26 मई 2018 को नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार इलेक्शन मोड में आ गई। मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। अब गिने-चुने दिन ही बचे हैं। मोदी सरकार 48 साल बनाम 48 महीने और विकास के जुमले को उछालकर फिर से सरकार बनाने का सपना देख रही है। याद कीजिए कि मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने भी विकास के नारे पर चुनाव लड़ा था। लेकिन नतीजे किसी से छिपे नहीं है। इसमें कोई शक़ नहीं कि मोदी की सरकार और इनके नेता तर्क गढ़ने में माहिर हैं। इस तरह के आंकड़ें उछालते हैं कि अच्छे-अच्छों का सिर चकरा जाता है। पिछले चार सालों में इस सरकार ने अगर कुथ अच्छे काम किए हैं तो बुरे और ग़लत कामों का भी भंडार है। ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें मोदी सरकार कोई अहम सुधार करने में नाकाम रही है। इसकी एक मिसाल भर है जमीन और लेबर सुधार। ये उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं, जो भारत में कारखाने लगाना चाहते हैं।
देश आज भी 8 नवंबर 2016 को भूला नहीं है। नोटबंदी का काला अध्याय वाला दिन। 500 और 1000 के नोटों को अगले कुछ घंटों में गैरकानूनी ठहराने के ऐलान के साथ ही मोदी ने अर्थव्यवस्था की डूबती-उतराती नैया में छेद कर दिया था। इस तरह मोदी ने एक झटके में देश में चलने वाली 86 फीसद करेंसी को गैरकानूनी बना दिया। मोदी के विरोधी कहते हैं कि ये आधुनिक भारत के आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक तबाही थी। दस साल तक अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद एक तजुर्बेकार राजनेता मोदी ने 2014 की शुरुआत में भारतीयों से 'अच्छे दिन' और लाने और 'सबका साथ, सबका विकास' करने का वादा किया। तब से चार साल गुजर चुके हैं। क्या मोदी ने उन वादों को पूरा किया है?
कई बार आंकड़े आप को बरगला देते हैं। फिर भी हमें आंकड़ों को देखकर ये पता लगाना होगा कि आखिर वो क्या कहते हैं। ये 10 चार्ट बताते हैं कि एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने मोदी के राज में कैसा प्रदर्शन किया है। बात जीडीपी की। पिछले चार सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत जीडीपी 7.3 फीसद की दर से बढ़ी है। ये यूपीए-2 के पहले चार सालों की जीडीपी विकास दर 7.2 फीसद के मुकाबले में एकदम बराबर ही है। यानी इस मोड़ पर भी मोदी ने कोई कमाल नहीं किया। . मज़े की बात है कि आंकड़ों की बाज़ीगर मौजूदा सरकार ने जीडीपी का हिसाब लगाने का तरीका जनवरी 2015 से बदल ही दिया।
इसके अलावा अगर हम अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें, तो कृषि की विकास दर मोदी सरकार के दौर में घटकर 2.4 फीसद ही रह गई है। यूपीए-2 के पहले चार सालों में कृषि क्षेत्र की विकास दर औसतन 4 फीसद रही थी। मोदी सरकार के चार सालों में औद्योगिक विकास की दर 7.1 प्रतिशत रही. जो यूपीए-2 के 6.4 फीसद के मुकाबले मामूली रूप से ज्यादा है। मोदी सरकार के राज में सर्विस सेक्टर का विकास 8.8 फीसद की सालाना दर से हुआ। जबकि यूपीए-2 में ये दर 8.3 प्रतिशत और यूपीए-1 में ये 9.9 प्रतिशत रही थी।
मोदी सरकार के शुरुआती कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी कम थ।. इसकी वजह से थोक महंगाई दर का चार सालों का औसत 0.59 प्रतिशत बैठता है। वहीं यूपीए-2 के राज के पहले चार सालों में थोक महंगाई दर 7.4 प्रतिशत रही थी। यहां ये बात भी गौर करने लायक है कि थोक महंगाई दर तय करने का आधार मोदी सरकार ने 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था।
उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर में भी खेल हुआ। ये वो दर है जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करता है। मोदी सरकार ने इसके मापने की दर में भी थोक मूल्य सूचकांक की तरह ही बदलाव किया था। मोदी सरकार ने इसे मापने का आधार वर्ष 2010 से बदलकर 2012 कर दिया था. इस दौरान औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्त वर्ष 2014 में 9.49 प्रतिशत थी।
ये बात साफ है कि शेयर बाजार में निवेश करने वालों ने यूपीए सरकार के दौरान ज्यादा पैसा कमायाष सेंसेक्स ने मोदी सरकार के पहले चार सालों में औसतन 10.9 फीसद की दर से रिटर्न दिया। वहीं निफ्टी ने 11.6 प्रतिशत के औसत से निवेशकों को मुनाफा दिया है। जबकि यूपीए-2 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 22.3 और निफ्टी ने 20.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया था। मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2015 में सेंसेक्स ने 24.9 प्रतिशत और निफ्टी ने 26.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया। यहां भी मोदी सरकार फिसड्डी साबित हुई।
मोदी सरकार के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पेट्रोल-डीजल के दाम में लगी आग है। मनमोहन सरकार में जब तेल के भाव बढञते थे, तब यही मोदी कहते थे कि दिल्ली की सरकार निकम्मी है। उसकी नीतियां भ्रष्ट हैं। आज वही मोदी है। उनके राज में पेट्रोल और डीज़ल धधक रहा है। मोदी के मंत्री कुतर्क पेश कर रहे हैं कि दाम कम होने का असर कल्याणकारी नीतियों पर पड़ेगा।
कभी बीजेपी विदेशी पूंजी निवेश का घोर विरोधी थी। उमा भारती कहती थीं कि आगर भारत में वॉलमार्ट आया तो आत्महत्या कर लेंगी। लेकिन सच्चाई ये है कि एनडीए सरकार के दौरान सीधा विदेशी निवेश जमकर हुआ।. मोदी सरकार के पहले चार साल में देश में औसतन 52.2 अरब डॉलर सालाना का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। यूपीए-2 में सालाना औसतन 38.4 अरब डॉलर और यूपीए-1 के दौर में 18.1 अरब डॉलर सालाना का विदेशी निवेश आया था।
किसी भी सरकार के लिए टैक्स वसूली आमदनी का बहुत अहम जरिया है। अच्छी टैक्स वसूली होने पर कोई भी सरकार जनता की भलाई के कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट चला सकती है। एनडीए सरकार के पहले चार साल के कार्यकाल में सरकार ने औसतन हर साल 15.91 लाख करोड़ रुपए टैक्स वसूली की. यूपीए-2 की टैक्स से सालाना आमदनी 8.36 लाख करोड़ थी। अब सवाल ये है कि अपने कार्यकाल के आखिरी साल में प्रधानमंत्री मोदी क्या करेंगे? सवाल ये है भी कि क्या अगले साल मोदी मैजिक काम करेगा? क्या वो 2019 में सत्ता में लौटेंगे? आम भारतीयों से लेकर अंतरराष्ट्रीय निवेशकों तक के सामने ये सवाल मुंह बाए खड़े हैं।
देश आज भी 8 नवंबर 2016 को भूला नहीं है। नोटबंदी का काला अध्याय वाला दिन। 500 और 1000 के नोटों को अगले कुछ घंटों में गैरकानूनी ठहराने के ऐलान के साथ ही मोदी ने अर्थव्यवस्था की डूबती-उतराती नैया में छेद कर दिया था। इस तरह मोदी ने एक झटके में देश में चलने वाली 86 फीसद करेंसी को गैरकानूनी बना दिया। मोदी के विरोधी कहते हैं कि ये आधुनिक भारत के आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक तबाही थी। दस साल तक अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद एक तजुर्बेकार राजनेता मोदी ने 2014 की शुरुआत में भारतीयों से 'अच्छे दिन' और लाने और 'सबका साथ, सबका विकास' करने का वादा किया। तब से चार साल गुजर चुके हैं। क्या मोदी ने उन वादों को पूरा किया है?
कई बार आंकड़े आप को बरगला देते हैं। फिर भी हमें आंकड़ों को देखकर ये पता लगाना होगा कि आखिर वो क्या कहते हैं। ये 10 चार्ट बताते हैं कि एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने मोदी के राज में कैसा प्रदर्शन किया है। बात जीडीपी की। पिछले चार सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत जीडीपी 7.3 फीसद की दर से बढ़ी है। ये यूपीए-2 के पहले चार सालों की जीडीपी विकास दर 7.2 फीसद के मुकाबले में एकदम बराबर ही है। यानी इस मोड़ पर भी मोदी ने कोई कमाल नहीं किया। . मज़े की बात है कि आंकड़ों की बाज़ीगर मौजूदा सरकार ने जीडीपी का हिसाब लगाने का तरीका जनवरी 2015 से बदल ही दिया।
इसके अलावा अगर हम अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें, तो कृषि की विकास दर मोदी सरकार के दौर में घटकर 2.4 फीसद ही रह गई है। यूपीए-2 के पहले चार सालों में कृषि क्षेत्र की विकास दर औसतन 4 फीसद रही थी। मोदी सरकार के चार सालों में औद्योगिक विकास की दर 7.1 प्रतिशत रही. जो यूपीए-2 के 6.4 फीसद के मुकाबले मामूली रूप से ज्यादा है। मोदी सरकार के राज में सर्विस सेक्टर का विकास 8.8 फीसद की सालाना दर से हुआ। जबकि यूपीए-2 में ये दर 8.3 प्रतिशत और यूपीए-1 में ये 9.9 प्रतिशत रही थी।
मोदी सरकार के शुरुआती कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी कम थ।. इसकी वजह से थोक महंगाई दर का चार सालों का औसत 0.59 प्रतिशत बैठता है। वहीं यूपीए-2 के राज के पहले चार सालों में थोक महंगाई दर 7.4 प्रतिशत रही थी। यहां ये बात भी गौर करने लायक है कि थोक महंगाई दर तय करने का आधार मोदी सरकार ने 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था।
उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर में भी खेल हुआ। ये वो दर है जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करता है। मोदी सरकार ने इसके मापने की दर में भी थोक मूल्य सूचकांक की तरह ही बदलाव किया था। मोदी सरकार ने इसे मापने का आधार वर्ष 2010 से बदलकर 2012 कर दिया था. इस दौरान औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्त वर्ष 2014 में 9.49 प्रतिशत थी।
ये बात साफ है कि शेयर बाजार में निवेश करने वालों ने यूपीए सरकार के दौरान ज्यादा पैसा कमायाष सेंसेक्स ने मोदी सरकार के पहले चार सालों में औसतन 10.9 फीसद की दर से रिटर्न दिया। वहीं निफ्टी ने 11.6 प्रतिशत के औसत से निवेशकों को मुनाफा दिया है। जबकि यूपीए-2 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 22.3 और निफ्टी ने 20.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया था। मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2015 में सेंसेक्स ने 24.9 प्रतिशत और निफ्टी ने 26.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया। यहां भी मोदी सरकार फिसड्डी साबित हुई।
मोदी सरकार के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पेट्रोल-डीजल के दाम में लगी आग है। मनमोहन सरकार में जब तेल के भाव बढञते थे, तब यही मोदी कहते थे कि दिल्ली की सरकार निकम्मी है। उसकी नीतियां भ्रष्ट हैं। आज वही मोदी है। उनके राज में पेट्रोल और डीज़ल धधक रहा है। मोदी के मंत्री कुतर्क पेश कर रहे हैं कि दाम कम होने का असर कल्याणकारी नीतियों पर पड़ेगा।
कभी बीजेपी विदेशी पूंजी निवेश का घोर विरोधी थी। उमा भारती कहती थीं कि आगर भारत में वॉलमार्ट आया तो आत्महत्या कर लेंगी। लेकिन सच्चाई ये है कि एनडीए सरकार के दौरान सीधा विदेशी निवेश जमकर हुआ।. मोदी सरकार के पहले चार साल में देश में औसतन 52.2 अरब डॉलर सालाना का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। यूपीए-2 में सालाना औसतन 38.4 अरब डॉलर और यूपीए-1 के दौर में 18.1 अरब डॉलर सालाना का विदेशी निवेश आया था।
किसी भी सरकार के लिए टैक्स वसूली आमदनी का बहुत अहम जरिया है। अच्छी टैक्स वसूली होने पर कोई भी सरकार जनता की भलाई के कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट चला सकती है। एनडीए सरकार के पहले चार साल के कार्यकाल में सरकार ने औसतन हर साल 15.91 लाख करोड़ रुपए टैक्स वसूली की. यूपीए-2 की टैक्स से सालाना आमदनी 8.36 लाख करोड़ थी। अब सवाल ये है कि अपने कार्यकाल के आखिरी साल में प्रधानमंत्री मोदी क्या करेंगे? सवाल ये है भी कि क्या अगले साल मोदी मैजिक काम करेगा? क्या वो 2019 में सत्ता में लौटेंगे? आम भारतीयों से लेकर अंतरराष्ट्रीय निवेशकों तक के सामने ये सवाल मुंह बाए खड़े हैं।
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