Wednesday, October 29, 2008

फिर मुंबई में बचेगा क्या, बाबाजी का घंटा?


फिर छिड़ गई जंग मुंबई में गैर मराठी और मराठियों के बीच अपनी दुकान चलाने के लिए राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे और बाल ठाकरे ने म्यान से तलवार निकाल ली है। सब एक सुर में चीख रहे हैं- मुंबई और महाराष्ट्र में एक इंच भी ज़मीन ग़ैर मराठियों के लिए नहीं है। ठाकरे घराने की चीख -पुकार और विधवा विलाप में कई अति उत्साही और पराक्रमी भी शामिल हो गए हैं। बीच सड़क पर , बीचे चौराहे पर और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के ज़रिए सफर करनेवालों पर मराठियों की गाज गिरने लगी है। लोग मारे जा रहे है।
कुछ दशक पहले की बात है। बाल ठाकरे ने कार्टून बनाने का धंधा छोड़कर राजनीति की एक नई दुकान खोली। धंधा चमकाने के लिए हिंदूवादी नारा दिया। केसरिया रंग मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में लहराने लगा। अपार जनसमर्थन देखकर ठाकरे सत्ता सुख में चौंधिया गए। बीजेपी को भी सत्ता सुख की दरकार थी। दोनों मिले। राज्य में भी मिलकर सरकार चलाई और केंद्र में भी एक दूसरे को कांधा दिया। दोनों की सोच एक जैसी दोनों की बात एक जैसी। लेकिन बाल ठाकरे यहां पर चतुर निकले। उन्होने हिंदुओं में भी बंटवारा कर दिया
जो हिंदू महाराष्ट्र के बाहर के हैं, ठाकरे घराने की नज़रों में वो उनकी बिरादरी के हिंदू नहीं है। बीजेपी ने अखंड भारत का नारा दिया था। उसकी सहयोगी शिवसेना और उससे उपजे झाड़-फूंस अब खंड -खंड भारत का नारा दे रहे हैं। बीजेपी ने जो सपना देखा था, जो नारा दिया था, अब उसे उसकी ही सहयोगी पार्टी चूर-चूर कर रही है। डंके की चोट पर एलान हो रहा है- महाराष्ट्र और मुंबई की धरती की एक इंच ज़मीन भी दूसरे प्रदेशों के लिए नहीं है। क़ानून का डर। लोकतंत्र का सम्मान, किसी की परवाह। ग़ैर मराठियों के लिए ठाकरे घराने ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि मानों वो अपने देश का हिस्सा नहीं बल्कि ग़ुलाम कश्मीर या पाकिस्तान को कोई हिस्सा हो। नफ़रत की बीज बोई जा रही है। इसका असर देश के दूसरे हिस्सों में भी देखने को मिल रहा है। इसका ये मतलब हुआ कि महाराष्ट्र के बाहर काम करनेवाले लोगों के साथ भी देश की जनता वही सलूक करे , जो मुंबई में उनके साथ हो रहा है। मुंबई ने पंजाब , हरियामा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे सूबों को एक पांच में कर दिया है। तो फिर क्या ऐसा होना चाहिए कि मुंबई और महाराष्ट्र से लोकसभा और राज्यसभा में चुनकर आए शिवसेना के नुमाइंदों के साथ भी वहीं सलूक होना चाहिए, जो मुंबई में हो रहा है। मुंबई के सांसद उन जगहों को छेक रहे हैं, जो दिल्ली के लोगों के होने चाहिए। दिल्ली में सदियों से बसनेवाले लोगों के पास ढंग के मकान नहीं है, फिर क्यों हम मराठियों को शानदार सरकारी फ्लैटों और बंगलों में रहने दें। क्या हक़ है उनका दिल्ली में कर रहने का। अगर दिल्ली और दूसरे प्रांत तमाम प्रदेशों के लोगों का दिल खोलकर स्वागत करते हैं तो मुंबई इससे जुदा क्यों हों ? कल्पना करके देखिए- अगर बंगाल के लोग बाहर के लोगों को खदेड़ने लगें? पंजाब और हरियामा के लोग बाहर के लोगों को खदेड़ने लगें ? बैंगलुरू के लोग बाहरी लोगों को खदेड़ने लगें ?फिर क्या होगा देश में ?
क्या ठाकरे घराना अनिल और मुकेश अंबानी को मुंबई और महाराष्ट्र से बाहर निकालना पसंद करेंगे ? क्या नुस्ली वाडिया को निकालना पसंद करेंगे ? क्या रतन टाटा को मुंबई का बाहर का रास्ता दिखाएंगे ? कल्पना कीजिए- अगर मुंबई में दिलीप कुमार-सायरा बानो, अमिताभ बच्चन-जया बच्चन, शाहरूख ख़ान-गौरी, रतन टाटा, अंबानी, वाडिया, अभिषेक- ऐश्वर्या, रानी मुखर्जी, श्री देवी, जितेंद्र, एकता कपूर आदि-आदि मुबईं से बाहर अपने अपने प्रदेशों में लौट जाए , तो मुंबई की सूरत क्या होगी ? ठाकरे घराने ने मुंबई को दिया क्या है ?गेटवे आफ इंडिया से लेकर वीटी स्टेशन तक अंग्रेज़ों की देन है। शहर की पहचान में अच्छा ख़ासा योगदान बाहरियों का ही है। ठाकरे घराने की ज़िद की आगे अगर मुंबई में सब कुख वैसा ही हो जाए तो शहर में बचेगा क्या ? बाबा जी का घंटा, जिसे बाल, उद्धव और राज ठाकरे बजाते रहेंगे।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अभी जो बजा रहे हैं वह क्या है?