Thursday, August 13, 2009
मीडिया ने देश में क्यों फैलाया स्वाइन फ्लू का डर ?
जिसे भी हल्का सा बुख़ार हो, बदन में दर्द हो, एक –दो बार उल्टी हो गई हो, आंखों में जलन हो, खांसी हो रही हो और हो सकता है कि नाक भी बह रही हो- पक्का मानिए स्वाइन फ्लू हो गया है। इन लक्षणों को डॉक्टर बेशक़ स्वाइन फ्लू न मानें लेकिन हमारी मीडिया ने इन लक्षणों को स्वाइन फ्लू मान लिया है। इस देश में कुछ अख़बारों और न्यूज़ चैनलों ने स्वाइन फ्लू का ऐसा हौव्वा खड़ा किया है, मानों पूरे देश में महामारी फैल गई हो। हर आदमी डरा सा नज़र आता है। इन लक्षणों में एक भी लक्षण दिखते ही वो डॉक्टरों के पास भागा-भागा जाता है सिर्फ ये पता लगाने के लिए उसे स्वाइन फ्लू है या नहीं?
बीते शुक्रवार को बेटे को बुखार हुआ। पेट में दर्द भी था। एक दो बार उल्टी- दस्त की शिकायत भी हो चुकी थी। इस तरह से वो पहले भी बीमार पड़ता था। मैं उसे चैरीकॉफ और NICE सिरप देता था। वो ठीक हो जाता था। इस बार मैंने इन दवाओं को खुद देने का ज़ोखिम नहीं उठाया। डॉक्टर के पास ले गया । डॉक्टर ने फिर यही दवाएं लिखीं। मैंने डॉक्टर से परेशान होकर पूछा कि लक्षण तो स्वाइन फ्लू से मिलते –जुलते हैं। तो फिर आप टेस्ट क्यों नहीं करते ? डॉक्टर ( जो मेरे घनिष्ठ मित्र भी हैं) ने कहा कि ज़रूरत पड़ी तो जांच भी कर लूंगा। मंगलवार तक बेटा ठीक हो गया। मंगलवार को ही ये लक्षण मुझमें दिखने लगे। एक अंतर ये था कि बदन में बहुत दर्द था। मैं फिर उसी डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने वाइरल की रूटीन दवाएं दीं। मैं भी एक दो दिन में ठीक हो गया। लेकिन इन दो –चार दिन मैं स्वाइन फ्लू के आतंक से परेशान रहा।
अब नज़ारा सरकारी अस्पताल का। रविवार को केंद्रीय गृह स्वास्थ्य मंत्री श्री ग़ुलाम नबी आज़ाद का बयान आ गया कि कोई भी प्राइवेट अस्पताल जांच से मना नहीं कर सकते। मैंनें अपने डॉक्टर को ये बताया। वो मुस्कुराए। बोले – मीडिया का होकर भी नेताओं का बयान नहीं समझते। क्या किसी मंत्री के कह देने भर से इलाज शुरू हो जाएगा। हम क्या कर सकते हैं- हद से हद सबसे पहले आशोलिशन वार्ड बना देंगे। नर्सों और डॉक्टरों को ट्रेनिंग दे देंगे। लेकिन टेस्ट के लिए जो किट चाहिए – वो कहां से आएगा ? वो हमें केवल सरकार ही दे सकती है। अभी तक ये सरकार ने हमें ये नहीं बताया है कि एक किट पर कितना ख़र्च आएगा ? क्या सरकार इस बीमारी को महामारी मानकर कोई सब्सिडी देगी ? अभी तक सरकार से किसी निजी अस्पताल का इस बाबत कोई तालमेल नहीं हुआ है। फिलहाल इसका टेस्ट केवल सरकारी अस्पतालों में ही हो सकता है। अब देखिए नोएडा का सरकारी अस्पताल।
नोएडा के सेक्टर 39 का सरकारी अस्पताल। दिल्ली के सरकारी अस्पताल इसके सामने फोर्टिस या अपोलो और मैक्स की तरह नज़र आते हैं। अस्पताल में भारी भीड़। इतनी भीड़ शायद कभी होली – दीवाली के समय ट्रेन के लिए होती होगी। अस्पताल में ही पता चला कि वैसे तो आम तौर पर इस अस्पताल में पास-पड़ोस के गांवों के लोग दिखाने आते हैं। पहली बार इस अस्पताल परिसर में बड़ी-बड़ी गाड़ियां और बड़े लोग नज़र आ रहे हैं। जान-पहचान निकालने के बाद चौकानेवाले तथ्य सामने आए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सुबह 9 से 11 बजे के बीच वो अमूमन 700 मरीज़ों को देख रहे हैं। सबकी ज़िद है कि स्वाइन फ्लू टेस्ट करो। लक्षण सबके सामान्य वायरल के हैं। अस्पताल में स्वाइन फ्लू जांचने के लिए केवल 22 किट हैं। इन 22 किट में से किसको-किसको जांचा जाए। किट ख़त्म हो जाए तो फिर कहां से आए। लिहाज़ा डॉक्टरों ने जुगाड़ निकाल लिया है। अभी तक ज़्यादातर मरीज़ों को नहीं मालूम कि इसकी जांच कैसे होती है। डॉक्टर अपने हिसाब से जाच कर मरीज़ों को संतुष्ट कर देते हैं।
आख़िर , हमारे देश में स्वाइन फ्लू को लेकर इतना भय क्यों हैं ? ये मीडिया की देन है और मीडिया अपनी इस नकारात्मक भूमिका से बाग भी नहीं सकता। हर एक घंटे पर ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टी- अभी –अभी पुणे में स्वाइन फ्लू से 1 और की मौत। ये लाल पट्टी देख-देखकर लोगों का लाल खून सफेद पड़ गया है। तरह –तरह के डॉक्टरों को पकड़ कर स्टूडियों में बिठा रखा है। बताते कम हैं और डराते ज़्यादा है। ये डॉक्टर और चैनल ये नहीं बताते कि जहां से बीमारी शुरू हुई, वहां कितने लोग मरे। कितनी बीमार हुए और कितने ठीक हुए। अगर ये बता दिया को दुकान नहीं बंद हो जाएगी?
स्वाइन प्लू की शुरूआत अमेरिका से हुई। मेक्सिको से शुरू हुई यह बीमारी अब तक दुनिया के 167 देशों में फैल चुकी है। अब शुरूआत अमेरिका से । अमेरिका में लगभग 6500 लोगों को स्वाइन फ्लू हुआ। इस फ्लू की वजह से लगभग 436 लोगों की मौत हुई। यानी 6064 लोग इस स्वाइन फ्लू से बच कर निकले। अर्जेटीना में 7 लाख 60 हजार लोगों को स्वाइन फ्लू हुआ। केवल 337 लोगों की मौत हुई। संक्रमण और मौत के बीच का अंतर देखिए। आस्ट्रेलिया में करीब 25 हजार लोगों को स्वाइन फ्लू है। केवल 85 लोगों की मौत हुई है। ब्रिटेन में एक लाख से ऊपर लोगों को ये बीमारी हुई है और केवल 36 लोगों की मौत हुई है। भारत में अभी स्वाइन फ्लू केस की संख्या एक हज़ार के पार भी नहीं हुई है। मौत की भी संख्या 17 है। फिर भी हाय तौबा। आख़िर इस भय का वातावरण पैदा करने वाले कौन लोग हैं ? इससे उनके क्या फायदा है ? किसी को डराने का सुख तो केवल सैडिस्ट नेचर में होता है। क्या इस नेचर के लोग भय का माहौल पैदा कर रहे हैं ? या फिर इसके पीछे विशुद्ध धंधे और मुनाफे का खेल है। डराओ और पैसे बनाओ ?
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7 comments:
बढिया विश्लेषण !!
सौ करोड़ लोग; १०-१५ मात्र मरे; वो भी एक-आध महीने में; कोई दूसरा कारण बताए जिससे इससे कम लोग प्रतिदिन न मरते हों?
खाली दिमाग शैतान का घर होता है। मिडिया खाली है; उसे कुछ तो चाहिये दिखाने के लिये।
I think media has created a hype, the role of media should be to educate people, so that this can be minimized. The swine flu , like all other viral flu will take its own course and most people will get better without medication. For influenza viruses, none of the medicine work and vaccine are good for one season only, and also vaccines are not going to protect anyone 100% either.
The best options are simple one,
-Wash hands,
-use of handkerchief while sneezing
-prevent dehydration,
-take some rest
and work towards a better hygiene practice and educate others.
पोस्ट पढ़ी तो लगा की ...ई ससुर स्वाईन फ्लू कम ...मीडिया फ्लू जादे है भाई....आजे कम्प्लेंट करते हैं ..शूकर असोशीयेशन को ...खैर ..मजाक से परे...आपका आलेख हमेशा ही मीडिया को आईना दिखाने जैसा रहता है
really nice concussion
sach hai.
Such yah chenal vale bus munafa kamane ka hi sochte hein , Badal gya humara Media Jagat bhi , Badalte daur me !
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