Wednesday, November 3, 2010

बचपन की बातें................


मेरे एक बहुक पुराने मित्र है कपिल बत्रा। लगभग एक दशक हो गए उनसे मिले हुए। लेकिन उनकी याद बहुत आती है। सुना है आजकल मुंबई में बसते हैं। बड़े चौनलों के लिए मल्टीकैम का सारा बोझ उटाते हैं। ये बहुत कम लोगों को याद होगा कि ये वही कपिल बत्रा हैं जो न्यूज़ एंकर हुआ करते थे। ये ज़ी टीवी के पहले न्यूज़ बुलेटिन की एंकरिंग कर चुके हैं। आज उनके पुराने खतो किताबत को खंगाला। भुली बिसरी बातें यादें आईं। उनका ये संवाद आज बी ज़ेहन में गूंजता है- जब सूरत ढल जाती है तब सीरत काम आता है। इसलिए टीवी के पत्रकारों तकनीकी तौर पर मज़बूत होना चाहिए। पता नहीं टीवी के तकनीक को कितना सीख पाया हूं और कितना साध पाया हूं। लेकिन कपिल बत्रा के साथ मेरे खतो किताबत के कुछ अंश पेश कर रहा हूं।

शायद ज़िंदगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता
क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...
जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें,
वो साथ रोना...
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है?
जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और अपने-अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन और नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग,
पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप.
अब internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...
"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गई मेरी
यहाँ आते आते"
ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त,
और इस ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त,
और औरों को भी जीने दो...
चलो दोस्ती के नाम ही सही
इंसानियत की ख़ातिर ही सही
इस दीवाली पर एक दीया
दोस्ती के भी नाम जलाएं
आओ फिर से दोस्ती के दीप जलाएं
इस दीवाली को पहले की तरह
खुशहाल बनाएं
सभी को ज्योतिपर्व मुबारक हो