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कांग्रेस के नेता वीरप्पा मोइली बहुत दूर की कौड़ी खोज कर लाएं हैं। लेकिन उनकी कौड़ी को देखकर ऐसा लगता है कि वो कांग्रेस की ही वोट बैंक की मटकी फोड़ने के लिए है। विधानसभा चुनावों से पहले यूपीए सरकार ने वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया था। इन सिफारिशों को लारने के पीछे सरकार की क्या सोच होगी। सीधे-सीधे इसका मतलब वोट बैंक की राजनीति से था। सरकार कर्मचारियों की तनख़्वाह बढ़ाकर अपना वोट बैंक बढ़ाने का इरादा रखती थी। लेकिन लगता है कि कांग्रेस के पुराने दिग्गज वीरप्पा मोइली कांग्रेस की ही लुटिया डूबो देंगे। वो जिस तरह की सिफारिश लेकर हाज़िर हुए हैं, वो सरकारी कर्मचारियों को ख़ून ख़ौलाने के लिए काफी है।
सरकारी कर्माचारी अपनो काम काज के तौर तरीक़ों , बर्ताव, आचरण और दफ्तर को कितना समय देते हैं- ये सब जानते हैं। ये आज से नहीं, आदि -अनादि काल से चला आ रहा है। सरकारी कर्मचारियों की इमेज रही है कि वो न तो समय पर आफिस जाते हैं और न ही समय से आफिस से निकलते हैं। रेल मंत्री लालू प्रसाद ख़ुद इसके गवाह हैं। वो आफिस टाइम पर रेल भवन के गेट पर खड़े हो गए थे। मीडियावाले भी थे। देर से आनेवालों को ख़ूब फटकार लगाई। कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी। फिर हुआ क्या। कितनी बार रेल मंत्री फिर से रेल भवन के गेट पर खड़े मिले। सच उन्हे भी मालूम है। वो भी बेहतर नतीजे चाहते हैं। लेकिन कोई न कोई ऐसी मजबूरी है कि उनके हाथ पांव बंध गए हैं। मोइली साहेब चाहते हैं कि हर कर्मचारी का चौदह साल पर काम काज की समीक्षा हो। अगर उसका काम काज और बर्ताव संतोषजनक नही है तो इस बारे में उस कर्माचारी को बताया जाए। फिर 20 साल बाद उसकी काम काज की समीक्षा हो। अगर वो पैमाने की कसौटी पर ख़रा नहीं उतरता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाए। मोइली चाहते हैं कि जिस तरह से प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी काम करते हैं, उसी अंदाज़ में सरकारी कर्मचारी काम करें।
लेकिन क्या संभव है। आप वाकई प्राइवेट कंपनियों की तरह रिज़ल्ट चाहते हैं तो प्राइवेट कंपनियों की पॉलिसी को अपनाएं। सालाना इंक्रेमेंट का इंतज़ाम करें , जो कर्मचारी के काम काज और व्यवहार के आधार पर हो। क्या सरकार ऐसा कर पाएगी। पहला रिव्यू चौदह साल पर ही क्यों। हर छह महीने या साल भर पर क्यों नहीं। मोइली राम के वनवास की तरह चौदह साल की सूई पर क्य़ों अटके हैं। मोइली की चले तो वो आईएएस, आईपीएस और आईआरएस में भी व्यवस्था ठीक कर दें। वो नहीं नहीं चाहते कि सिविल सर्विस की परीक्षा देनेवाला तीस साल के ऊपर का हो। वो नहीं चाहते कि जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार 25 साल की उम्र के बाद सिविल सर्विस की तैयारी में दिखे। उनकी नज़र एससी, एसटी और ओबीसी के भी उम्मीदवारों पर है। उनकी चलें तो वो उन बालिकाओं के सपनों की हत्या कर दें जो पहली बार या दूसरी बार या तीसरी बार मंज़िल नहीं पा लेते तो भी हौसला नहीं खोते । वो कोशिश करते रहते हैं। मोइली जी इन कोशिशों पर विराम लगाने के पक्षधर हैं। मोइली से पहले मोरारजी देसाई ने भी कई सिफारिशें की थीं। उनका क्या हश्र हुआ। एससी, एसटी और ओबीसी की आरक्षण को लेकर बी पी मंडल ने भी सिफारिशें तैयार की थी। लंबे समय तक वो सरकारी दफ्तरों में धूल फांकती रही। अगर राजनीतिक मजबूरी नहीं होती तो वो सिफारिशें भी लागू नहीं होतीं, जिसे लोग मंडल कमीशन के तौर पर याद करते हैं।
मोइली साहेब ऐसे समय सिफारिशों का पिटारा लेकर आए हैं, जब कांग्रेस तीन राज्यों विधानसभा चुनाव जीती है। इस जीत से पहले सरकार को वेतन आयोग की सिफारिशों को कर सरकारी कर्मचारियों को ख़ुश करना पड़ा था। अब लोकसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे में क्या आपको लगता है कि सरकार खेले खाए नेता वीरप्पा मोइली की सिफारिशों को माल लेगी और अपनी सरकार की क़ुर्बानी दे देगी ?