Saturday, November 3, 2007

फिर छिड़ी है बहस ज़िम्मेदारी की

एक प्राइवेट चैनल पर दिल्ली की स्कूल टीचर उमा खुराना को स्कूली छात्राएं सप्लाई करनेवाली पिंप की तरह दिखाया गया था। बाद में रिपोर्टर के पकड़े जाने पर खुलासा हुआ कि उमा खुराना को फर्ज़ी फंसाया गया है। मामला अदालत में है। लेकिन अदालत ने इस बारे में जो टिप्पणी की है, उससे प्राइवेट चैनल वालों के पेशानी पर बल पड़ गए हैं। अदालत ने पूछा है कि इस गड़बड़झाले के लिए चैनल को क्यों नहीं ज़िम्मेदार माना जाए। आख़िर चूक संपादकीय प्रबंधन की भी तो है। अदालत ने उस दिल्ली पुलिस को भी जवाब तलब किया है कि उसने इस बारेमें चैनल और उसके संपादकीय विभाग के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की है।
हमेशा आपके साथ रहने का दावा करनेवाली दि्लली पुलिस ने अपनी जांच में उमा खुराना को बेक़सूर पाया। पुलिस की नज़र में रिपोर्टर और उसकी सहेली दोषी है। लेकिन पुलिस की जांच रिपोर्ट में इतना बचपना क्यों है कि उसे चैनल के बड़े अधिकारियों की ग़लती नज़र नहीं आती। प्राइवेट चैनल हो या सरकारी - हर जगह हर ख़बर की स्कैनिंग के लिए टीम होती है। ये नियम इस चैनल पर भी लागू है। चैनल के संपादकीय नीति की कमान ऐसे अनुभवी पत्रकार के हाथ में है, जो कुल जमा बारह साल के अनुभव को सफेद बालों वाले पत्रकारों के अनुभव से तौलता है और अपने अनुभव को हमेशा बीस पाता है। कभी मॉडलिंग की दुनिया में हाथ पैर पटक चुके इस पत्रकार ने पुलिस के सामने भोला भाला बयान दिया कि उसे उसके रिपोर्टर ने गुमराह किया। पुलिस भी इतनी भोली कि उसके बयान को बेदवाक्य की तरह सही मान लिया। लेकिन इस भोलेपन ने परदे के पीछे ऐसे कुछ सवाल छोड़ दिए हैं, जिसका जवाब पाना इस स्टिंग आपरेशन की सच्चाई जानने के लिए ज़रूरी है।
अगर दोष सिर्फ उस रिपोर्टर का था तो फिर चुपके से उस पत्रकार से इस्तीफा क्यों मांग लिया गया, जिसकी नज़र में ये स्टिंग आपरेशन सही था। जिसने इस ख़बर को चलाने में अहम भूमिका निभाई थी। चंद दिनों में वो मन से क्यों उतर गया। चैनल प्रमुख की बात थोड़ी देर के लिए सच मान लेते हैं । फिर चैनल प्रमुख ये बात बताएं कि चैनल के दफ्तर में ऐसे लोगों की भीड़ क्यों जुटाई गई है जो डेस्क संभालते हैं। अगर रिपोर्टर की कोई भी स्टोरी इन लोगों की जानकारी या मर्ज़ी के बग़ैर एयर हो रही है तो ऐसे लोगों की टोली क्या आफिस में एसीकी हवा खा रही है। फॉक्स चैनल का स्लोगन - वी रिपोर्ट , यू डिसाइड का स्लोगन हिंदी में अनुवाद कर - ख़बर हमारी , फैसला आपका का नारा बुलंद करनेवाले क्या कर रहे हैं। भूत प्रेत और नाग नागिन का डांस दिखाने के एक्सपर्ट पत्रकारों की नज़रें इतनी कमज़ोर है कि इस स्टिंग आपरेशन के होनेवाले डंक के असर के मर्म को नहीं समझ पाए। या फिर सस्ती लोकप्रियता औऱ जल्दी आगे बढ़वने की होड़ में एक महिला टीचर की बदनामी करने से भी नहीं घबराए। हर ख़बर पर जनता का मत लेनेवाले मूर्धन्य पत्रकार ये बता सकते हैं कि उनकी बचकानी हरकत से उमा खुराना की जो बदनामी हुई है, जो किरकिरी हुई है, उसकी भरपाई कैसे होगी। फर्ज़ी ख़बर को देखकर उमा खुराना की पिटाई करनेवाले औऱ सरेआम कपड़े नोंचनेवाले ये बता सकते हैं कि क्या माफी मांग लेने या दूसरे के मत्थे ठीकरा फोड़ देने से उमा खुराना को जो जगहंसाई हुई है, वो वापिस हो जाएगी। नहीं लगता कि प्रबुद्ध, मूर्धन्य और अनुभव के बोझ तले उन पत्रकारों में इतनी सत्सहास है कि वो एयर पर बार बार दोहराएं कि हमारी ग़लत ख़बर की वजह से उमा खुराना को तकलीफ हुई है। बदनामी हुई है। जगहंसाई हुई है। पिटाई हुई है।कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाना पड़ा है। नौकरी गंवानी पड़ी है। उसे अपनी ईमानदारी के लिए हर चौखट पर सबूत पेश करना पड़ रहा है। हम माफी मांगते हैं। हम शर्मिंदा है। हमने उमा तुझे जीते जी मार दिया। महिला का सबसे बड़ा गहना - इज्ज़त को हमने तार तार कर दिया। हमें अब शर्म आती है। आइंदा हम ये नही कहेंगे कि ख़बरों से खेलना कोई बच्चों का खेल नहीं है। क्योंकि इस ख़बर में बचपने से ज़्यादा अपराध था। हम विज्ञापन से होनेवाली महीने- दो महीने की कमाई तुम्हारे हवाले कर रहे हैं। हम श्रमजीवी पत्रकार, जिनके कंधे पर नैतिकता की ज़िम्मेदारी है, हम उसे समझते हैं। श्रम से कमाई गई रक़म का एक हिस्सा आपके हवाले कर रहे हैं। हम उस रूतबे को वापस तो नही कर सकते लेकिन माली तकलीफ को दूर कर सकते हैं। लेकिन क्या अनुभवों के बोझ तले दबे पत्रकारों की ये टोली ऐसा कोई क़दम उठाएगी। बहस खुली है। क्योंकि यहां सवाल जनमत का है ।

3 comments:

बालकिशन said...

आज के पत्रकार बलिहारी. केवल सनसनीखेज की खोज मे रहते है. इल्जाम वही जनता के सर कि जो देखेगी वही तो दिखायेंगे. बिल्कुल सही कहा आपने .बहस खुली है. चर्चा जारी रहनी चाहिए.

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं आप.

amit Gandhi said...

apane sahi likha hai in solaha duni ath journalisto ko kun samjhaya.ya apane ap ko bhaut kabil manata hai par khabaro ka mamale ma ya utna kabil nahi hai.