लोग अक्सर मज़़ाक में कहते हैं कि ये यूपी पुलिस है। अगर इसकी पकड़ में कुछ घंटे के लिए तोता भी आ जाए तो वो रट लगाने लगेगा कि वही ओसामा बिन लादेन है। दुनिया की शायद ये इकलौती पुलिस है, जो हत्यारों, बलात्कारियों और डकैतों को समय रहते तो नहीं पकड़ सकती लेकिन डकैती की योजना बनाते डकैतों को पहले ही ज़रुर धर लेती है। मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एस.पी. गोयल पर काम के बदले पच्चीस लाख रुपए की घूस मांगने का आरोप लगाने वाले लखनऊ के इंदिरा नगर के अभिषेक गुप्ता के क़ुबूलनामे के बाद फिर से ये लतीफे सियासी फिंज़ा में तैरने लगे है। अभिषेक गुप्ता की गिरफ्तारी और उसके कुबूलनामे से कई शदीदी सवाल खड़े होते हैं।
पहले सवाल ये है कि आरोप अप्रैल में लगाए गए लेकिन उनके खिलाफ एफआईआर 6 जून को दर्ज कराई गई। ये एफआईआर मुख्यमंत्री सचिवालय ने नहीं बल्कि यूपी बीजेपी ऑफिस ने कराई। शिकायत करने में इतनी देरी क्यों की गई। पुलिस को ये शिकायत तब क्यों की गई जब घूस की जांच करानेवाली राज्यपाल की चिट्ठी मीडिया के हाथ लग चुकी थी। अभिषेक गुप्ता की गिरफ्तारी को पुलिस ने हिरासत में क्यों बताया। हिरासत में लेते समय अभिषेक के घरवालों को क्यों जानकारी नहीं दी गई। अभिषेक गिरफ्तारी तब क्यों की गई जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने सीबीआई जांच की मांग कर सियासी रंग दे दिया।दरअसल, अभिषेक गुप्ता ने 18 अप्रैल को ईमेल कर राज्यपाल राम नाइक से शिकायत की थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रमुख सचिव एस,पी. गोयल काम के बदले में पच्चीस लाख रुपए मांग रहे है। राज्यपाल ने 30 अप्रैल को मुख्यमंत्री से जांच कराने की संस्तुति वाली चिट्ठी प्रेषित कर दी। ये चिट्ठी सात जून को मीडिया के हाथ लग गई और आठ जून को वायरल हो गई। मीडिया के हाथ चिट्ठी लगने की भनक मिलते ही बीजेपी ऑफिस के प्रभारी भरत दीक्षित ने हजरतगंज थाने में आईपीसी की धारा 501 और 420 के तहत केस दर्ज कराया। आरोप लगाया कि अभिषेक बीजेपी नेताओं का नाम लेकर सीएम ऑफिस पर दबाव बना रहा है। इसकी जानकारी उनको मुख्यमंत्री के विशेष सचिव संभ्रात शुक्ला ने दी है। इसके बाद पुलिस ने आठ मई को अभिषेक को धर लिया। इस पूरे प्रकरण से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
पहला ये कि पुलिस को ये शिकायत इतनी देर से क्यों की गई। ये शिकायत बीजेपी ऑफिस के प्रभारी ने क्यों की। बीजेपी नेताओं के नाम पर दबाव बनाने की बात जब मुख्यमंत्री के विशेष सचिव के संज्ञान में आई तो इसकी जानकारी मुख्यमंत्री से न कर बीजेपी ऑफिस में क्यों की। वो सीधे पुलिस में क्यों नहीं गए। 30 अप्रैल की चिट्ठी पर कुंडली मारकर बैठे सीएम योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के आरोपों के बाद ही जांच रिपोर्ट क्यों मांगी। 30 अप्रैल की चिट्ठी पर मुख्यमंत्री के निर्देश मिलने पर आनन-फानन में मुख्य सचिव राजीव कुमार ने क्लीन चिट रिपोर्ट कैसे दे दी। अभिषेक का आरोप था कि सड़क की चौड़ीकरण के लिए उससे घूस मांगे गए। लेकिन रिपोर्ट में ये दिखाया गया कि अभिषेक ने हरदोई के रेसो गांव के गाटा संख्या 184 का विनिमय ग्राम समाज की जमीन गाटा नंबर 187 करने की प्रार्थना की थी। इसका फैसला मुख्यमंत्री और राजस्व विभाग के विवेक पर होता है। इसलिए उसकी प्रार्थना रद्द कर दी गई। मज़ेदार बात तो ये है कि एक तरफ प्रशासन ने क्लीन चिट दी वहीं। पुलिस की भी क्लाीन चिट आ गई, जिसमें अभिषेक ने माफी मांगते हुए कहा कि मानसिक दबाव में आकर ये आरोप लगाए थे। अब सवाल फिर ये कि अगर ये आरोप मेंटल प्रेशर का नतीजा है तो फिर अभिषेक ने सीधे सीएम या पीएम पर आरोप क्यों नहीं लगाए। कुल मिलाकर विरोधी दल और लोगों को लगता है कि दाल में काला तो ज़रुर है । हो सकता है कि पूरी दाल ही काली हो।
पहले सवाल ये है कि आरोप अप्रैल में लगाए गए लेकिन उनके खिलाफ एफआईआर 6 जून को दर्ज कराई गई। ये एफआईआर मुख्यमंत्री सचिवालय ने नहीं बल्कि यूपी बीजेपी ऑफिस ने कराई। शिकायत करने में इतनी देरी क्यों की गई। पुलिस को ये शिकायत तब क्यों की गई जब घूस की जांच करानेवाली राज्यपाल की चिट्ठी मीडिया के हाथ लग चुकी थी। अभिषेक गुप्ता की गिरफ्तारी को पुलिस ने हिरासत में क्यों बताया। हिरासत में लेते समय अभिषेक के घरवालों को क्यों जानकारी नहीं दी गई। अभिषेक गिरफ्तारी तब क्यों की गई जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने सीबीआई जांच की मांग कर सियासी रंग दे दिया।दरअसल, अभिषेक गुप्ता ने 18 अप्रैल को ईमेल कर राज्यपाल राम नाइक से शिकायत की थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रमुख सचिव एस,पी. गोयल काम के बदले में पच्चीस लाख रुपए मांग रहे है। राज्यपाल ने 30 अप्रैल को मुख्यमंत्री से जांच कराने की संस्तुति वाली चिट्ठी प्रेषित कर दी। ये चिट्ठी सात जून को मीडिया के हाथ लग गई और आठ जून को वायरल हो गई। मीडिया के हाथ चिट्ठी लगने की भनक मिलते ही बीजेपी ऑफिस के प्रभारी भरत दीक्षित ने हजरतगंज थाने में आईपीसी की धारा 501 और 420 के तहत केस दर्ज कराया। आरोप लगाया कि अभिषेक बीजेपी नेताओं का नाम लेकर सीएम ऑफिस पर दबाव बना रहा है। इसकी जानकारी उनको मुख्यमंत्री के विशेष सचिव संभ्रात शुक्ला ने दी है। इसके बाद पुलिस ने आठ मई को अभिषेक को धर लिया। इस पूरे प्रकरण से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
पहला ये कि पुलिस को ये शिकायत इतनी देर से क्यों की गई। ये शिकायत बीजेपी ऑफिस के प्रभारी ने क्यों की। बीजेपी नेताओं के नाम पर दबाव बनाने की बात जब मुख्यमंत्री के विशेष सचिव के संज्ञान में आई तो इसकी जानकारी मुख्यमंत्री से न कर बीजेपी ऑफिस में क्यों की। वो सीधे पुलिस में क्यों नहीं गए। 30 अप्रैल की चिट्ठी पर कुंडली मारकर बैठे सीएम योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के आरोपों के बाद ही जांच रिपोर्ट क्यों मांगी। 30 अप्रैल की चिट्ठी पर मुख्यमंत्री के निर्देश मिलने पर आनन-फानन में मुख्य सचिव राजीव कुमार ने क्लीन चिट रिपोर्ट कैसे दे दी। अभिषेक का आरोप था कि सड़क की चौड़ीकरण के लिए उससे घूस मांगे गए। लेकिन रिपोर्ट में ये दिखाया गया कि अभिषेक ने हरदोई के रेसो गांव के गाटा संख्या 184 का विनिमय ग्राम समाज की जमीन गाटा नंबर 187 करने की प्रार्थना की थी। इसका फैसला मुख्यमंत्री और राजस्व विभाग के विवेक पर होता है। इसलिए उसकी प्रार्थना रद्द कर दी गई। मज़ेदार बात तो ये है कि एक तरफ प्रशासन ने क्लीन चिट दी वहीं। पुलिस की भी क्लाीन चिट आ गई, जिसमें अभिषेक ने माफी मांगते हुए कहा कि मानसिक दबाव में आकर ये आरोप लगाए थे। अब सवाल फिर ये कि अगर ये आरोप मेंटल प्रेशर का नतीजा है तो फिर अभिषेक ने सीधे सीएम या पीएम पर आरोप क्यों नहीं लगाए। कुल मिलाकर विरोधी दल और लोगों को लगता है कि दाल में काला तो ज़रुर है । हो सकता है कि पूरी दाल ही काली हो।
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