कथित लौह पुरूष लालकृष्ण आडवाणी के राम मतलबी हैं। मेरा ये कहना अनायस नहीं है, सपाट नहीं हैं। बहुत सारे तर्कों -वितर्कों के आधार पर मैं बीजेपी के लौह पुरूष को फरेबी कह रहा हूं। संघियों को अगर आपत्ति है, तो वो इस बहस में ज़रूर शामिल हों।
कहने को पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी लौह पुरूष हैं। लेकिन असलियत में वो ज़ुबान से मोम पुरूष हैं। अपनी बात कहकर कब मुकर जाते हैं, इसका उन्हे ख़्याल भी नहीं रहता। अपनी आत्मकथा में उन्होने दावा किया है कि दुनिया की कोई भी ताक़त अब अयोध्या में राम मंदिर बनने से नहीं रोक सकती। अपनी पीठ थपथपाते हुए वो लिखते हैं कि 90 के आंदोलन के दौरान उन्होने जो बुनियाद खड़ी कर दी है, अब उसे हिला पाना नामुमक़िन है। आडवाणी अपनी किताब में भी राजनीति करने से बाज़ नहीं आते। लिखते हैं कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अगर फच्चर नहीं किया होता तो राम मंदिर मुद्दे का हल निकल गया होता। अब सवाल ये है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद चंद्रशेखर, नरसिंह राव, एच डी दैवेगौडा़, इंद्र कुमार गुजराल भी तो प्रधानमंत्री बने। फिर क्यों नहीं राम मंदिर का मुद्दा सुलझ गया ? औरों की बात तो छोड़िए- राम के कंधे पर सवार होकर अटल बिहारी वाजपेयी की बारात कई बार देश की सत्ता पर काबिज़ हुई। इस बारात में लालकृष्ण आडवाणी ही सहबाला थे। फिर क्यों नहीं अयोध्या में राम मंदिर बना दिया ? आडवाणी लिखते हैं कि राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी ने एनडीए में एकराय बनाने में क़ामयाबी हासिल कर ली थी। अगर ये सच है कि संसद से क़ानून बनाकर ये हुक़्म जारी करा देते कि अयोध्या में किसी और धर्म का झंडा नहीं लहराएगा। बनेगा तो सिर्फ वहां राम मंदिर ही। ऐसा वो कर सकते हैं। लोकतंत्र में उन्हे ऐसा करने का अधिकार था। सवाल जनभावना का था। सवाल बहुसंख्यक समुदाय का था। उन्हे बहाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। जब पूरा देश गुजरात का नंगा नाच देख रहा था तो लोकतंत्र का नीरो बांसुरी बजा रहा था। साबित करने पर तुले थे कि उनका लाल नरेंद्र मोदी जो भी कर रहा है, वो जायज़ है।
दूसरी बात ये कि राम मंदिर मुद्दे पर जब एनडीए सरकार में एका थी तो क्यों साधु-संतों का सड़कों पर उतर कर आंदोलन करना पड़ा। उस दौरान आडवाणी ने संतों को सार्वजनिक तौर पर संदेश दिया था- याद रखें, ये बीजेपी की सरकार नहीं है। ये एनडीए की सरकार है। अयोध्या में बिफरे पड़े एक बाबा को मनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना दूत अयोध्या भेजा था। वो बाबा भी ऐसे वैसे नहीं थे। काफी बुज़ुर्ग थे और चालीस के दशक से राम मंदिर का अलख जगा रहे थे। अब वो बाबा राम के प्यारे हो गए। बड़े अरमान थे उनके कि एक बार राम मंदिर में मत्था टेक कर ही जगत को अलविदा कहें। नब्बे के दशक में बीजेपी के मोहक नारे के छलावे के मोह में वो बाबा भी फंस गए थे। जो दुनिया की सब मोब तजकर बेचारे साधु संत बने थे। याद कीजिए- मंडल के आंदोलन के दौरान वाजपेयी ब्रिगेड का नारा- सौगंध राम की खाते हैं हम , मंदिर वहीं बनाएंगे। राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। गंगा -जमुनी तहज़ीब में बंधे देश में नारा लगा- बाबर के औलादों से ख़ून का बदला लेना है। जिस हिंदू का ख़ून न खौला, ख़ून नहीं वो पानी है। जो मंदिर के काम न आए, वो बेकार जवानी है। याद है वो दिन भी , जब राम मंदिर बनाने के लिए पूरे देश से ईंट जमा किया गया था। राम के भक्तों ने पांच - पांच सौ रूपए एक ईंट के चुकाए थे। ताकि अयोध्या में मंदिर बन सके। जनभावना को भड़कानेवाली फौज 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हंगामा बरपाया। देखते ही देखते बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गया। बीजेपी के बड़े नेताओं और न जाने इनके कितने तरह के संगठनों ने नारा भी लगाया। बजरंग दल, हनुमान दल, वानर दल और न जाने कितने तरह के दल के बजरंगी अयोध्या में तैनात थे। ज़ोर ज़ोर से नारा लगा- एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो। मस्जिद के भरभराते ही अब की रूठी और तब की दुलारी उमा भारती ने मुरली मनोहर जोशी से गलबहियां कर लिया था। सत्ता के भूखे नेताओं ने एक के बाद एक बयान देने शुरू कर दिए। मस्जिद तोड़ने का इरादा नहीं था। हमने नहीं उकसाया। उन्माद को क़ाबू कर पाना संभव नहीं था। वाजपेयी जी की तंद्रा टूटी। बयान आया - जो हुआ, बहुत बुरा हुआ। शर्मसार है देश । अटल जी ने पहले इससे पल्ला झाड़ा। फिर सेहरा बांधने से भी नहीं हिचके। करोड़ों लोगों का वोट बीजेपी को सिर्फ इसलिए मिला था ताकि सत्ता में आते ही राम का मंदिर बनवाएं।
याद कीजिए बीजेपी के और सारे कई वादे। सत्ता में आए तो देश में एक क़ानून होगा। क्या बना सबके लिए एक क़ानून ? 370 खत्म कर देंगे। क्या ख़त्म हुआ 370 ? इन नारों के लिए फायर ब्रांड साध्वी ऋंतभरा को उतारा गया था। जो खुलकर कहती थीं- नहीं चाहिए कटा हुआ देश औऱ कटे हुए लोग। सत्ता में आते ही बीजेपी सब भूल गई।
आडवाणी के राम छलिया हैं। ये राम सिर्फ चुनाव की आहट पाकर जगते हैं। ये रोम रोम में नहीं बसते। चुनाव के समय अयोध्या से निकलकर पूरे देश में बसते हैं। आडवाणी के राम चुनावी हैं।
हमारे राम मायावी हैं। कृपालु हैं। सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय हैं। वो अंतर्यामी हैं। वो मर्यादा का पाठ पढ़ाते हैं। छल कपट से दूर रखते हैं। हमारे राम सिर्फ मंदिरों में नहीं बसते। हमारे राम मन में बसते हैं। हमारे राम रोम -रोम में बसते हैं। हमारे राम चुनावी नहीं है। हमारे राम हर पल हमारे साथ रहते हैं। वो हमारी आत्माओं में बसते हैं। वो इधर भी बसते हैं, उधर भी रचते हैं। वो हिंदुओं के राम है। वो मुसलमानों के राम हैं। वो सिख, ईसाई, पारसी , युहूदी सबके राम हैं। हमारे राम जय श्री राम नहीं है। हमारे राम- जय राम जी की हैं। हमारे राम ज़ाकिर भाई के भी मन में हैं। इसलिए वो हमेशा पलटकर जवाब देते हैं- राम राम भाई जान । हमारे राम गांधी जी में बसते थे। मरते वक़्त भी राम का दामन नहीं छोड़ा। हमारे राम महान है।
6 comments:
chandan ji
I am not totally agree with your comment. partially it is right but by large it cannot be acceptable. I think You have not read MY COUNTRY MY LIFE throughly. I think,the comment you have made is based on news papers cutting. So before making any serious comment on book ,first read the book. you also raised some point regarding Ex. PM B.P.singh. Although its personal but,I know why C.P.singh is showing sympathy to B.P.Singh.
no matter Chalta hai. Bura na mano holi hai.
Mukesh Kumar
Dear Mukesh Jee
I like your comment. ist off all i would like to bring in your kind notice that during 1990, in Some Bhart times paper, some journo called me chama...... i know , you also know few of them is in rajyasabha on the ticket of BJP. Mukesh jee i am a journalist. Not doing job of pay roll of any party or leader. if you are real journalist then recall the advani's stament during the period of 1990 to 1993. I just want to reacll you the slogan of BJO- Party with a diffrence. There is no diffrence betwen BJP and Others. One of the coloision partner J Jaylalitha allges PMO( Atal Bihari Vajpayee) for corruption. Is in'it? GOD BLESS YOU.
chandan ji
whatever you have witten in rep-ly is not the answer of my question. I dont want to discuss on BJP and BJP leaders. this time I M nopt Questioning infact I m suggestins that please read the book, My Country My Life.
cool
Mukesh
Dear Mukesh Jee
for your kind information my hobby is to read the books. yes i will do. but my dear friend, the abstart was published is from the book. Not from the kathrine fanks or pupul jaikar's book. A lot of stories is published in several newspaper based on the books. My dear friend, reading newspaper is my bad habbit. Bid in the sence- Cause the field reporters left the habbit of reading newspaper. By the way you must read the latest book of khuswant singh. in the book , you will come to about Nargis and Amrita Pritam. Hope, you had allraedy read the book. Cuase it's your hobby!!!!! God bless you.
chandan ji cool...cool
yes reading book is my hobby, but I have not red your suggest book. I appreciat your honesty and courage. atleast you acept that you have not read the said book. In my first reply,I had suggesed you to read My country My life... because I pessonally not like the coomment that based on others comment. The news that published in diffrent news paper is a view of that reporter, it is not even a word for word traslation of book or part of book. So the comment based on news papers comment is naturally became the second hand comment. Ok, you accepted that you have not read the book...
NOTE
pahle kitab kharidein phir padhe, uske baad mujhe bhi dein...maine bhi nahi padhi hai. Yashwant singh wali to turant dein.
Mukesh
M ukesh Jee
I byed that book. But need time to go to last pages. And if you are saying that without reading the whole book , you cant make comment. Dear Mukesh Bhai Jaan, It means all the journos r fool, who did the story on the abstract of book, which was supplied by Sudhindra Kuklkarni. Yes you can read pratham prawakta.
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