Saturday, April 10, 2010

आक्रामक ममता बनर्जी को भी कोई नाथ सकता है


दूसरों के नाम में दम भरनेवाली तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के भी नाक में कोई दम भर सकता है। ये बात अब साबित हो गई है। जादवपुर से तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन ने ममता का जीना मुहाल कर दिया है। पहली बार नहीं है जब कबीर सुमन ने बीच बाज़ार में ममता की पगड़ी उछाली हो। हर बार ममता शर्मसार हुई हैं। लेकिन ममता इतनी लाचार हैं कि वो कबीर सुमन के ख़िलाफ कोई कड़ा फ़ैसला नहीं कर सकतीं। यहां तक कि न डांट सकती हैं और झिड़क सकती हैं। ममता बनर्जी अपने सांसद कबीर सुमन को लेकर केवल सुबक सकती हैं। वो अभी सबके सामने नहीं। अकेले में। हैरानी की बात है कि दूसरों को रूलाने का माद्दा रखनेवाली ममता बनर्जी इतनी लाचार क्यों हैं? आख़िर ये कबीर सुमन कौन सी बला है?

जावपुर संसदीय क्षेत्र से इस बार के लोकसभा चुनाव में कबीर सुमन जीत कर आए हैं। उन्होने सीपीएम के दिग्गज सुजन चक्रवर्ती को लगभग 56 हज़ार वोटों से हराया है। जीत के अंतर को देखकर लग सकता है कि कबीर सुमन खेले खाए राजनेता हैं, जिन्होने सीपीएम को दिग्गज को हराया। इस दिग्गज की पश्चिम बंगाल में वैसी ही छवि है, जैसे की बिहार में शहाबुद्दीन या उत्तर प्रदेश में अतीक़ अहमद की है। लेकिन असलियत तो ये है कि कबीर सुमन कोई राजनेता नहीं हैं। पहली बार उन्होने चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से चुनाव जीत गए। दरअसल कबीर सुमन एक पत्रकार थे, एक रंगकर्मी हैं और एक गायक हैं। गायक के तौर पर पूरे पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय हैं। जब वो गाते हैं, तब ज़माना उन्हे ग़ौर से सुनता है। जब बांग्ला अख़बार के लिए पत्रकारिता करते थे, तब से उनकी ममता बनर्जी से जान-पहचान हुई। लेकिन सिंगूर- नंदीग्राम आंदोलन के समय कबीर सुमन और लोकप्रिय हुए। अपने गानों से उन्होने राज्य की वाम मोर्चा सरकार की बखिया उधेड़ दी। इस आंदोलन की अगुवाई ममता बनर्जी कर रही थीं। आंदोलन में कई पत्रकार, साहित्यकार, रंगकर्मी , नाट्यकर्मी भी शामिल थे। ममता ने लोकसभा का टिकट पकड़ाया और वो लोकप्रियता की ट्रेन पकड़कर दिल्ली पहुंच गए।

कबीर ने फिर इस्तीफा दिया है। इससे पहले भी इस्तीफा दिया था। लेकिन इस बार माज़रा कुछ और है। जावपुर विश्वविद्यालय के छात्र नक्सलियों के ख़िलाफ़ चल रहे आपरेशन ग्रीन हंट का विरोध कर रहे थे। इसके लिए वो जगह- जगह पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इन छात्रों ने आपरेशन ग्रीन हंट का इसलिए भी विरोध किया क्योंकि पुलिस की गोलियों से विश्वविद्यालय के मेघावी छात्र अभिषेक की मौत हो गई। अभिषेक नक्सली हो गया था। नंदीग्राम-सिंगूर आंदोलन के समय वो सक्रिय रूप से भाग लिया। इसी दौरान वो नक्सिलयों के क़रीब आया। अपने प्रताप और ज्ञान से कुछ ही दिनों में किशनजी का ख़ास बन गया। अभी हाल ही में जब मिदनापुर में आपरेशन ग्रीन हंट के दौरान कोबरा की टीम और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। उसमें विक्रम नाम के नक्सली के मारे जाने की ख़बर आई। ये विक्रम कोई और नहीं बल्कि अभिषेक ही था। नक्सलियों ने उसे विक्रम नाम दिया था।

छात्रों के इस आंदोलन में कबीर सुमन भी कूद पड़े। उन्होने भी छात्रों के साथ सुर में सुर मिलाकर आपरेशन ग्रीन हंट बंद करने की मांग कर दी। ये ज़िद उन्होने अपनी पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी से भी कर दी। लेकिन ममता की मुश्किल ये कि सीपीएम और लेफ्ट ने पहले ही उन पर नक्सली समर्थक होने का आरोप लगाया है। अगर वो अपने सांसद की बात मानकर केंद्र से ऐसी कोई बात करती हैं तो साफ-साफ तौर पर साबित हो जाएगा कि वो नक्सिलयों से हमदर्दी रखती हैं। ऐसे में सीपीएम और लेफ्ट पार्टियां माइलेज लेने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ेंगी। दूसरी परेशानी ये कि केंद्रीय गृह मंत्री बेहद ईमानदारी से नक्सलियों के ख़िलाफ़ आपरेशन ग्रीन हंट चलाए हुए हैं। उन्होने साफ तौर पर कहा है कि जह तक नक्सली हिंसा और हथियार छोड़ कर नहीं आते, तब तक उनसे कोई बातचीत नहीं होगी।

ज़ाहिर है कि ममता बनर्जी अपने सांसद की बात नहीं मान सकती। सांसद भी अपनी बात से टस से मस होने को तायार नहीं। उन्होने एसएमएस से इस्तीफा भेज दिया। शायद लोकतंत्र में पहली बार किसी सांसद ने एसएमएस से इस्तीफा भेजा होगा। छात्रों की मीटिंग में उन्होने एलान कर दिया कि उन्होने तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी। क्योंकि पार्टी नक्सिलयों के खिलाफ हो रही हिंसा को नहीं रूकवाना चाहती। शायद पहली बार ममता ने सार्वजनिक तौर पर अपनी झल्लाहट दिखाई। ममता ने अपने सांसद को सेंसलेस करार दिया। ममता ने अपनी मजबूरी को रोना रोया। ममता दुहाई दे रही हैं कि कबीर के भेजे में बुद्धि डालने के लिए वो दादा प्रणब मुखर्जी के दर पर भी गईं। लेकिन कबीर के भेजे में कुछ नहीं आया।

हैरानी इस बात की है कि जिस दादा से दीदी की नहीं बनती। वो उस दादा के पास क्या सोच कर गई ? पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे में भी दादा-दीदी ख़ूब झगड़े थे। दीदी का आरोप था कि सीपीएम को फायदा पहुंचाने के लिए दादा टिकट बंटवारे में खेल कर रहे हैं। चुनाव के बाद ऐसा क्या हो गया कि दादा सीपीएम को नुक़सान पहुंचाने वाले प्राणी बन गए ? दूसरी बात ये कि कबीर सुमन अगर बिफरते हैं तो क्या वो सरकार के ख़िलाफ बिफरते हैं? जवाब है नहीं। वो अपनी पार्टी में बग़ावत कर रहे हैं। अपनी पार्टी के मुखिया के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। फिर किस हैसियत से दीदी कबीर को लेकर दादा के पास गईं ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब फिलहाल दीदी के पास नहीं है।

कबीर सुमन शांत प्रजाति के प्राणी नहीं हैं। इससे पहले भी उन्होने एक बार इस्तीफा दिया था। इस्तीफे से दीदी के पसीने छूट गए थे। कबीर सुमन ने आरोप लगाया था कि तृणमूल कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता घूसखोर हो गया है। अदना से अदना कार्यकर्ता भी काम के बदले में घूस खा रहा है। ममता ईमानदारी का ढोल बंला में पीट रही हैं। सभाओं और जलसों से ये साबित करने पर तुली हैं कि लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने पिछले तीस सालों में पश्चिम बंगाल को बेच खाया है। ममता के इस मुहिम को उनके ही सांसद पलीता लगा रहे हैं। कबीर सुमन के बयान से ऐसा लगता है कि सरकार में शामिल हुए अभी तृणमूल कांग्रेस के जुमा-जुमा चार ही दिन हुए हैं और ये लोग अभी से ही देश को लूट रहे हैं।

विधानसभा चुनाव सिर पर है। आज कबीर सुमन चीख रहे हैं। साबित करने में लगे हैं कि जिस नक्सिलयों की मदद से दिल्ली में दीदी की पार्टी राज पाट कर रही है। आज उसी नक्सलियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। इस प्रताड़ना में ममता बनर्जी भी शरीक हैं। वो चाहें तो मनमोहन सरकार को रोक सकती हैं। लेकिन सत्ता की मलाई खाने में लगी ममता को अब नक्सिलयों की फिक्र कहां। दूसरी तरफ , सुमन ये भी साबित करने में लगे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के नेता भ्रष्ट हो गए हैं। मंत्री से लेकर संतरी तक रिश्वत खा रहा है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में ममता को अपनी साख बचाए रखना बेहद मुश्किल लग रहा है। क्योंकि सीपीएम उनके ही सांसद के बयान को लेकर जनता के बीच जाएगी। हंसते हुए कहेगी कि ये आरोप सीपीएम का नहीं है। ये आरोप उस आदमी का है, जो वर्षों तक ममता के साथ रहा है। ममता की पार्टी का सांसद रहा है। ऐसे मं ज़रूरी है कि बंगाल जीतने का सपना पालनेवाली ममता समय रहते कबीर को क़ाबू कर लें।

2 comments:

陳哲毓只當臺灣人 said...

阿彌陀佛 無相佈施


不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植
物,主要有五種葷菜,合稱五葷,佛家與道家所指有異。

近代則訛稱含有動物性成分的餐飲食物為「葷菜」,事實上這在古代是稱
之為腥。所謂「葷腥」即這兩類的合稱。 葷菜
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(重定向自五辛) 佛家五葷

在佛家另稱為五辛,五種辛味之菜。根據《楞嚴經》記載,佛家五葷為大
蒜、小蒜、興渠、慈蔥、茖蔥;五葷生啖增恚,使人易怒;熟食發淫,令
人多慾。[1]

《本草備要》註解云:「慈蔥,冬蔥也;茖蔥,山蔥也;興渠,西域菜,云
即中國之荽。」

興渠另說為洋蔥。) 肉 蛋 奶?!











念楞嚴經 *∞窮盡相關 消去無關 證據 時效 念阿彌陀佛往生西方極樂世界











我想製造自己的行為反作用力
不婚 不生子女 生生世世不當老師








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=>十3.16 π∈Q' 一點八1.34

सत्यप्रकाश आज़ाद said...

sab maya hai.........