न्यूज़ डेस्क- आज पूरा देश दशहरा और विजयादशमी के जश्न में डूबा है। उत्तर पूर्वी भारत के लोग महिषामर्दिनी करनेवाली देवी दुर्गा की जीत का जश्न विजयादशमी के तौर पर शुभो बिजॉया कहकर मना रहे है तो उत्तर भारत और हिंदी पट्टी के लोग महापंडित, महाज्ञानी, महाबलशाली, महाप्रतापी और शिव के सबसे परम भक्त रावण पर अयोध्या के मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम की जीत की खुशी में दशहरा मनाएंगे। राव ण का पूतला फूंककर अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश देंगे। आज तुलसीदास के रामायण के पात्र श्रीराम के राम के कुछ अनजाने पहलुओं को समझना है तो अलग अलग भाषाओं में लिखे रामायण के पात्र राम के चरित्र को समझना होगा।
बाल्मिकी से लेकर तुलसीदास के रामायण में बाली वध, दलित की सबसे पहली हत्या यानी शंबुक वध और सीता के साथ हुए बर्ताव को जिक्र है। बाल्मिकी रामायण में जिक्र है कि राम ने बाली का धोखे से क़त्ल किया। राम से बाली कहता है- “आप हतबुद्धि है। आप धर्म-ध्वजी है। दिखाने के लिए धर्म का चोला पहने हुए है। आप वास्तव में अधर्मी है। आपका आचार-व्यवहार पाप-पूर्ण है। आप घास-फूंस से ढके हुए कूप के सामान धोखा देने वाले हैआप कामेच्छा के गुलाम है। क्रोधी है,मर्यादा में न रहने वाले है। चंचल है। राजाओं की मर्यादा का बिना विचार किए किसी को भी अपने तीर का निशाना बना सकते है।”
बाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड और उत्तर रामचरित में शुद्र तपस्वी शम्बूक की ह्त्या से साफ़ जाहिर है कि श्री राम अत्यंत निर्दयी और अत्याचारी राजा थे। शम्बूक की हत्या को रामायण में बाल्मीकि ने श्रीराम के ही मुख से इस तरह वर्णन किया है। राम ने घोर तपस्या करते शम्बूक से पूछा-“तुम्हे किस वस्तु के पाने की इच्छा है? तपस्या से संतुष्ट हुए इष्ट-देवता से वर के रूप में तुम क्या पाना चाहते हो-स्वर्ग अथवा दूसरी कोई वस्तु? कौन-सा ऐसा पदार्थ है, जिसके लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या करते हो, जो दूसरों के लिए दुष्कर है? तापस ! जिस वस्तु की इच्छा के लिए तुम इस घोर तपस्या में लगे हुए हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ. इसके सिवा यह भी सही-सही बताना की तुम ब्राह्मण हो या दुर्जय क्षत्रिय? तीसरे वर्ग के वैश्य हो अथवा शुद्र? तुम्हारा भला हो। मेरे इस प्रश्न का यथार्थ उत्तर देना।
शम्बूक ने उत्तर दिया-“हे महायशस्वी राम! मैं शूद्र हूं। मैं निसंदेह स्वर्ग लोक जाकर देवत्व प्राप्त करना चाहता हूं। मैं इसलिए यह उग्र तपस्या कर रहा हूं। काकुत्स्थाकुल भूषण राम मैं झूठ नहीं बोलता।. देव लोक पर विजय पाने की इच्छा से तपस्या में लगा हूं। आप मुझे शुद्र जानिए। मेरा नाम शुद्र है। राम के ही शब्दों में-“उस शुद्र के मुंह से ये बात निकली ही थी, मैंने आव देखा ना ताव। म्यान से तलवार खीच ली और उससे शम्बूक का सिर धड़ से अलग कर दिया।”
अपनी पत्नी सीता पर तो राम ने मुसीबतों के पर्वत ही तोड़ डाले। 14 सालों के बनवास के बाद उनके चरित्र पर संदेह किया गया यानी चरित्र की शुद्धता का सबूत देने के लिए उन्हें अग्नि में कूदना पड़ा। सीता कहती है-“मेरा चरित्र शुद्ध है तो भी मुझे दूषित समझ रहे है। मैं सर्वथा निष्कलंक हूं। सम्पूर्ण जगत की साक्षी अग्नि देव ! मेरी रक्षा करें। सुमित्रानंदन ! मेरे लिए चिता तैयार कर दो। मेरे इस दुख की एक ही दवा है। मिथ्या कलंक से कलंकित होकर मैं जीवित नहीं रह सकती।”
अग्नि परीक्षा के बाद भी राम की तसल्ली नहीं हुई। तंग आकर सीता को कहना पड़ा- “मैं मन, वाणी और क्रिया के द्वारा केवल श्रीराम की ही आराधना करती हूं। अगर यह कथन सत्य है तो भगवती पृथ्वी मुझे अपनी गोद में स्थान दे। सभी लोगों के देखते-देखते जानकी रसाताल को प्रयाण कर गई। सीता की आत्महत्या से राम के निर्दयी और अत्याचारी पक्ष अच्छी तरह उजागर हो जाता है।
बाल्मीकि रामायण के उत्तराखंड के सर्ग ४२ श्लोक १७-२१ में राम सीता का राजकीय उद्यान विहार का वर्णन इस तरह किया है। अशोक वनिका …१७…पान्वाश्न्गत:(२१) अर्थात : रामचंद्र ने अपने अंत:पुर से सटे हुए समृद्ध राजकीय उपवन में विहारार्थ प्रवेश किया और वे फूलों शोभित तथा ऊपर से कुश या बिछावन बिछाये हुए एक सुन्दर आसन पर बैठ गए। राजा काकुत्स्थ वंश में उत्पन्न रामचंद्र ने सीता जी को हाथ से पकड़ कर पवित्र मेरेय नामक मद्य को,जैसे इन्द्र शची को पिलाते है, वैसे ही पिलाया.।चाकर उत्तम पकाए हुए मांस तथा नाना प्रकार के फल रामचंद्र के भोजनार्थ शीघ्र लाए। रामचंद्र के समीप जाकर नाच-गान में प्रवीण अप्सराएं, नाग-कन्याएं, किन्नरियां और अन्य गुणी और रूपवती स्त्रिया मदिरा के नशे में मतवाली होकर नाचने लगीं।
बाल्मिकी से लेकर तुलसीदास के रामायण में बाली वध, दलित की सबसे पहली हत्या यानी शंबुक वध और सीता के साथ हुए बर्ताव को जिक्र है। बाल्मिकी रामायण में जिक्र है कि राम ने बाली का धोखे से क़त्ल किया। राम से बाली कहता है- “आप हतबुद्धि है। आप धर्म-ध्वजी है। दिखाने के लिए धर्म का चोला पहने हुए है। आप वास्तव में अधर्मी है। आपका आचार-व्यवहार पाप-पूर्ण है। आप घास-फूंस से ढके हुए कूप के सामान धोखा देने वाले हैआप कामेच्छा के गुलाम है। क्रोधी है,मर्यादा में न रहने वाले है। चंचल है। राजाओं की मर्यादा का बिना विचार किए किसी को भी अपने तीर का निशाना बना सकते है।”
बाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड और उत्तर रामचरित में शुद्र तपस्वी शम्बूक की ह्त्या से साफ़ जाहिर है कि श्री राम अत्यंत निर्दयी और अत्याचारी राजा थे। शम्बूक की हत्या को रामायण में बाल्मीकि ने श्रीराम के ही मुख से इस तरह वर्णन किया है। राम ने घोर तपस्या करते शम्बूक से पूछा-“तुम्हे किस वस्तु के पाने की इच्छा है? तपस्या से संतुष्ट हुए इष्ट-देवता से वर के रूप में तुम क्या पाना चाहते हो-स्वर्ग अथवा दूसरी कोई वस्तु? कौन-सा ऐसा पदार्थ है, जिसके लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या करते हो, जो दूसरों के लिए दुष्कर है? तापस ! जिस वस्तु की इच्छा के लिए तुम इस घोर तपस्या में लगे हुए हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ. इसके सिवा यह भी सही-सही बताना की तुम ब्राह्मण हो या दुर्जय क्षत्रिय? तीसरे वर्ग के वैश्य हो अथवा शुद्र? तुम्हारा भला हो। मेरे इस प्रश्न का यथार्थ उत्तर देना।
शम्बूक ने उत्तर दिया-“हे महायशस्वी राम! मैं शूद्र हूं। मैं निसंदेह स्वर्ग लोक जाकर देवत्व प्राप्त करना चाहता हूं। मैं इसलिए यह उग्र तपस्या कर रहा हूं। काकुत्स्थाकुल भूषण राम मैं झूठ नहीं बोलता।. देव लोक पर विजय पाने की इच्छा से तपस्या में लगा हूं। आप मुझे शुद्र जानिए। मेरा नाम शुद्र है। राम के ही शब्दों में-“उस शुद्र के मुंह से ये बात निकली ही थी, मैंने आव देखा ना ताव। म्यान से तलवार खीच ली और उससे शम्बूक का सिर धड़ से अलग कर दिया।”
अपनी पत्नी सीता पर तो राम ने मुसीबतों के पर्वत ही तोड़ डाले। 14 सालों के बनवास के बाद उनके चरित्र पर संदेह किया गया यानी चरित्र की शुद्धता का सबूत देने के लिए उन्हें अग्नि में कूदना पड़ा। सीता कहती है-“मेरा चरित्र शुद्ध है तो भी मुझे दूषित समझ रहे है। मैं सर्वथा निष्कलंक हूं। सम्पूर्ण जगत की साक्षी अग्नि देव ! मेरी रक्षा करें। सुमित्रानंदन ! मेरे लिए चिता तैयार कर दो। मेरे इस दुख की एक ही दवा है। मिथ्या कलंक से कलंकित होकर मैं जीवित नहीं रह सकती।”
अग्नि परीक्षा के बाद भी राम की तसल्ली नहीं हुई। तंग आकर सीता को कहना पड़ा- “मैं मन, वाणी और क्रिया के द्वारा केवल श्रीराम की ही आराधना करती हूं। अगर यह कथन सत्य है तो भगवती पृथ्वी मुझे अपनी गोद में स्थान दे। सभी लोगों के देखते-देखते जानकी रसाताल को प्रयाण कर गई। सीता की आत्महत्या से राम के निर्दयी और अत्याचारी पक्ष अच्छी तरह उजागर हो जाता है।
बाल्मीकि रामायण के उत्तराखंड के सर्ग ४२ श्लोक १७-२१ में राम सीता का राजकीय उद्यान विहार का वर्णन इस तरह किया है। अशोक वनिका …१७…पान्वाश्न्गत:(२१) अर्थात : रामचंद्र ने अपने अंत:पुर से सटे हुए समृद्ध राजकीय उपवन में विहारार्थ प्रवेश किया और वे फूलों शोभित तथा ऊपर से कुश या बिछावन बिछाये हुए एक सुन्दर आसन पर बैठ गए। राजा काकुत्स्थ वंश में उत्पन्न रामचंद्र ने सीता जी को हाथ से पकड़ कर पवित्र मेरेय नामक मद्य को,जैसे इन्द्र शची को पिलाते है, वैसे ही पिलाया.।चाकर उत्तम पकाए हुए मांस तथा नाना प्रकार के फल रामचंद्र के भोजनार्थ शीघ्र लाए। रामचंद्र के समीप जाकर नाच-गान में प्रवीण अप्सराएं, नाग-कन्याएं, किन्नरियां और अन्य गुणी और रूपवती स्त्रिया मदिरा के नशे में मतवाली होकर नाचने लगीं।
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