Thursday, July 12, 2007
टीवी का पहला पाठ
न्यूज़ रूम मेरी मुलाक़ात रिद्धि शतपथी से हुई। सुंदर थी। हिंदी चैनल के दफ़्तर में उसे हिंदी बोलने में कठिनाई होती थी। बहुत बाद में पता चला कि उसे हिंदी से तकलीफ़ क्यों होती है। समय के साथ हमारे बीच संवाद क़ायम हुआ। तब जाकर पता चला कि देवनागरी में वो अपने नाम की वर्तनी नहीं लिख पाती है। इस दौरान ख़बरों को लेकर मालिकानों के साथ मेरे संबंध बिगड़े। उन्हे पार्टी विशेष से लगाव था। मेरे लिए सब धान बाइस पसेरी। वो मालिकानों की प्रिय थी। मुझे कहा गया कि अब से उसे रिपोर्ट करो। मैंने उसे साथ काम करना शुरू कर दिया। लेकिन वो मेरे साथ सहज नहीं थी। बात बात पर झिड़कना, कई लोगों के बीच मुझे ज़लील करना- अब ये उसकी आदत थी। एक दिन सब्र का प्याला छलक गया। मैंने तुनक कर कहा- जिस दिन सूरत ढल जाएगी, उस दिन से सीरत की क़द्र होने लगेगी। ज़ाहिर ये बात उसे नागवर ग़ुज़री। मेरी शिकायत हुई। डांट पड़ी सो अलग। समय बीतता गया। मालिकानों से मेरे रिश्ते सुधरने लगे। उसे अहसास हो चुका था कि ये दूरी किसने औऱ क्यों बढ़ाई हैं। मेरा तबादाला फिर से न्यूज़ में कर दिया गया। एक दिन मैंने उस संस्थान की नौकरी छोड़ दी। वो तब भी वहां बनी रही। मालिकों को उस पर बहुत नाज़ था। वो खुलकर कहते थे- इस चेहरे की वजह से उनका बुलेटिन हर घर में देखा जाता है। एक दिन मालिक का नाज़ टूट गया। उसने मालिकों का साथ छोड़ दिया। उसे दूसरे सेठ ने ज़्यादा पैसे दिए। तब से वो अब उस चैनल की शान है। एक दिन उसे उसी चैनल पर हिंदी में कविताएं पढ़ते देखा। कविता में दर्द था। उसे स्कूली बच्चों के मारे जाने की ख़बर रूला रही थी। आंखों में आंसू थे। चेहरा ग़मगीन था। उसे अब ख़बरें विचलित करने लगी हैं। मुझे याद आता है उसका ये कहना- आई एम नॉट ए जर्नलिस्ट।एंड आई डोंट वांट टू बी जर्नलिस्ट। अब मैं उसके इस नए चेहरे के पीछे चेहरे को तलाशता हूं। क्या अब उसने मुखौटा पहन लिया है या जो मैंने बरसों पहले चेहरा देखा था- वो मुखौटा था। ये बदलाव की पहली कड़ी है।
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1 comment:
आज 10/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
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