Tuesday, December 9, 2008

जो कहा था, वहीं हुआ दिल्ली में

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मित्रों, एक बार फिर हाज़िर हूं एक नए लेख के साथ। नया कहना तो ग़लत होगा। लेकिन उसी बात को मैं फिर से कहने जा रहा हूं लेकिन अपने कुछ मित्रों की प्रत्रिक्रियाओं के साथ , जिन्होने मेरा लेख पढ़कर ईमानदारी से अपनी बात कही थी।
मैने जो लेख लगभग सवा दो महीने पहले लिखा था, उसके पीछे चिंतन था, विश्लेषण था, भूत , वर्तमान और भविष्य का समिश्रण से निकला परिणाम था। मेरा ये शुरू से मानना रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली में बीजेपी का समर्थन करनेवाले ऐसे कई सारे कट्टर मतदाता हैं, जो भीड़ में ख़ूब बीजेपी के लिए तर्क करते हैं। कैमरे और गनमाइक के सामने ख़ूब भाषण देते हैं। अपने बुज़ुर्ग पिता को संघ के शाखा में जाने के लिए ख़ूब प्रेरित करते हैं। लेकिन मतदान के दिन ऐसे कट्टर समर्थक पप्पू बन जाते हैं। रज़ाई ओढ़कर ख़ूब सोते हैं। उन्हे लगता है कि लोकतंत्र के महापर्व को सफल बनाने के लिए उन्होने अपने भाषणों से अपना काम कर लिया है। इनमें ज़्यादातर ऐसे लोग हैं, जिन्हे काम से बहुत कम फुर्सत मिलती है। मतदान का दिन अगर शुक्रवार या शनिवार पड़ गया तो भाग्य खुल गए। पैसा तो ख़ूब कमाया लेकिन परिवार के साथ समय बांटने का समय नहीं मिला। ऐसे समय को अपने परिवार के लिए देते हैं और आस पास के ख़ूबसूरत शहरों में छुट्टियां मनाने चले जाते हैं। यही रह जाती है बीजेपी की कोशिशें धरी की धरी। इस बार के चुनाव में हर जगह लड़ाई विकास बनाम नकारात्मक प्रचार के बीच था। बीजेपी कहती थी कि कांग्रेस शासन में आतंकवाद फल फूल रहा है। लचर क़ानून है। फिर सवाल ये कि बीजेपी के शासन काल में राजस्थान, गुजरात , लोकतंत्र के स्तंभ संसद , लालक़िला, - कहां कहां नहीं आतंकवादी हमले हुए। पोटा का सोटा भी था। फिर बीजेपी ने क्या कर लिया। क्यों बीजेपी के दिग्गज लौह पुरूष की अगुवाई में ख़तकनाक आंतकवादियों को छोड़े। सवाल ये कि बीजेपी कैसे आतंकवाद को क़ाबू करेगी। बीजेपी के तमाम तर्क पढ़े लिखे लोगों को नहीं हज़म हुए। मंहगाई रोकने के लिए उनके पास कौन सा जादू का डंडा चलाएगी। बीजेपी के पास जवाब नहीं था। हर रोज़ इतवार नहीं होता। हर चुनाव में धार्मिक भावनाएं भड़काकर और उन्माद पैदा कर वैतरणी पार नहीं होती। दूसरी सोच ये थी कि पूरी दिल्ली में लोग बीजेपी -बीजेपी कर रहे थे। लेकिन पश्चिम दिल्ली के अलावा उनकी कहीं हवा नहीं लग रही थी। बाहरी दिल्ली में जो भी वोट बीजेपी को मिले, वो नाराज़ किसानों के ते। कंझावला के मुआवज़े को लेकर वो शीला सरकार से खुश नहीं थे। इसलिए बीजेपी को वोट दिया। मैंने अपने पहले के लेख में जो आंकड़ा दिया था, नतीजा भी लगभग वहीं है। मैंने कम से 42 और और ज़्यादा से ज़्यादा 45 सीटों का अनुमान लगाया था। नतीजा बी 42 सीटों का है। नीचे आप उस समय का लेख पढ़ सकते हैं, जिसमें मैने बीजेपी के नए महाजन अरूण जेटली का भी ज़िक्र किया था और विजय कुमार मल्होत्रा के नेतृत्व का भी।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

शायद यही बात है कि बी जे पी हारी।धन्यवाद।

नोट:___कृपया टिप्पणी Post a Comment लिखा है उस का रंग लाल या काला करें ।