी के दिग्गज नेता कल्याण सिंह के वकील होने का पुराना हवाला देते हुए सवाल खड़े कर दिए। जब इंसाफ करनेवाले की नीयत पर पहले से सवाल खड़े हो जाए तो इंसाफ पर सवाल उठना लाजिमी है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि राजीव धवन पर कांग्रेस समर्थक होने का आरोप है। 2019 में किसी तरह से फिर से सत्ता हासिल करने में लगे कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को सॉफ्ट हिंदुत्व पर चलने पर कोई एतराज नहीं है। वो जनेऊ भी दिखाते हैं और मानसरोवर जाकर सबसे बड़ा शिवभक्त होने का दम भी भरते हैं। ताकि उन्हें वोटों को रिझा सके। लेकिन मुस्लिम वोट को फिसलने देना भी नहीं चाहते। तो क्या उन्ही के इशारे पर आज फिर सुनवाई ली।
सवाल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत पर भी है। सवर्णों के आरक्षण, तीन तलाक और हलाला पर सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम फैसलों को मानने से इनकार करनेवाली सरकार मंदिर के मसले पर कोर्ट का फैसला मानने की बात करती है। सुप्रीम कोर्ट ने सवर्णों को आरक्षण देने से मना किया तो एससी एसटी एक्ट में बदलाव कर अगड़ों का गुस्सा कम कर करने के लिए मोदी सरकार बिल ले आई। तीन तलाक पर भी संसद में बिल ले आई। ये दीगर बात है कि वो पास नहीं करा पाई। अगर मंदिर को लेकर वाकई उसी नीयत साफ है तो वो इसको लेकर संसद में बिल क्यो नहीं लाती। साफ है कि चुनावी साल में दोनों ही पार्टियां मंदिर-मस्जिद के झगड़े को जिंदा रखना चाहती हैं।
जैसा कि अंदेशा था वैसे ही मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जस्टिस यूयू ललित के बीजेपी के दिग्गज नेता कल्याण सिंह के वकील होने का पुराना हवाला देते हुए सवाल खड़े कर दिए। जब इंसाफ करनेवाले की नीयत पर पहले से सवाल खड़े हो जाए तो इंसाफ पर सवाल उठना लाजिमी है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि राजीव धवन पर कांग्रेस समर्थक होने का आरोप है। 2019 में किसी तरह से फिर से सत्ता हासिल करने में लगे कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को सॉफ्ट हिंदुत्व पर चलने पर कोई एतराज नहीं है। वो जनेऊ भी दिखाते हैं और मानसरोवर जाकर सबसे बड़ा शिवभक्त होने का दम भी भरते हैं। ताकि उन्हें वोटों को रिझा सके। लेकिन मुस्लिम वोट को फिसलने देना भी नहीं चाहते। तो क्या उन्ही के इशारे पर आज फिर सुनवाई ली।
सवाल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत पर भी है। सवर्णों के आरक्षण, तीन तलाक और हलाला पर सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम फैसलों को मानने से इनकार करनेवाली सरकार मंदिर के मसले पर कोर्ट का फैसला मानने की बात करती है। सुप्रीम कोर्ट ने सवर्णों को आरक्षण देने से मना किया तो एससी एसटी एक्ट में बदलाव कर अगड़ों का गुस्सा कम कर करने के लिए मोदी सरकार बिल ले आई। तीन तलाक पर भी संसद में बिल ले आई। ये दीगर बात है कि वो पास नहीं करा पाई। अगर मंदिर को लेकर वाकई उसी नीयत साफ है तो वो इसको लेकर संसद में बिल क्यो नहीं लाती। साफ है कि चुनावी साल में दोनों ही पार्टियां मंदिर-मस्जिद के झगड़े को जिंदा रखना चाहती हैं।
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