Friday, July 13, 2007
एक था अंगद
ये कहानी मेरे एक दोस्त की है, जो मैंने किसी और दोस्त की ज़ुबान से सुनी है। कोलकाता में मेरे एक मित्र है गुड्डू उपाध्याय। वैसे मां बाप ने बचपन में उनका नाम उनका स्वभाव देखकर कर रखा था- सिद्धार्थ। लेकिन ज्यों ज्यों वो बड़े होते गए वो अपने नाम की सार्थकता को भूलते गए। उनकी पढ़ाई लिखाई कोलकाता के मशहूर स्कूल कॉलेजों से हुई है। बात उन दिनों की है जब वो क्लास आठ या नौ में पढ़ते रहे होंगे। उस दौरान उनके मित्र मंडली को जॉगिंग का शौक़ चर्राया। दोस्तों ने तय कर लिया कि कल सुबह से जॉगिंग पर निकलना है। मित्र मंडली में अंगद पांडे भी थे। उनके पिता कोलकाता पुलिस में हवलदार थे। तनख़्वाह की बात करें तो उनके बेटे को उस स्कूल में पढ़ने की हैसियत नहीं थी। लेकिन भला हो कोलकाता में फल फल रहे मार्क्सवाद की कि उनके पिता ने अपने बेटे को पालने पोसने के लिए कभी तनख़्वाह की परवाह नहीं की। नेताओं और मंत्रियों के साथ घूमने फिरनेवालों के कर्मकांडों के भरोसे उनके घर में राम राज था। रहनेवाले बिहार के छपरा थे। पत्नी गांव में ही रहती थीं। ख़ैर में भटक गया था। बात अंगद की हो रही थी। दोस्तों ने तय किया कि जब जॉगिंग ही करनी है तो क्यों न ट्रैक सूट ख़रीद ली जाए। लिहाज़ा अगले दिन से सभी दोस्तों ने न जॉगिंग की शुरूआत कर दी। कई दिनों तक एक ही रास्ते पर कसरत करने के बाद सब का जी भर गया। अंगद पाड़े ने सलाह दी कि कल से उनके इलाक़े में जॉगिंग हो। सैर के साथ साथ आंखों को सुकून मिलेगा। अगल दिन सभी मित्र सुबह सुबह अंगद पांड़े के घर धमक गए। एक साथ इतने सारे लड़कों को देखकर अंगद पांड़े के पिता घबरा गए। उन्होने पूछा- का जी, एतना बिहाने केन्ने निकल रहे हो। मंडली में सबसे समझदार गुड्डू ने मोर्चा संभाला। अंकल , आजकल हम लोग सेहत बना रहे हैं। वो घर के बरामदे में कंधे पर लाल गमछा रखकर हिंदी अख़बार पढ़ रहे थे। अचानक उठकर खड़े हो गए। तोंद पर हाथ फेरते हुए आवाज़ लगाई- ए अंगद, तुम्हरा दोस्त लोग आया है जी। आके मिल लो। जॉगिंग सूट में अंगद को बाहर निकलते देख उसके पापा की आंखें हैरत से फैल गई। पूछा- का जी, कहवां जा रहे हो। पाप, जॉगिंग करने जा रहा हूं। पापा- जागिंग करके का होता है। अंगद- पापा, सेहत बनती है। पापा- ...... सेहत बना के ...... करोगे। अचानक अंगद के पिता के तेवर बदल गए। बस कमी थी उनके बदन पर कोलकाता पुलिस की वर्दी की। शेर की तरह झपट्टा मार कर अंगद को बरामदे में गिरा दिया। लात घूंसों से अंगद की पिटाई करने लगे। सभी दोस्त सकते में थे। अचानक ये क्या हो गया। तभी अंगद के पिता पिटाई के साथ साथ रामलीला शैली में संवाद भी करने लगे। गुड्डू से पूछा- सिगरेट, बीड़ी पीते हो। गुड्डू- नहीं अंकल। इ साला पीता है। दारू , बीयर पीते हो। गुड्डू- नहीं , अंकल। इ साला पीता है। गांजा , भांग खाते हो। गुड्डू- नहीं , अंकल। इ साला सब करता है। जॉगिंग का भूत सबके सिर से उतर चुका था। दोस्तों के सामने पिता से लात जूता खाकर अंगद सिर झुकाए खड़ा था। समय के साथ सभी दोस्त इस हादसे को भूल चुके थे। अब सभी दोस्त कॉलेज पहुंच चुके थे। लेकिन उसी समय गुड्डू के अंदर खोजी पत्रकारिता का कीड़ा कुलबुलाया। उसे अंगद की घटना याद आई। खोजी पत्रकार गुड्डू ने सनसनीख़ेज़ ख़बर दोस्तो को दी। दरअसल,बहुत दिनों से पत्नी सुख से वंचित अंगद के पिता की दोस्ती कोलकाता की एक भद्र महिला से हो गई थी। दोनों बेहद क़रीब हो गए थे। जब इस बात की भनक अंगद को लगी तो उसने अपने अंदाज़ में अपने पिता को रास्ते पर लाने का फ़ैसला किया। उसने भी उसी महिला से दोस्ती कर ली। वो दोनों बेहद क़रीब हो चुके थे। जब इस बात की भनक उसके पिता को लगी तो वो भड़क गए। अपने बेटे को सबक सीखाने के लिए बहाना खोजने लगे। उन्हे ये मौक़ा बैठे बिठाए जॉगिंग के भूत से मिल गया। उस दिन उन्होने अपनी भड़ास निकाल ली। सुना है कि अंगद के पिता रिटायर होने के बाद छपरा में अपनी पत्नी के पास हैं। और अंगद.... वो अब दो बच्चों का बाप है। जब भी पुराने दोस्तों से मिलता है तो बस इतना ही कहता है... यार , उस दिन की मत करो यार....अब मैं बाल बच्चेदार आदमी हूं। बीवी को ख़बर लग गई तो घर में कोहराम हो जाएगा। प्लीज़ यार......
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