Sunday, July 28, 2013
‘ममता’ की ‘निर्मोही’ राजनीति
लंबे संघर्ष के बाद पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करनेवाली तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बैनर्जी और उनके नेता- विधायक बेलगाम हो गए हैं। ‘भद्र लोक’ कहे जाने वाले राज्य में ममता बैनर्जी की पार्टी के नेता, विधायक और मंत्री निरंकुश हो गए हैं। लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं। लेकिन अपने नेताओं पर लगाम लगाने की जगह लोकतंत्र की कथित सबसे बड़ी पैरोकार ममता उनके बचाव के लिए तरह तरह के तर्क गढ़ रही हैं। उनके इस तर्क से इस तरह के नेताओं को शह मिल रहा है। ज़ाहिर है कि जब मुख्यमंत्री ही अपने मंत्रियों का इस तरह से खुलकर बचाव करें तो पुलिस- प्रशासन की किया बिसात कि उन पर हाथ डाले।
पंचायत चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और विधायकों ने जिस तरह से खुलकर ‘उत्पात’ मचाया और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, उससे ममता बैनर्जी की बहुत किरकिरी हो रही है। चुनावी हिंसा के मामले में पश्चिम बंगाल ने पड़ोसी राज्यों को भी काफी पीछे छोड़ दिया। हद तो ये हो गई कि तृणमूल के विधायक तो विधायक, क़स्बाई स्तर के नेता भी खुलेआम हत्या कर देने और पुलिस को बम से उड़ा देने की धमकी देते रहे। लेकिन पुलिस कार्रवाई करने की जगह मुंह छिपाती नज़र आई।
दरअसल, ममता और उनके साथियों की घबराहट और छटपटाहट की वजह भी बेहद साफ है। ममता पहले वामपंथियों से दो-दो हाथ करती थीं। वामपंथी सत्ता से बाहर हो गए। लेकिन उसी तरह के लोग तृणमूल में भी नज़र आने लगे, जिन्हें नैतिकता, आदर्श और सिद्धांत से कोई लेना- देना है। इस जमात के लोग अपना घर भरने में लगे हैं। क्या पता फिर कभी सतता की मलाई चाटने को मिले या न मिले। लिहाज़ा जिन पर क़त्ल, बलात्कार, डकैती, लूट-मार, क़ब्ज़ा करने जैसे संगीन आरोप हैं, वो सब तृणमूल में जा मिले ताकि उन पर पुलिस हाथ न डाल सके और उनका धंधा- पानी चलता रहा। इस तरह के लोगों में से जो लोग बड़े पद हासिल नहीं कर पाए, वो संगठन में छोटे-मोटे पदों से ही संतोष करते रहे। लेकिन आदत नहीं गई। लेकिन कुछ ऐसे भी रहे, जिन्हें सत्ता की मलाई खाने को नहीं मिली। लिहाज़ा वो बाग़ी हो गए। आजकल पूरी तृणमूल पार्टी वामपंथियों और कांग्रेसियों को छोड़कर अपने इन्हीं बाग़ियों से दो-दो हाथ करने में सारी उर्जा खपा रही है।
बीरभूम ज़िले के पार्टी अध्यक्ष हैं अनुब्रतो मंडल, जो अपने आपको ममता बैनर्जी के सबसे बड़ा हितैषी साबित करने पर तुले हैं। इसी तरह से इस ज़िले के लाभपुर विधानसभा के विधायक मोइनुल इस्लाम भी खुद को सच्चा ममता भक्त साबित करने पर आमादा हैं। इन दोनों को अपनी स्वामिभक्ति पेश करने का मौक़ा पंचायत चुनाव के दौरान मिल गया। विधायक जी ने मंच से कांग्रेस के नेता के लिए ये तक कह दिया कि उनका सिर धड़ से अलग करने में उन्हें पल भर की भी देरी नहीं लगेगी। अपनी ताक़त का अहसास कराते हुए वो यहां तक कह गए कि तीन लोगों को अपने पैरों तले रौंदने में चुटकी भर की भी देरी नहीं लगी थी। इसी तरह से अनुब्रतो ने बाग़ियों को ललकारते हुए कहा था कि उनके कार्यकर्ता उन्हें नामंकन जमा करने नहीं देंगे। अगर वो पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हुए तो उनके घरों को आग लगा दी जाएगी। अगर पुलिस या प्रशासन ने ऐसे लोगों की मदद करने की सोची तो उन पर बम बरसाया जाएगा।
लोकतंत्र का खुलेआम धज्जियां उड़ने के बाद हर तरफ ममता की कड़ी आलोचना होने लगी। लेकिन ममता अपने ही धुन में मगन हैं। ऐसे नेताओं को उन्होने फटकार नहीं लगाई। उल्टे उन्हें पुचाकारा। विधानसभा में अपने नेताओं का बचाव करने उतरीं ममता ने ये तर्क गढ़ा कि उनके नेताओं ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है। ये तो मीडिया है, जो उनके पीछे पड़ा है और पुराने बयानों को टीवी न्यूज़ चैनलों पर चला रहा है।
हैरानी इस बात की भी है कि जिस नेता से बाक़ी नेताओं की जान को ख़तरा है, ममता सरकार उसी को सुरक्षा देने पर आमादा है। सरकार का इरादा अनुब्रतो मंडल को ज़ेल श्रेणी की सुरक्षा देने का है। बहरहाल, सवाल ये है कि जिस ममता ने कथित अत्याचार और गुंडागर्दी के खिलाफ मोर्चा खोला और जनता को यक़ीन दिलाकर सत्ता में आईं कि वो सूबे में अब कुछ भी गलत नहीं होने देंगी। आख़िर आज ऐसा क्या हो गया कि ममता को अपने सिद्धांतों और आदर्शों की तिलांजलि देनी पड़ रही है। आदतन कांग्रेसी ममता क्या महात्मा गांधी के उस बात का सच साबित करने पर तुली हैं कि अगर किसी की ईमानदारी परखनी हो तो पहले उसे सत्ता में बिठाओ।
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