Tuesday, May 4, 2010

कांग्रेस क्यों झेल रही है ममता बनर्जी को ?

ममता बनर्जी ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है। ममता ने बग़ैर लाग- लपेट के आरोप लगाया है कि कांग्रेस की नीयत ठीक नहीं है । वो सीपीएम को फायदा पहुंचा रही है। ये समझ में नहीं आता कि ममता बार –बार कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाती हैं। फिर भी कांग्रेस झेल रही है। जबकि कांग्रेस का दावा है कि मनमोहन सिंह की सरकार मजबूरी की नहीं मज़बूती की सरकार है। पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर आरोप लगाए हैं। लेकिन कांग्रेस की घिघ्घी बंधी हुई है। सोनिया गांधी के इशारे पर कभी अहमद पटेल मनाने जाते हैं तो कभी केशव राव चिरौरी करने जाते हैं। लेकिन ममता ने सबको एक ही लाठी से हांक कर भगा दिया।
कोलकाता और पश्चिम बंगाल के नगर निगमों के चुनाव को लेकर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में तलवारें खिंच गईं। बंगाल में ममता की पिछलग्गू बनी कांग्रेस ज़्यादा सीटों की मांग करने लगी। लेकिन ममता ज़्यादा दरियादिली दिखाने के मूड में नहीं थी। उन्होने कांग्रेस को झिड़क दिया। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी। इसके बाद ममता ने डंके की चोट पर एलान कर दिया कि राज्य में दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया है। साथ ही ममता ने कई चौंकानेवाली बातें भी कह दीं। इन बातों को सुनकर ऐसा लगता है कि केंद्र में ममता और सोनिया गांधी की निभ कैसे रही है।
ममता ने मीडिया के सामने आपना दिल खोल कर रख दिया। ममता ने दावा किया कि केंद्र में गठबंधन को बचाए रखने के लिए वो रोज़ ज़हर का घूंट पी रही हैं। ममता का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण को लेकर उनकी नीति साफ है। नंदीग्राम और सिंगूर के समय इसके लिए उन्होने हड़ताल भी की थी। लेकिन मनमोहन सरकार उनकी नीति के खिलाफ है। केंद्र की सरकार भी राज्य की वाम मोर्चे की सरकार की तरह काम कर रही है। अब ये समझ से परे हैं कि मनमोहन सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए वाम मोर्चा की नीति पर चल रही है। कांग्रेस गुप-चुप तरीक़े से सीपीएम की मदद भी कर रही है। तो फिर ममता क्यों नीलकंठ बन हुई हैं। क्यों नहीं वो केंद्र से अलग हो जा रही हैं। मंत्रिमंडल से बाहर हो कर भी तो सरकार चलाई जा सकती है। या फिर वो मंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पा रही हैं।
क्या वजह है कि ममता बनर्जी केंद्र में गठबंधन नहीं तोड़ पा रही हैं लेकिन राज्य में एक झटके से रिश्ते तोड़ने का एलान करती हैं। क्या राज्य की कांग्रेस और केंद्र की कांग्रेस अलग –अलग है । ममता बनर्जी ने जो अपनी भड़ास निकाली है, वो कांग्रेस के लिए ख़तरमाक संकेत है। ममता का आरोप है कि वो केंद्र में अपमानित हो रही हैं। मंत्रिमंडल में उनका कोटा पूरा नहीं किया गया। ममता की राजनीति करने की अपनी शैली है। ये शैली आक्रामक है। इसी शैली के तहत उन्होने कांग्रेस को याद दिलाना नहीं भूलीं कि केंद्र में कांग्रेस की अकेले की सरकार नहीं है। मनमोहन सिंह की इस सरकार को करूणानिधि और ममता बनर्जी ही आक्सिजन दे रहे हैं। वरना ये सरकार बेमौत मारी जाती। ममता का हुंकार ख़तरनाक संकेत देता है। ममता बेलौस होकर कहती हैं कि जब तक उनके आत्मस्मान पर चोट नहीं पहुंचती , तब तक मनमोहन सिंह की सरकार को कोई ख़तरा नहीं है।
हैरानी इस बात की है कि ममता खुद अलग अलग बयान दे रही हैं। एक तरफ आरोप लगा रही हैं कि भूमि अधिग्रहण को लेकर केंद्र और वाम मोर्चा की सरकार में कोई अंतर नहीं है। दूसरा आरोप लगा रही हैं कि कांग्रेस सीपीएम का साथ दे रही है। तीसरा आरोप लगा रही हैं कि केंद्र में मंत्रियों का उनका कोटा पूरा नहीं हुआ। चौथा आरोप लगा रही हैं कि वो केंद्र की गठबंधन को बचाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही हैं। इसलिए सब कुछ सह रही हैं। फिर कहती हैं कि जब तक आत्मसम्मान पर चोट नहीं हुआ तब तक सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। सवाल ये है कि पहले की सभी आरोपों को पलभर के लिए सच मान लिया जाए तो फिर आत्मसम्मान पर चोट पहुंचाने के और कौन से तरीक़े बचे हैं। क्या ममता इतनी नादान हैं कि उन्हे कुछ समझ में नहीं आ रहा। या उन्हे अच्छी तरह से मालूम है कि उनके समर्थन वापिसी से सरकार का बाल भी बांका नहीं होने वाला। समर्थन देने के लिए बहुतेरी पार्टियां बैठी हुई हैं। अगर वो सरकार से बाहर हो गई तो राज्य में उनका खेल ख़त्म हो जाएगा। जनता में जो भरोसा बना है कि राज्य सरकार की कान उमठेने के लिए ममता केंद्र पर जब तब दबाव डलवा सकती हैं। अगर वो गठबंधन और मंत्रिमंडल से बाहर हो गईं तो किस दम पर वो सीपीएम नेताओं को हूल देंगी।
दरअसल नगम निगम चुनाव में ममता बनर्जी ने सीट बंटवारों को जानबूझ कर मुद्दा बनाया। ये ममता बनर्जी की राजनीति का हिस्सा है। ममता बनर्जी नहीं चाहतीं कि राज्य में उनकी पिछलग्गू बनी कांग्रेस की ताक़त और हैसियत न बढ़े। ममता बनर्जी का इरादा आनेवाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कम से कम सीटें देने का है। ममता को मालूम है कि अगर नगर निगम चुनाव में उन्होने कांग्रेस को मनमर्ज़ी की सीटें दे दीं। तो फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हक़ से भी ज़्यादा सीटें मांगेंगी। इसके अलावा मनमर्ज़ी की सीटों के लिए सुब्रतो मुखर्जी से लेकर प्रणब मुखर्जी तक दबाव बनाएंगे। इसलिए ममता ने कांग्रेस को ज़ोर का झटका धीरे से दिया है। ममता को मालूम है कि कांग्रेस के बग़ैर वो अधूरी हैं। कांग्रेस को भी मालूम है कि ममता के बिना उसकी राजनीतिक हैसियत न के बराबर है। क़यास से ये लगाया जा सकता है कि नगर निगम चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच फिर से गोटी सेट हो जाएगी। क्योंकि विधानसभा चुनाव में दोनों को वोट प्रतिशत का खेल मालूम है। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस से फिर हाथ मिलाएंगे। उन्हे तब आत्मसम्मान की चिंता नहीं होगी।

2 comments:

honesty project democracy said...

जब स्वार्थ और भ्रष्टाचार का खेल खेलना है तो झेलना ही पड़ेगा / अच्छी विचारणीय प्रस्तुती /

sheetal said...

mamta ki manmarzi aaj ki nayi nahi hai. yeh to kab se hi chali aa rahi hai.