Monday, June 29, 2009

अगर हमें राहुल बाबा नहीं मिलते तो देश कैसे चलता ?


19 जून को इस देश –दुनिया में बहुतेरे का जन्मदिन रहा होगा। लेकिन ख़बर बनी राहुल गांधी के जन्म दिन की। इसी दिन राहुल बाबा इस धरती पर अवतरित हुए थे। अवतार का उनतालिसवां साल था। जश्न का अंदाज़ भी जोशीला था। जन्मदिन के मौक़े पर कई दरबारियों और चारण नीति के समर्थकों ने राजकुंवर राहुल गांधी और राजमाता सोनिया गांधी के घर के बाहर जमकर भांगड़ा पाया। अगर किसी को राजकुंवर या राजमाता शब्द खटके तो उसके आगे लोकतांत्रिक शब्द जोड़ सकते हैं। अतिउत्साही राहुल प्रेमियों ने 139 किलो का केक भी काटा। ये तो गनीमत है कि उम्र के साथ एक सौ किलो का केक काटा। इरादा तो एक हज़ार 39 साल जीने का आशिर्वाद देने का था। लेकिन दिल्ली में फटाफट उन्हे 1039 किलो का केक मिला नहीं होगा। ख़ूब नाचे गाए। तालियां बजा बजाकर जुग जुग जीने का आशिर्वाद दिया। साथ –साथ घोड़ों को भी नचाया। घोड़ा भी ख़ुश होकर नाचा होगा। सोचा होगा- जब प्राणियों में सर्वोच्च मनुष्य दिल खोलकर नाच रहा है तो वो इस पुनीत पावन कर्तव्य का हिस्सा बनकर स्वर्ग जाने का रास्ता पा रहा है।
ये लोकतंत्र हैं। लोकतंत्र में सबको अपनी मर्ज़ी से जीने, करने और बोलने का अधिकार है। इसी लोकतंत्र के लिए हमारे देश के कई लोगों ने अंग्रेज़ों की लाठी-गोलियां खाईं। जान दी। शहीद कहलाए। इसी लोकतंत्र का फायदा राहुल प्रेमियों ने उठाया और राहुल गांधी ने भी। लोकतंत्र में शायद ज़रूरत से ज़्यादा आस्था रखनेवाले राहुल प्रेमियों ने कभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 175 किलो का केक काटने का इरादा नहीं दिखाया। शायद उन्हे मालूम है कि लोकतंत्र ने जितनी ताक़त राहुल बाबा को दी है , वो ताक़त भला पीएम में कहां ? उन्होने पीएम को विनती करते हुए सुना है- मैं राहुल जी को मंत्री बनाना चाहता हूं। लेकिन वो मान नहीं रहे हैं। इन प्रेमियों ने इसके अलावा मंत्री के नामों की कांट – छांट करते राहुल के बारे में भी ख़ूब सुना है। राहुल बाबा को पूरे देश में घूमकर अपनी मां के साथ विपक्ष की बखिया उधेड़ते भी देखा है। सत्ता के सुख में मदांध नेहरू –गांधी परिवार को होते देखा है।
ये नज़ारा राहुल बाबा आंखों से नहीं देख पाए। वो तो उस दिन लंदन में छुट्टियां बिता रहे थे। अब पता नहीं वहां कोई भारतीय न्यूज़ चैनल देखा कि नहीं, जिसमें जन्माष्टमी की तरह राहुल चालीसा पढ़ा और दिखाया जा रहा था। देखें होंगे तो यक़ीनन बेहद खुश हुए होंगे। जन्मदिन के मौक़े पर राहुल के लंदन में होने से अपन लोग बेहद खुश हुए। बेचारा राहुल देश को सेक्युलर, मज़बूत सरकार और लोकतंत्र के लिए दिन रात एक किया था। सरकार बनाने के लिए क्या क्या जतन किए। मंत्रियों के नाम तय करने में अपने दिमाग़ का कितना दही किया। इतना सब करने में 39 साल का जवान राहुल बाबा कितना थक गया होगा। बेचारा विलायत में अपनी थकान उतार रहा होगा। खुश होना चाहिए। ठीक वैसे ही, जैसे कि हम उनके परदादा जवाहर लाल नेहरू के कोट फ्रांस से धुल कर आने की ख़बर सुनकर अपन लोग खुश होते थे।
अगर राहुल बाबा न होते तो देश कैसे कलावती को जानता। ये अलग बात है कि बेचारी कलावती नहीं समझती कि राहुल बाबा के पास कितने काम हैं। देश चलाना है। नौजवानों को जगाना है। संगठन खड़ा करना है। राहुल बाबा ने उसे एक पहचान दी है। पूरा देश अब उसे जानता है। लेकिन वो राहुल बाबा से टाइम लिए बग़ैर मिलने दिल्ली आ धमकी। नहीं मिल पाई। उसे बुरा तो बहुत लगा होगा। लेकिन समझ गई होगी कि बेचारे राहुल के पास कितना काम है। इतना काम है कि उन्हे अपनी कलावती से मिलने का वक़्त नहीं मिला। चुनाव से पहले जब उनके पास समय था तो महाराष्ट्र जाकर उससे नहीं मिले थे ! ये अहसान तो वो भूल ही जाती है।
सोचिए , अगर राहुल बाबा नहीं होते तो देश में दलितों का उद्धार कौन करता। कौन उत्तर प्रदेश के गांव में जाकर दलित की चारपाई पर सोता, उनकी रोटी खाता। अगर राहुल बाबा न होते तो कैसे विदेशों के मंत्री उत्तर प्रदेश के गांव और दलित का घर देख पाते। इन विदेशियों ने बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया था कि भारत अब सांप-संपेरों का देश नहीं रहा। दिल्ली की चमक और मुंबई की धमक को देखकर मान बैठे थे कि भारत बदल गया है। धन्य हों राहुल बाबा, जो आपने अज्ञानी विदेशी मंत्री को उत्तर प्रदेश के गांव में दलित के घर पहुंचाकर उसका ज्ञानचक्षु खोल दिया।
राहुल बाबा देश को आगे बढ़ाने के लिए कितना काम कर रहे हैं। युवा शक्ति की फौज खड़ी कर रहे हैं। देश युवाओं के हाथ में हो-इसके लिए वो युवाओं को आगे ला रहे हैं। अगर कलावती और राम सरेखन का बेटा-बेटी-बहू पढ़े लिखे होते तो उन्हे भी ज़रूर आगे लाते। अब अनपढ़ भरे पड़े तो वो क्या कर सकते हैं। वो कोशिश तो कर ही रहे हैं। राजेश पायलट के बेटे, माधवराव सिंधिया के बेटे, गनी ख़ान चौधरी की भांजी आदि –आदि को आगे ला रहे हैं। मंत्री बना रहे हैं।
राहुल बाबा को मंत्री नहीं बनना है। वो साफ कहते हैं- टैम ना है। अरे भई, इतना काम कर रहे हैं तो टैम कैसे मिलेगा। राहुल ये जानते हैं कि मंतरी- संतरी बनकर क्या होगा। बनना तो एक दिन पीएम ही है। पापा बने, दादी बनी, परदादा बने। एक दिन वो भी बनेंगे। पीएम की कुर्सी कौन सी भागी जा रही है ससुरी। कई बार तो ऐसा लगता है कि राहुल धार्मिक भी हैं। रामायण ख़ूब पढ़ी होगी। खड़ाऊं पूजन समझते होंगे। तभी तो मां-बेटे ने मिलकर मनमोहन सिंह को पीएम बना रखा है। भले आदमी हैं। सज्जन पुरूष हैं। वो बेईमानी नहीं करेंगे। खड़ाऊ शासन चलाते रहेंगे। जब सम्राट की ईच्छा होगी तो वो ख़ुद तख़्त ओ ताउस संभाल लेगा। सोनिया और राहुल दोनों ही लोकतंत्र और संविधान में अगाध आस्था रखते हैं। संविधान कहता है कि संसदीय दल का नेता ही प्रधानमंत्री होगा। संसदीय दल तय करेगा कि उसका नेता कौन हो। इसके बाद प्रधानमंत्री तय करेगा कि मंत्रिमंडल में कौन –कौन होगा। लेकिन मां- बेटे दोनों को मालूम है कि मनमोहन सिंह भद्र पुरूष हैं। राजनीति के नौसिखिए हैं। वो संसदीय दल को कह नहीं पाएंगे कि मुझे नेता चुनो। मीठा बोलनेवाले मनमोहन सिंह जी किसी को ये कह नहीं सकते कि आपको मंत्री नहीं बना सकता। उन्होने मनमोहन सिंह की इस बारे में भी मदद की है। चुनाव से पहले ही फरमान जारी कर दिया – मनमोहन ही पीएम होंगे। पीएम बनवा कर छोड़ा। आख़िर भले लोगों का साथ कौन नहीं देगा ? इस परिवार ने तो हमेशा देश का भला ही सोचा है। अगर इस परिवार ने आपातकाल नहीं थोपा होता तो जनता को लोकतंत्र का मतलब कैसे पता चलता ? लोकतंत्र पहले से कहीं ज़्यादा और मज़बूत कैसे होता ? हमारे देश के लोग भी जानते हैं कि इसी में उनकी भलाई है। शायद उन्हे भी कुछ मलाई मिल जाए। ऐसे में अगर भांगड़ा पा दिया तो कौन सा आसमान टूट पड़ा।

12 comments:

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

bahut khoob kahi chandan ji apne !

indian citizen said...

likha to bilkul theek hai.

Udan Tashtari said...

बहुत सटीक!!

अनुनाद सिंह said...

अंग्रेजों का नारा था - "डिवाइड एण्ड रूल" (बांटो और राज करो।)

सोनिया शासित कांग्रेस का नारा है - "फूल एण्ड रूल" (मूर्ख बनाओ और राज करो)


युवा-युवा बहुत चिल्ला रहे थे; जरूरत है अब देश का युवा चिल्लाये -

काम दो, काम दो |
रोजी का इन्तजाम दो !!

परमजीत सिहँ बाली said...

सटीक लिखा।
असल मे हम तो समझ ही नही पाते कि लोकतंत्र में ऐसा कौन सा तंत्र काम कर रहा है जो लोगों को गाँधी नेहरू परिवार के सिवा दूसरा कोई योग्य व्यक्ति सुझता ही नहीं??
अनूनाद जी सही कह रहे हैं।

डॉ. मनोज मिश्र said...

bhai jee aapne likha to sahee hai prntu congress ke paas aur koi vikalp bhee to nheen hai .

अजित गुप्ता का कोना said...

इस देश की जनता को अभिनेता पसन्‍द हैं, जो तरह-तरह के स्‍वांग रचकर मनोरंजन करते हैं और जनता उन्‍हें ही अपना आदर्श मान लेती है। अब बेचारे गरीब की खटिया पर सोने का अभिनय मिला तो वो किया और तगारी उठाने का मिला तो वो किया। जिसमें जनता और मीडिया खुश वो ही तो काम होगा। इस देश में प्रबुद्धता की जगह नहीं है। कोई भी पत्रकार युवराज से उनकी राजनीति के बारे में प्रश्‍न नहीं करता और न ही राजमाता से। अच्‍छी पोस्‍ट है लिखते रहिए और जन्‍मदिन का केक खाते रहिए। बधाई

Admin said...

यह भी अच्छा तरीका है पोस्ट हिट करने का.... दिल जलाने से खून घटता है जनाब

Gyan Darpan said...

बहुत सटीक पोस्ट |

वेद रत्न शुक्ल said...

"अगर कलावती और राम सरेखन का बेटा-बेटी-बहू पढ़े लिखे होते तो उन्हे भी ज़रूर आगे लाते। अब अनपढ़ भरे पड़े तो वो क्या कर सकते हैं। वो कोशिश तो कर ही रहे हैं। राजेश पायलट के बेटे, माधवराव सिंधिया के बेटे, गनी ख़ान चौधरी की भांजी आदि –आदि को आगे ला रहे हैं। मंत्री बना रहे हैं।" सटीक... अत्यन्त सटीक कहा आपने। पूरी चमड़ी ही उधेड़ दी।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

कबीले तारीफ है आपका ये लेख | वैसे बहुत कम मीडिया वाले ऐसे हैं जो राहुल बाबा, सोनिया मैडम के महिमा मंडन का कोई मौका छोड़ना चाहते | कांग्रेस मैं भी कुछ सच्चे नेता हैं जो आच्छा काम भी कर रहे हैं और सोनिया - राहुल से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है, लेकिन हमारी गुलाम मानसकिता को तो बस कोई ' foreign ' माल चाहिए | अब तो हमारे लिए दीपावली, होली फादर्स डे, मदर्स डे, वलन्तैन डे ज्यादा अहमियत रखते हैं |

नई राह said...

kafi behtar likha apne .............