इस तथ्य को मानने से कोई गुरेज़ नहीं कि नरेंद्र मोदी ने देश में अपनी छवि एक निर्भीक, ईमानदार और काम करनेवाले नेता के तौर पर बनाई है। लेकिन हैरानी तब होती है जब यही निर्भीकता, ईमानदारी और कर्मठता कई बार ताक पर रखी नज़र आती है। क्योंकि देश को बदलने का दम भरनेवाले प्रधानमंत्री के राज में घोटालों के ‘दमदार आरोपी’ पाक-साफ बन छुट्टे घूमने के आरोप लग रहे हैं और ‘कमज़ोर आरोपी’ अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए जान देने पर आमादा होना पड़ रहा है। ये बात किसी से अब छिपी नहीं है कि अब तक ईमानदारी का लबादा ओढ़ कर घूम रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बैनर्जी के दामन पर शारदा चिट फंड घोटाले के छींटे पड़े हैं। लेकिन इस मुद्दे पर बीजेपी की अब बोलती बंद है। प्रधानमंत्री के मुंह पर ताला लगा है। जबकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी और बीजेपी ने इस मुद्दे को लेकर ख़ूब तासा बजाया था। खुद प्रधानमंत्री ने मुख्य आरोपी सुद्पीतो सेन द्वारा ममता की पेंटिंग करोड़ों रुपए में खरीदे जाने पर सवाल खड़े किए थे। हैरानी इस बात पर भी है कि सीबीआई के हाथ केवल उन्हीं लोगों तक पहुंच पा रहे हैं, जहां तक वो पहुंचाना चाह रही है। बाक़ी के मज़बूत आरोपियों का बाल भी बांका नहीं हो पा रहा है।
ये मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि जेल में बंद आरोपी कुणाल घोष ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी जेल में नींद की कई सारी गोलियां खाकर जान देने की कोशिश की है। लेकिन मामले की तह तक जाने की बजाए सरकारें जेल अधीक्षक को सस्पेंड कर खानापूर्ति करने का ड्रामा कर रही हैं। सवाल ये है कि जब घोटाले का गिरफ्तार आरोपी चीख-चीख कर कह रहा है कि घोटाले का असली ताना-बाना मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का बुना हुआ है। फिर भी सीबीआई ने अब तक क्यों नहीं ममता के ख़िलाफ़ शिकंजा कसा है। क्यों सीबीआई के हाथ ममता के इर्द-गिर्द मंडराने वालों तक ही घूम कर ठिठक जाते हैं। ये बात भी किसी से अब छिपी नहीं है कि सीबीआई केवल दिखाने भर की स्वायत्त संस्था है। देश की शीर्ष अदालत तक ने कह रखा है कि सीबीआई एक सरकारी तोता है। फिर भी सीबीआई ने अभी तक ममता के गिरेबान में हाथ डालने की जुर्रत नहीं की है।
दरअसल, ममता बैनर्जी शुरू से ही इस घोटाले के चक्रव्यूह में फंसी हुई दिख रही हैं। सीबीआई को उनके नंबर दो रहे मुकुल रॉय के ख़िलाफ़ पुख्त़ा सबूत मिल चुके हैं। मुकल कभी ममता के कितने क़रीबी थे, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उनकी पार्टी के कोटे से रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी ने रेल किराया कम करने से ममता को मना कर दिया था। तब ममता ने मनमोहन सिंह पर दबाव डालकर मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनवाया था। हालांकि मुकुल रॉय आरोपी बनाए गए और उन्हें अलीपुर जेल में ठूंस भी दिया गया। लेकिन जनता जानती है कि मुकुल को जेल में ठूंसकर केवल क़ागज़ी लीपापोती भर की गई है। असल में राजनीतिक आकाओं की वजह से सीबीआई के हाथ मुकुल के आगे तक नहीं बढ़ पाए।
क़ानून की पेचदेंगियों में सच्चाई को उलझाने की कला कोई बीजेपी और सीबीआई से सीखे। जिस लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने नैतिकता और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हुए ममता बैनर्जी की पेंटिंग्स का मुद्दा उठाया था। दरअसल बीच में ममता बैनर्जी को पेंटर बनने का शौक़ चर्राया था। उन्होंने कैनवास पर एक चिड़िया की पेंटिंग बनाई थी। इस पेंटिंग को समझने की तासीर ऊपरवाले ने पिकासो और एमएफ हुसैन को दे रखी थी। लेकिन अफसोस की ममता की पेंटिंग को समझने के लिए दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन इस पेंटिंग की समझ शारदा चिट फंड कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन को चुनाव के दौरान हो गई थी। उन्होंने इस पेंटिंग को एक करोड़ अस्सी लाख रुपए में ख़रीदा था। हालांकि ममता की पार्टी ने पेंटिंग की इस रक़म पर इनकम टैक्स भी दिया था। लेकिन सवाल ये कि नौसिखिया पेंटर की एक पेंटिंग में ऐसे क्या सुर्ख़ाब के पर लग गए कि एक कारोबारी ने दिल खोलकर पैसे लुटाए। कांग्रेस की मजबूरी थी कि वो ममता के इस धतकरम का विरोध नहीं कर सकती थी। अव्वल अपनी सरकार बचाने के लिए वो ममता के इशारे पर नाच चुकी थी और वो इस बात का ज़ोखिम नहीं लेना चाहती थी कि भविष्य में ज़रुरत पड़ने पर ममता हाथ झटक दें। लेकिन जीत के आत्मविश्वास से लबरेज़ बीजेपी और मोदी के लिए ऐसा कोई ख़तरा नहीं था। इसलिए मोदी ने चुनाव के दौरान पेंटिंग का मुद्दा बड़े ज़ोर-शोर से उठाया। लेकिन सरकार बनते ही वो ‘भीमरति’ के शिकार हो गए। वो शारदा घोटाले, करोड़ों की पेंटिंग और ममता के शामिल होने के आरोपों को भूल गए और देश की जनता को झाड़ू लगाने का ककहरा सिखाने लगे।
आख़िर क्या वजह है कि जान देने पर उतारू घोटाले का आरोपी चीख-चीख कर अपनी ही पार्टी की सुप्रीमो सहित कई और नेताओं का नाम ले रहा है। लेकिन सीबीआई सांस तक नहीं ले रही है। आरोपी छाती पीटकर कह रहा है कि इस घोटाले में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर सबसे ज़्यादा फायदा ममता बैनर्जी को हुआ है। फिर भी, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। इस घोटाले में करोड़ों आम लोगों की गाढ़े की कमाई डूब चुकी है। तृणमूल कांग्रेस के तीन सांसद, राज्य के मंत्री मदन मित्रा सहित ममता बैनर्जी का नाम इस घोटाले शामिल है। लेकिन चारों तरफ घनघोर अंधेरा छाया है।
क्या देश को ये हक़ नहीं बनता कि वो अपने प्रधानमंत्री से पूछे कि रामराज लाने का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी को अंधेरनगरी क्यों नहीं दिखाई दे रही। एक लुट चुकी प्राइवेट कंपनी को बचाने के लिए सूबे की मुखिया सरकार का ख़ज़ाना पानी की तरह बहाने लगती है। लेकिन इस पर केंद्र सरकार एक बार भी एतराज़ नहीं करती। जबकि ये पैसा पश्चिम बंगाल की गाढ़ी कमाई का हिस्सा है। क्या केंद्र सरकार का ये फर्ज़ नहीं बनता कि वो राज्य सरकार से पूछे कि उसने किस हैसियत से एक घोटालेबाज़ प्राइवेट कंपनी को बचाने की कोशिश की है। चुनाव प्रचार में दहाड़नेवाले नरेंद्र मोदी के अंदर ये सत्साहस क्यों नहीं बचा है कि अदालत से कहें कि स्वायत्त संस्था सीबीआई ने अभी तक ममता बैनर्जी से पूछताथ करने की हिम्मत क्यों नहीं जुटाई है। देश की जनता ये जानने का हक़ रखती है कि प्रधानमंत्री साफगोई से ये मन की बात बताएं कि उनके दिल में ममता के लिए क्या है।
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