Tuesday, July 29, 2014

मोदी सरकार को शर्म भी नहीं आती


देश की जनता ने लोकसभा चुनाव से पहले और फिर सरकार बनने के बाद बीजेपी के कथित लौह पुरुष नरेंद्र भाई दामोदार दास मोदी का दो चेहरा देखा है। एक चेहरा वो था, जिसमें नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के दौरान वोट के कीचड़ में लथपथ होकर आरोप लगा रहे थे कि देश में अब तक की बनीं सरकारों ने देश की जनता के साथ केवल धोखा किया है। सारी की सारें सरकारे निकम्मी रही हैं। 56 इंच का सीना फुलाकर मोदी ने दावा किया था कि अगर उनकी सरकार बन जाएगी तो अच्छे दिन आ जाएंगे। अरूणाचल प्रदेश में आस्तीन चढ़ाकर मोदी ने हुंकार भरी थी कि उनकी सरकार बनने के बाद अगर चीन ने अपनी हरकतें नहीं सुधारीं तो वो उसकी आंखें निकाल कर गोटी खेलेंगे। लेकिन सरकार बनते ही मोदी, बीजेपी और सरकार के दिग्गज मंत्रियों के दावों की हवा निकल गई। महंगाई चरम पर है। सब्ज़ी, पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस और रेल का किराया समते मोदी ने शायद ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी, जहां से आम आदमी की कमर तोड़ी जा सके। हद तो ये है कि चीन से लेकर पाकिस्तान तक हमारी सरहद में घुसकर बांह मरोड़ कर चला जा रहा है और हमारी सरकार केवल गाल बजा रही है।
ये देश के लिए शर्म की बात है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन के बहाने चीनी राष्ट्रपति शी ज़ेनपिंग से गलबहियां कर रहे थे तो उसी दौरान चीनी फौज सरहद लांघकर कश्मीर के लद्दाख के चुनार और डामचौक में उत्पात मचा रही थी। मनमोहन सरकार की बात तो छोड़िए, मोदी के सरकार बनाते ही चीनी फौज ने उत्तराखंड के चमोली में भी आकर अपनी बादशाहत का अहसास कराया था और हमारी सरकार हमें केवल भरोसा दिलाती रही। शर्म की बात तो ये है कि सरकार जब बातें बनाने में मशगूल थी, उस दरम्यान पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी यानी चीनी फौज ने फिर एक बार लद्दाख के ही पागोंग झील में पानी के रास्ते घुसपैठ करने की कोशिश की।
घुसपैठ रोकने का भरोसा देकर सरकार बनाने वाले मोदी के नंबर दो मंत्री राजनाथ सिंह की हालत तो सांप-छुछंदर जैसी दिखने लगी है। उन्हें ये कहने में कोई शर्म नहीं आई कि चीनी फौज ग़लती से नियंत्रण रेखा लांघ जाती है। सच तो ये है कि सरकार भी पहले की सरकारों की तरह ही लुंजपुंज है। लेकिन बातें बनाने में मिट्टी के शेर हैं। राजनाथ ये बयान देकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि नियंत्रण रेखा की वास्तिवक जानकारी न होने की वजह से कई बार हमारे सैनिक भी सरहद लांघ जाते हैं। इसी तरह से राज्यसभा में जब वित्त मंत्री अरूण जेटली के मुखारबिंदु से जब विदेश नीति का उदगार हो रहा था, उस समय भी पाकिस्तानी फौजी हमारे सरहद में घुसकर अखनूर में फायरिंग कर रहे थे। और जेटली बड़ी बेशर्मी से दम भरे रहे थे कि अब पहले की तरह नहीं होगा। अगर आइंदा से पाकिस्तान ने सीज़फायर तोड़ने की कोशिश की तो ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। मोदी की बात सुनकर ऐसा ही लगा मानों किसी मज़बूत बालक ने कमज़ोर बालक की पिटाई कर दी हो और पिटने के बाद बालक ललकारते हुए कहे कि रूक, अभी दूध पीकर आता हूं। फिर तुम्हे देख लूंगा।
दरअसल, पाकिस्तान हो या फिर चीन, सब हमें आंखें दिखा रहे हैं। क्योंकि हमारे पड़ोसी देशों को अच्छी तरह से मालूम है कि हमारी नीति बेहद सॉफ्ट हैं। इसलिए शायद हमें सॉफ्ट स्टेट के तौर पर जाना जाता है। दोनों ही देश नहीं चाहते कि नियंत्रण रेखा पर वास्तविक रेखा तय हो। क्योंकि दोनों ही देशों के इरादे नेक नहीं है। ये सब जानते हैं कि पाकिस्तान की मंशा हमारी सिर क़लम करने की हो। वो अरसे से इस कोशिश में लगा है कि कश्मीर को हमसे अलग कर दे। वहीं चीन की भी नज़र अरूणाचल प्रदेश और सिक्कम पर है। वो खुलकर इन राज्यों पर अपना हक़ जताते आ रहा है। ये बात देश का बच्चा- बच्चा जानता है। इसलिए चुनाव में जनता ने एक ऐसे नेता को वोट दिया, जो शेर की तरह दहाड़ता था।
लेकिन हमारे नए प्रधानमंत्री भी पहले के प्रधानमंत्रियों की तरह ही निकले। तरह-तरह के समिट में जाना। अच्छी-अच्छी बातें करना। दुश्मन देशों के चेहरों पर दोस्ती का मुलम्मा चढ़ाकर उनके नेताओं को अपने देश में बुलाकर जमाई ख़ातिर करना ही शायद हमारी फितरत है और नियति भी। क्या कभी इस देश को ऐसा नेता भी नसीब होगा, जिसकी कथनी और करनी में फर्क़ नहीं होगा। अगर पड़ोसी देश तीन-तेरह करे तो घर में घुसकर उसे ललकारे और फिर अलग बांग्लादेश पैदा कर दे। क्या ऐसा नेता हमें फिर मिलेगा, जिसे मालूम होगा कि वो अपने से बलवान से भिड़ने जा रहा है और उसे मात मिलेगी। फिर भी वो जाकर चीन से टकरा जाए। क्या हमें फिर ऐसा नेता मिलेगा, जब अमेरिका आंखें दिखाए तो वो वहां से गेहूं लेने से मना अपने देश में हरित क्रांति ला दे। समस्या ये है कि देश की जनता तो चाहती है कि उसे एक मज़बूर इरादों वाली सरकार मिले। अपनी इसी हसरत को पूरा करने के लिए देश की जनता बार-बार छली जा रही है। शायद आगे भी ऐसा होता रहे। फर्क़ सिर्फ इतना भर होगा कि चेहरे बदलते जाएंगे, झंडे बदलते जाएंगे। लेकिन नियति नहीं बदलने वाली। 

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