देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा को अब पूरी दुनिया जानती है। पहली बार लोगों ने नोएडा का नाम तब सुना, जब निठारी गांव में बच्चों का कंकाल मिला था। दूसरी बार , लोगों ने नोएडा का नाम फिर तब सुना , जब चौदह साल की एक बच्ची आरूषि की हत्या हो गई। दोनों ही बार लोगों ने नोएडा का नाम अपराध के ज़रिए जाना। दुनिया के सामने नोएडा की सही तस्वीर सामने आई है। अगर लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है तो नोएडा अपराध की राजधानी है। पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबलियों को ये जगह बहुत रास आता है। ये वहीं इलाक़ा है, जहां से डी पी यादव और मदन भैय्या जैसे लोगों के पैर मज़बूत हुए हैं।
चौदह साल की आरूषि मशहूर डीपीएस की छात्र थी। माता- पिता भी काफी पढ़े लिखे और सभ्रांत हैं। पिता डॉक्टर राजेश तलवार डेंटिस्ट हैं तो मां नूपुर तलवार भी एक डॉक्टर। घर की इकलौती चिराग़। माता पिता ने लगभग तीन दशक पहले लव मैरिज की। औलाद के लिए बहुत मन्नतें मांगी । तब जाकर कहीं घर में आरूषि की खिलखिलाहट सुनाई पड़ी। लेकिन ये हंसी चौदह साल सा ज़्यादा की नहीं रही। चौदह साल घर में मातम छा गया। आरूषि की हत्या हो गई। उसके साथ ही पैंतालीस साल के नेपाली नौकर हेमराज की भी ख़ून हो गया। जितनी मुंह, उतनी बातें। हत्या के आरोप में पिता धरे गए। बवाल हुआ। सीबीआई ने कंपाउंडर कृष्णा को हत्या के आरोप में धर लिया। लेकिन अफवाहों को ज़ोर नहीं थमा। नाजायज़ रिश्तों की भी बात चली। किसी ने आरूषि और हेमराज में रिश्ते की बात छेड़ी तो किसी ने राजेश और डॉक्टर अनिता दुर्रानी के रिश्तों की बात की। बात अदला-बदली तक भी पहुंच गई। लेकिन अभी तक सही कहानी सामने नहीं आई है।
कृष्णा कुछ और कहता है। सीबीआई कुछ और कहती है। कृष्णा अदालत को कहता है कि उसने आरूषि और हेमराज को नहीं मारा। लेकिन सीबीआई कहती है कि कृष्णा ने ही डबल मर्डर किया है। कृष्णा कहता है कि उसे इस हत्या के बारे में कुछ नहीं मालूम। लेकिन सीबीआई कहती है कि कृष्णा को सब कुछ मालूम है। कृष्मा कहता है कि उसे नहीं मालूम कि किस हथियार से दोनों का ख़ून हुआ है औऱ वो हथियार कहां है। लेकिन सीबीआई कहती है कि उसे सब मालूम है। कृष्णा कहता है कि जब उसने ख़ून नहीं किया तो उसके कपड़े पर ख़ून के छींटे कैसे होंगे। सीबीआई कहती है कि कपड़े बरामद कराओ। सीबीआई ने कृष्णा को पॉलिग्राफिक टेस्ट, नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग भी करा लिया। सीबीआई कहती है कि ये सब कृष्णा की मर्ज़ी से हुआ। कृष्णा कहता है कि सीबीआई ने उससे ज़बरदस्ती की। सीबीआई के ज्वाइंट डिरेक्टर अरूण कुमाऱ झा कृष्णा को लेकर बंगलुरू धमक गए नार्को टेस्ट कराने। सीबीआई के इतने बड़े अधिकारी को ध्यान भी नहीं रहा कि इसके लिए अदालत का आदेश चाहिए। जब हॉस्पिटल ने मना किया तो अदालती आदेश लेकर आए। सीबीआई इनती जल्दी में क्यों है? अगर कृष्णा के पास भी पैसा होता, दौलत होती, अमीर होता, तो क्या सीबीआई ऐसे सलूक कर पाती। डीपी यादव के बेटे विकास यादव के नार्को टेस्ट कराने में कैसे पसीने छूटे थे , सीबीआई भूल गई ? सीबीआई की जांच को हम सही कैसे मान ले क्योंकि सीबीआई ने अब तक जितनी जाच की है, उस पर सवाल उठे हैं। चाहें वो बोफोर्स का मामला हो या आरोपी अक्तोवियो क्वोत्रिकी को बैंक से धन निकालने का मामला। सीबीआई के हर फैसले पर सरकार के इशारे पर नाचने का आरोप है। क्या सीबीआई की जांच ग़रीबों के लिए अलग और अमीरों के लिए अलग होती है ? सीबीआई ने दम भरा था कि ये केस 24 घंटे में हल होनेवाला केस है। लेकिन क्या हुआ... 24 घंटे तो बीत गए।
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vicharaniy post.dhanyawad
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